संस्कृति और संस्कारों की प्रासंगिकता को बनाये रखना आवश्यक: राज्यपाल
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने आज इन्दिरा गांधी प्रतिष्ठान में आयोजित भारतीय संस्कृति उत्सव का दीप प्रज्जवलित करके उद्घाटन किया। इस अवसर पर विधान सभा अध्यक्ष श्री हृदय नारायण दीक्षित, महापौर डाॅ0 संयुक्ता भाटिया, भारती विद्या मंदिर के प्रो0 विट्ठल दास मंूधडा, प्रो0 अरूणेश निरन, कार्यक्रम के मुख्य संयोजक डाॅ0 शैलेंद्र मणि त्रिपाठी व अन्य विशिष्टजन उपस्थित थे। राज्यपाल ने इस अवसर पर श्री वाई0 शंकरामूर्ति, डाॅ0 ऋचा मिश्रा, डाॅ0 अनिल त्रिपाठी, प्रो0 विट्ठल दास, श्रीमती हेमा बिन्दु सहित अन्य लोगों को सम्मानित किया।
राज्यपाल ने भारतीय संस्कृति की विशेषता पर अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीनतम संस्कृति है। भारतीय संस्कृति का संदेश श्रीमद्भगवद्गीता से प्राप्त होता है। गीता का प्रत्येक श्लोक जीवन का सिद्धांत बताता हैं। हमें अपनी संस्कृति के साथ-साथ संस्कार का भी ध्यान रखना चाहिए। व्यवहार से संस्कृति की महानता समझ में आती है। संस्कृति को बनाने में बुद्धजीवियों, साहित्यकारों और कलाकारों का योगदान होता है। उन्होंने कहा कि आधुनिक युग में भी भारतीय संस्कृति और संस्कारों की प्रासंगिकता को बनाये रखना आवश्यक है।
श्री नाईक ने उत्तर प्रदेश की विशेषता पर प्रकाश डालते हुये कहा कि यह प्रदेश भगवान श्री राम एवं श्री कृष्ण की जन्म स्थली है और सूफी-संतो की तपोभूमि के लिये विश्व विख्यात है। करोड़ों लोग प्रयागराज के कुंभ में श्रद्धा के आधार पर भूख-प्यास से परे होकर आते हैं। मोक्ष प्राप्ति के लिये लोग काशी में प्राण त्यागना चाहते हैं। भारतीय संस्कृति में सुविधा नहीं आस्था को प्रधानता दी गयी है। सभी धर्मों एवं ग्रंथों में समान बातें हैं। उन्होंने कहा कि अलग-अलग भाषायें, खान-पान एवं वेशभूषा के बावजूद भारतीय सभ्यता और सांस्कृतिक परम्परा में निरन्तरता बनी रही है।
विधान सभा अध्यक्ष श्री हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि भारतीय संस्कृति लोकमंगल की संस्कृति है। भारत में धरती को माता और आकाश को पिता की संज्ञा दी गई है। उन्होंने कहा कि हमारी राष्ट्रीयता के मूल में हमारी प्राचीन संस्कृति का अमृत है।