राजनीति का गिरता स्तर और शार्ट कट की बढ़ती राजनीति
रियाजुल्ला खान
आज कल नई पीढ़ी के वैचारिक रूप से कमज़ोर होने के कारण हम बीजेपी और आरएसएस से मात खा रहे एक तरफ बीजेपी को लगता है कि सामने खड़े हुए दल वैचारिक मुक़ाबले में हमसे टक्कर नही ले पाएंगे इसलिए उनकी सरकारें लगातार असंवेदनशील और क्रूर होती जा रही है तो दूसरी तरफ विपक्ष जहां कांग्रेस,इस लड़ाई में वैचारिक कुशलता के अभाव में पीछे खड़ी नज़र आती है तो दूसरी तरफ ममता बनर्जी , चंद्र बाबू नायडू ,कुमारा स्वामी ,के चंद्रशेखर राव जैसे नेताओं की राजनैतिक शैली बिल्कुल बीजेपी की ही तरह है । ऐसे में उम्मीद आदरणीय अखिलेश यादव , तेजस्वी यादव और मायावती में ही नज़र आती है,तेजस्वी यादव बिहार के युवावों को जहां एक जुट करने में लगातार सफल हो रहे वही अखिलेश जी पहले ही युथ आइकॉन के रूप में स्थापित हो चुके है और मायावती अपनी शैली की अलग राजनेत्री है और अपने हिस्से का काम बड़ी कुशलता से कर रही है।लेकिन समस्या अब भी उत्तर प्रदेश की राजनीति में है युवाओ को संघर्ष से डर लगता है और वो छद्म राजनीति का सहारा लेकर छोटे से छोटे विषय पर बड़ी कवरेज हासिल करने पर अपनी शक्ति का उपयोग करते है और यहां तक केवल अपनी निजी समस्या को लेकर उसे ही आंदोलन का रूप देने की कोशिश करते है परिणाम स्वरूप उनको जनमानस का समर्थन नही मिलता और आंदोलन विफल हो जाता है एक तरफ बीजेपी की छल की राजनीति का चक्रव्यूह इतना मजबूत है जिसे बड़ी आसानी से जन समर्थन भी मिल जाता क्योंकि उनका मुद्दा निजी न होकर देश भक्ति और देशप्रेमी की चाशनी में लिपटा कर परोसते है वही दूसरे दलों के पास जो मुद्दे है जनता के उस पर कोई संघर्ष नही होता जिससे जनता हमसे जुड़ पाए अपितु कुछ छुटपुट निजी समस्याओं को लेकर प्रदर्शन धरने ज़रूर होते है लेकिन जनता को जोड़ने में नाकाम रहते है अगर हम बीजेपी जैसी पार्टी को हराना है जो कि आवश्यक है तो एक संगठित और सुनियोजित जनहित की समस्याओं का आंदोलन खड़ा करना होगा न कि भूतकाल में हुए थोथे प्रदर्शनों के दम पे कुछ युवको को सफलता मिल गयी उसी रास्ते को अपना कर आज फिर एक बार अपनी निजी राजनीति को चमका के अपना स्वार्थ सिद्ध करने की प्रवत्ति छोड़नी पड़ेगी और शीर्ष नेतृत्व को भी ऐसे लोगो के भ्रम को तोड़ना पड़ेगा ।।हमे बीजेपी और आरएसएस को 2019 में अगर उखाड़ फेंकना है तो उन्ही की शैली में बिना शोर शराबे बिना हल्ला मचाये जनता के बीच में घेरा बंदी की राजनीति करनी होगी जैसा उनके अनुसांगिक संगठन जो मीडिया और जनता की नज़रों तक आने से बचते है लेकिन अपना काम बहुत ही कुशलता से करते है । जब तक हम बिना किसी लोकप्रियता और लालच से मुक्त कार्यकर्ताओ की सेना नही तैयार कर लेते तब तक डगर आसान नही पनघट की। क्योंकि जिनके परिवार के लोग भी उनके कहे वोट नहीं कर सकते आज उछल कूद कर वही अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं।
(लेखक के निजी विचार है)