नई दिल्ली: देश की सबसे बड़ी अदालत से शरद यादव को बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने (7 जून) गुरुवार को जनता दल यूनाइटेड के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव की सैलरी रोकने संबंधी दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले में संशोधन किया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के जज ए.के गोयल और अशोक भूषण की अवकाशकालीन पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस निर्देश को बरकरार रखा जिसमें शरद यादव को उनके सरकारी बंगले में रहने की इजाजत दी गई थी। लेकिन अदालत ने जदयू के बागी नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद शरद यादव के वेतन भत्तों पर रोक लगा दी है।

दरअसल जदयू के राज्यसभा सांसद रामचंद्र प्रसाद सिंह ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट ने शरद यादव की अयोग्यता पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था और उन्हें सरकारी आवास रखने तथा वेतन-भत्ते जारी रखने की अनुमति दी थी। शरद यादव की तरफ से अदालत में दलील दी गई थी कि उन्हें राज्यसभा में अध्यक्ष ने अपनी बात कहने का मौका नहीं दिया और उनकी सदस्यता रद्द कर दी थी।

दिल्ली हाईकोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ रामचंद्र प्रसाद सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। 18 मई को सुप्रीम कोर्ट ने रामचंद्र प्रसाद सिंह की याचिका को सुनवाई के लिए मंजूर करते हुए शरद यादव को नोटिस जारी किया था। अपनी याचिका में रामचंद्र प्रसाद सिंह की तरफ से कहा गया था कि शरद यादव और अली अनवर ने पटना में विपक्षी पार्टी की रैली में हिस्सा लेकर पार्टी के सिद्धांतों को तोड़ा है।

आपको याद दिला दें पिछले साल बिहार में जेडीयू और आरजेडी के गठबंधन टूटने के बाद उसी साल जुलाई महीने जेडीयू ने बीजेपी से गठबंधन कर राज्य में सरकार बना ली। यह बात शरद यादव को बिल्कुल नागवार गुजरी। जिसके बाद शरद यादव ने पार्टी के खिलाफ बागी तेवर अपना लिए। शरद यादव इसके बाद बिहार में राजद-कांग्रेस के महागठबंधन का हिस्सा बन गए। शरद यादव वर्ष 2016 में राज्यसभा के लिए चुने गए थे। उनका कार्यकाल जुलाई 2022 में खत्म होने वाला था। लेकिन Anti defection law के तहत दोनों ही नेताओं की सदस्यता रद्द कर दी गई थी।