निजी स्तर पर मुझे किसी भी CJI से समस्या नहीं रही: जस्टिस जे चेलामेश्वर
नई दिल्ली: जस्टिस जे चेलामेश्वर शुक्रवार को रिटायर हो गए. वह सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम का हिस्सा भी थे और इसका सदस्य रहते हुए उन्होंने पारदर्शिता व जजों की नियुक्ति में निष्पक्षता को लेकर सवाल उठाए. उनके सवालों ने देश के तीन मुख्य न्यायाधीशों (CJI) जस्टिस टीएस ठाकुर, जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस दीपक मिश्रा के लिए खासी मुश्किलें खड़ी कीं. हालांकि, रिटायरमेंट से पहले उन्होंने कहा कि उनकी किसी भी मुख्य न्यायाधीश से निजी समस्या नहीं रही. वह केवल सुधार के जरूरी मुद्दों को ही उठा रहे थे.
एक न्यूज़ चैनल से बातचीत में उन्होंने कहा, 'निजी स्तर पर मुझे इनमें से किसी भी जज से समस्या नहीं रही. मैं संस्थानिक मुद्दे उठा रहा था. वहां एक रेखा खींचने की जरूरत थी. बस इतना ही था.' पूर्व चीफ जस्टिस ठाकुर के कार्यकाल में जस्टिस चेलामेश्वर ने अपारदर्शिता और निष्पक्ष प्रकिया के अभाव में कॉलेजियम की बैठकों में शामिल होने से इनकार कर दिया था. उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि जजों की सिफारिशों को रिकॉर्ड किया जाना चाहिए और उनके पास सर्कुलेशन के जरिए इन्हें भेजा जाना चाहिए.
जब जस्टिस खेहर मुख्य न्यायाधीश बने थे, तो एक समय जस्टिस चेलामेश्वर ने उन्हें पत्र लिखकर शिकायत की थी कि किस तरह कॉलेजियम सदस्यों के निजी निवेदनों पर जजों को नियुक्त कर रहा है. कैसे एक के बाद एक मुख्य न्यायाधीशों ने कॉलेजियम के सदस्यों के साथ प्रार्थी की तरह व्यवहार किया. उन्होंने पत्र में लिखा, 'यदि आप(जस्टिस खेहर) मानते हैं कि कॉलेजियम की बैठकें कोर्ट की ओर से स्थापित कानून से ऊपर हैं, तो फिर इस देश को भगवान बचाए.'
इसी तरह उन्होंने उत्तराखंड के चीफ जस्टिस केएम जोसफ को सुप्रीम कोर्ट में न चुने जाने के खिलाफ भी नोट लिखा था. जस्टिस खेहर के साथ ही एक अन्य संवाद में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक जज और आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू के बीच की घनिष्ठता का भी जिक्र किया था.
जस्टिस दीपक मिश्रा के चीफ जस्टिस बनने के बाद जस्टिस चेलामेश्वर के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों ने प्रेस कांफ्रेंस की. इसमें मामलों की सुनवाई चुनिंदा बैंचेज को देने पर चीफ जस्टिस की आलोचना की गई. उन्होंने सीजेआई को सरकार के दखल पर कई पत्र भी लिखे थे.
साल 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के पक्ष में वोट करने वाले वह इकलौते जज थे. उन्होंने कॉलेजियम की प्रचलित व्यवस्था को अस्वीकार कर दिया था. तीन साल बाद वह अब भी मानते हैं कि कॉलेजियम को ज्यादा पारदर्शी और निष्पक्ष होने की जरूरत है. 2016 में उनके कॉलेजियम की बैठकों में जाने से इनकार के बाद ही इसके एजेंडा और चर्चा के बिंदू दर्ज किए जाने लगे थे. उन्होंने यह भी तय करवाया कि असंतुष्ट बिंदुओं को भी सरकार तक पहुंचाया जाए.