नई दिल्ली: भारत का बैंकिंग सेक्‍टर (सरकारी और निजी बैंक) जोखिम वाले कर्ज (एनपीए) की गंभीर समस्‍या से जूझ रहा है। पिछले 10 वित्‍तीय वर्षों में (31 मार्च, 2018 तक) देश के सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंकों ने कुल 4,80,093 करोड़ रुपये को बट्टे खाते (ठंडे बस्‍ते) में डाल दिया। इनमें सबसे ज्‍यादा नुकसान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को उठाना पड़ा है। सरकारी बैंकों ने इस दौरान 4,00,584 करोड़ रुपये को ठंडे बस्‍ते में डाला, जबकि निजी बैंकों को 79,490 करोड़ रुपये के कर्ज को बट्टे खाते में डालना पड़ा। दस वित्‍तीय वर्ष में से छह में यूपीए की सरकार थी। वहीं, बाद के चार वित्‍तीय वर्ष से नरेंद्र मोदी सत्‍ता में हैं। रेटिंग एजेंसी ‘आईसीआरए’ के आंकड़ों पर गौर करें तो मोदी सरकार में बैंकिंग लोन को ठंडे बस्‍ते में डालने की रफ्तार मनमोहन सरकार से तेज हुई है। सार्वजनिक के साथ निजी क्षेत्र के बैंकों ने भी अपने अकाउंट बुक को साफ करने में तुलनात्‍मक रूप से ज्‍यादा तेजी दिखाई है।

वर्ष 2009-2014: वर्ष 2009 से 2014 तक यूपीए-2 की सरकार थी और डॉ. मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। आईसीआरए द्वारा ‘इंडियन एक्‍सप्रेस’ के लिए जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, इस अवधि में सरकारी और निजी बैंकों ने कुल 1,22,753 करोड़ रुपये के लोन को बट्टे खाते में डाला था। इसमें तकरीबन एक लाख करोड़ का लोन स‍िर्फ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का था। आंकाड़ों के अनुसार, इस दरम्‍यान सरकारी बैंकों ने 97,209 करोड़ रुपये के लोन को ठंडे बस्‍ते में डाला था। वहीं, निजी बैंकों को 25,542 करोड़ रुपये के लोन को बट्टे खाते में डालना पड़ा था।

वर्ष 2015-2018: नरेंद्र मोदी ने मई 2014 में देश की बागडोर संभाली थी। इस दौरान जोखिम वाले कर्ज को ठंडे बस्‍ते में डालने की प्रक्रिया तुलनात्‍मक रूप से तेज हुई। पीएम मोदी के अब तक के शासनकाल में 3,57,341 करोड़ रुपये को बट्टे खाते में डाला जा चुका है। इनमें भी सरकारी बैंकों की हिस्‍सेदारी निजी बैंकों के मुकाबले कहीं ज्‍यादा है। इस अवधि में सरकारी बैंकों ने कुल 3,03,394 करोड़ रुपये के लोन को बट्टे खाते में डाला था। निजी क्षेत्र के बैंकों को इस दौरान कुल 53,947 करोड़ रुपये के लोन को ठंडे बस्‍ते में डालना पड़ा। इसके बावजूद बैंकिंग सेक्‍टर में एनपीए की समस्‍या अब तक खत्‍म नहीं हुई है।

बैंक लोन को इस तरह डालते हैं बट्टे खाते में: आर्थिक गतिविधियों को गति देने में लोन का महत्‍व बहुत ज्‍यादा होता है। लेकिन, बैंकों के लिए जब संबंधित लोन की वसूली संदिग्‍ध हो जाती है तो उसे बट्टे खाते में डाल दिया जाता है। कॉर्पोरेशन बैंक के पूर्व अध्‍यक्ष और प्रबंध निदेशक प्रदीप रामनाथ बताते हैं क‍ि लोन को बट्टे खाते में डालने का मतल‍ब यह नहीं होता की अब कर्ज की वसूली की ही नहीं जाएगी। उन्‍होंने कहा, ‘यह (राइट ऑफ या बट्टे खाते में डालना) एक तकनीकी कदम होता है। इसकी मदद से अकाउंट बुक को व्‍यवस्थित किया जाता है। जब किसी जोखिम वाले कर्ज को राइट ऑफ या बट्टे खाते में डाला जाता है तो वह राशि बैंक के अकाउंट बुक से बाहर हो जाता है। बैंकों को इससे कर में भी राहत मिलती है। लोन को बट्टे खाते में डालने के बावजूद बैंक कर्ज की वसूली के लिए कदम उठाता रहता है।’