नई दिल्ली; भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने एक बार फिर से मोदी सरकार पर हमला बोला है। इस बार उन्होंने जम्मू-कश्मीर के बहाने अपनी ही पार्टी की सरकार को आड़े हाथ लिया है। उन्होंने कहा कि महबूबा मुफ्ती सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद भाजपा इस मुद्दे का इस्तेमाल देश में सांप्रदायिकता फैलाने के लिए करेगी। यशवंत सिन्हा ने स्पष्ट किया कि बीजेपी-पीडीपी गठबंधन को टूटना ही था। बीजेपी के असंतुष्ट नेता ने कहा कि केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के साथ ही अन्य चुनावों में भी इसको पुरजोर तरीके से उठाएगी। यशवंत सिन्हा ने कहा, ‘इसमें कोई संदेह नहीं कि बीजेपी को जम्मू-कश्मीर के मसले पर सांप्रदायिकता और ध्रुवीकरण को हवा देने में मदद मिलेगी।’

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने जम्मू-कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन को लेकर ज्यादा आशावान नहीं थे। उन्होंने बताया कि शुरुआत से ही यह तया था कि गठबंधन को टूटना है। यशवंत सिन्हा ने कहा, ‘गठबंधन बनने के साथ ही दोनों सहयोगी दल विपरीत दिशा में चलने लगे थे। बीजेपी को अपनी नीतियों का अनुसरण करना था तो पीडीपी को भी अपनी नीति पर चलना था। इस सबके बीच राज्य के शासन-प्रशासन को नुकसान हुआ। इस गठबंधन को असफल होना ही था।’

यशवंत सिन्हा ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा को भंग कर चुनाव कराने की वकालत की है। उन्होंने कहा, ‘सभी दलों ने स्पष्ट तौर पर कहा कि वे सरकार नहीं बनाना चाहते हैं। ऐसे में जब मौजूदा विधानसभा सरकार देने में नाकाम है तो उसे भंग कर नए सिरे से चुनाव कराना जरूरी है। ऐसा नहीं होने पर जम्मू-कश्मीर की जनता को लगेगा कि भाजपा ने सिर्फ चुनावी लाभ के लिए उनका मोहरे के तौर पर इस्तेमाल किया।’

भाजपा के वरिष्ठ नेता ने अपनी ही पार्टी पर जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा, ‘इसमें कोई संदेह नहीं कि बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का इस्तेमाल किया और काम पूरा होने के बाद खुद से अलग कर दिया। भाजपा ने बिना किसी वादे को पूरा किए राज्य में तीन साल तक सत्ता का सुख पाया। महबूबा मुफ्ती जब तक मुख्यमंत्री थीं, सारे आरोप उन पर ही मढ़ दिए जाते थे। लेकिन, सरकार के गिरने और राज्य की मौजूदा स्थिति के लिए सिर्फ महबूबा पर आरोप लगाना उचित नहीं है।’ यशवंत ने भाजपा की उन दलीलों को भी खारिज कर दिया, जिसमें राज्य में कानून-व्यवस्था को बरकरार रखने में सरकार के पूरी तरह से विफल होने की बात कही गई थी।