नागपुर : कांग्रेस की परंपरा में रचे बसे दिग्गज नेता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के तृतीय वर्ष के समारोह में कहा कि हम पूरी दुनिया को एक परिवार की तरह देखते हैं और सभी की भलाई के लिए प्रार्थना करते हैं. उन्‍होंने कहा कि विविधता में एकता हमारी ताकत है. संघ प्रमुख मोहन भागवत के संबोधन के बाद पूर्व राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी संबोधन के लिए आए. उन्‍होंने कहा मैं अपने विचारों को साझा करना चाहता हूं जो मैंने पिछले 50 वर्षों में महसूस किया है. भारत की आत्मा बहुलवाद में निहित है. धर्मनिरपेक्षता और हमारी समग्र प्रकृति हमें भारत बनाती है. धर्मनिरपेक्षता मेरे लिए विश्वास का विषय है और हमारे लिए होना चाहिए. यह एक समग्र संस्कृति है जो हमारे देश को बनाती है, "

प्रणब मुखर्जी ने कहा, भारत एक धर्म, एक भाषा का देश नहीं है. राष्ट्रवाद जाति, धर्म ,भाषा से ऊपर है. जैसा कि गांधी जी ने समझाया कि भारतीय राष्ट्रवाद अनन्य नहीं, न ही आक्रामक और न ही विनाशकारी था | प्रणब मुखर्जी ने कहा, भारत की आत्मा सहिष्णुता में बसती है. अलग रंग, अलग भाषा, अलग पहचान है.हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई की वजह से यह देश बना. अगर हम भेदभाव और नफरत करेंगे तो हमारी पहचान को खतरा. सहिष्णुता हमारी ताकत है. भारत के दरवाजे सबके लिए खुले हैं.उन्होंने कहा कि, धर्म कभी भारत की पहचान नहीं बन सकता, नफरत से देश को सिर्फ नुकसान है.

प्रणब मुखर्जी ने कहा, भारत वसुधैव कुटुंबकम का देश हैं. भारत में महाजनपदों की परंपरा रही है. हम विविधता का सम्मान करते हैं. विविधता हमारी सबसे बड़ी ताकत है. पंडित नेहरू ने 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' पुस्तक में स्पष्ट रूप से व्यक्त किया, उन्होंने लिखा, "मुझे विश्वास है कि राष्ट्रवाद केवल हिंदू, मुसलमानों, सिखों और भारत के अन्य समूहों के विचारधारात्मक एकता से बाहर आ सकता है."

अपने संबोधन में डॉ. मुखर्जी ने कहा कि कॉलोनियन सिस्‍टम ने यहां कब्‍जा जमाया. उन्‍होंने अंग्रेजों के आगमन और उसके विस्‍तार की चर्चा की. डॉ. मुखर्जी ने कहा कि तीन युद्ध के बाद ईस्‍ट इंडिया कंपनी ने देश के एक बड़े भू-भाग पर कब्‍जा कर लिया. इसने एक एकीकृत शासन व्‍यवस्‍था स्‍थापित किया. इसका संचालन गवर्नर जनरल के जरिए होने लगा. डॉ. मुखर्जी ने अपने संबोधन में भारत के व्‍यापार और उसके विस्‍तार की चर्चा की. यहां के धर्म और उसके प्रसार की चर्चा की. डॉ. मुखर्जी ने भारत के ऐतिहास शिक्षण स्‍थल का जिक्र किया और कहा कि इस मामले में भारत हरदम समृद्ध रहा है. इस समारोह में बुलाने के लिए डॉ. मुखर्जी ने संघ प्रमुख मोहन भागवत का आभार जताया.