पशुओं के संपर्क में रहने वाले जूनोसिस बीमारियों की चपेट में ज्यादा आते है: डा. एन.डी. शर्मा

लखनऊ। यूनाइट फाउण्डेशन की ओर विश्व जूनोसिस दिवस पर जानवरों से मनुष्य को होने वाली बीमारियों और उनसे बचाव और पशु कल्याण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए चार दिवसीय प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन यूनाइट फाउण्डेशन के लखनऊ स्थित कार्यालय में किया गया है। कार्यशाला में सह आयोजक एमआरएसपी सेवा समिति और श्री गोपेश्वर गौशाला और लखनऊ कैनाइन प्रैक्टिशनर क्लब ने सहयोग किया है। कार्यशाला में पहले दिन विभिन्न संस्थाओ के करीब 50 से ज्यादा लोगों ने भाग लिया।

यूनाइट फाउण्डेशन के उपाध्यक्ष डॉ. पीके त्रिपाठी ने कहा कि दूध या दूध से बने पदार्थ भले ही स्वास्थ्य वर्धक व पौष्टिक की श्रेणी में आते हों, लेकिन यह कच्चा हुआ तो जानलेवा भी साबित हो सकता है। उन्होंने बताया कि कच्चा दूध, कच्चा पनीर, अपाश्चयुरीकृत क्रीम, मलाई खाने से आपको टीबी, ब्रूसेल्लोसिस, क्यू फीवर और लिस्टिरियोसिस जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। उन्होंने बताया कि गर्भवती महिलाओं के लिए तो गर्भपात का भी खतरा है। उन्होंने कहा कि जुनोसिस बीमारियों से हम तभी बच सकते हैं, जब हम जागरूक होंगे। डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि मनुष्यों के कुल 1415 रोग, पशुओं से होने वाले 868 रोग, कुल उभरते 175 संक्रामक रोग, 132 पशु जनित रोग हैं, जो जूनोसिस की श्रेण में आते हैं। जूनोसिस बीमारियां फैलाने में सबसे ज्यादा भूमिका बैक्टिरिया की है। 538 तरह के बैक्टीरिया, 307 फफूंद, 287 कृमि, 217 वायरस, और 66 प्रकार के प्रोटोजोआ पशु जनित बीमारियां इंसानों में होती है।

एनिमल वेलफेयर(एडब्ल्यूबीआई) के पूर्व सलाहकार डा. एनडी शर्मा ने जूनोसिस बीमरियों के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होने प्रशिक्षुओं के पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दिये। उन्होंने बताया कि कि पशुओं के ज्यादा संपर्क में रहने वाले जूनोसिस बीमारियों की चपेट में सबसे ज्यादा आते हैं। किसान व पशुपालक पशुओं के हमेशा संपर्क में रहते हैं। चारे-पानी व दाने की व्यवस्था, नहलाने तथा बाड़े की साफ-सफाई, गर्भावस्था में मादा पशुओं व जन्म के समय नवजात पशुओं की देखभाल करते समय, उनके साथ एक ही छत के नीचे रहने व सोते समय। ऐसे समयों पर इस बात की अधिक संभावना बनी रहती है। साफ सफाई और उबले तक पाश्युरीकृत दूध या उससे बने उत्पादों का सेवन करने से ही जूनोसिस बीमारियों से बचा जा सकता है। इसके अलावा उन्होंने पशु कल्याण और उनकी देखभाल के साथ स्वच्छ पर्यावरण की बात कही। उन्होंने कहा कि जब पर्यावरण अच्छा रहेगा, सफाई रहेगी तो पशुओं को बीमारियां कम होंगी। इसके साथ हर छह महीने में पशुओं का चेकअप कराना चाहिए। यदि डेयरी या गौशाला है तो पशुओं के साथ उनकी देखभाल करने वाले पशुपालक का भी स्वास्थ्य परीक्षण समय समय पर कराएं, जिससे जूनोसिस बीमारियों से बचा जा सकता है। उन्होंने बताया कि तमाम ऐसी बीमारियां है, जानलेवा होती हैं। ऐसे में हमें स्वयं को और पशुओं को भी सुरक्षित रखने के लिए कदम उठाने होंगे। इसके साथ ही जागरूकता बहुत जरूरी है।

उन्होंने बताया कि जूनोसिस बीमारियां वायरस और जीवाणुओं से फैलती हैं जो मनुष्यों और पशुओं दोनों में पाई जाती हैं। वायरस से फैलने वाली बीमारियों में रेबीज, बर्ड फ्लू, स्वाइनफ्लू, जापानी मस्तिष्क ज्वर, क्रिमियन कोंगो रक्तस्रावी ज्वर, क्यासानूर फोरेस्ट रोग है। जीवाणुओं से एन्थ्रेक्स, लेप्टोस्पाइरोसिस, ब्रुसेल्लोसिस या ब्रुसेल्ला संक्रमण, टीबी, क्यू फीवर, साल्मोनिल्ला, कैम्पाइलोबैक्टर लिस्टीरिया, लैप्टोस्पाइरोसिस, लीशमैनियासिस, ईकोलाई तथा परजीवी द्वारा फैलने वाले टीनियेसिस, इकाइनोकोक्कोसिस, टाक्सोप्लाज्मोसिस, टाक्सोकैरा, व अमीबियेसिस हैं।

कार्यशाला में यूनाइट फाउण्डेशन के अध्यक्ष पीयूषकांत मिश्र, पशु चिकित्सक एवं कैनाइन प्रैक्टिशनर क्लब के डॉ. कौशलेन्द्र और डॉ. नागेन्द्र, एमआरएसपी सेवासमिति के पीके पात्रा और सबा खान, समाधान फाउण्डेशन के यतीन्द्र गुप्ता और अरुणेन्द्र श्रीवास्तव समेत अन्य लोगों ने भी जूनोसिस बीमारियों के प्रति लोगों को जागरूक किया और उनसे बचाव के उपाय बताए। कार्यक्रम का संचालन यूनाइट फाउण्डेशन के उपाध्यक्ष राधेश्याम दीक्षित ने किया। कार्यक्रम में प्रियांशु कुमार, शाहिल पांडेय, वर्षा, बृजेश, कार्तिकेय सक्सेना, परवीन, इंद्रेश सिंह, मुकेश कुमार मौर्या, वेद कुमार शर्मा समेत तमाम लोग मौजूद रहे।