प्रदेश के राजनैतिक दलों की नैतिकता की पोल खुली
मृत्युंजय दीक्षित
प्रदेश के सभी विरोधी राजनैतिक दल अब महागठबंधन बनाकर अपनी उपस्थिति तो दर्ज करा ही रहे हैं साथ ही साथ प्रदेश व केंद्र सरकार की नीतियों व व निर्णयों पर एक होकर हल्ला भी बालने लग गये हैं। लेकिन इस बीच कुछ ढेसी घटनायंे घटी हैं जिसके कारण सभी विरोधी दलों की नैतिकता की पोल पूरी तरह से खुलती जा रही है। अभी यह महागठबंधन बेहद आरम्भिक अवस्था में है। लेकिन विपक्ष की हरकतों से यह साफ होता जा रहा है कि यह दल दलितांे, पिछड़ांे ,अतिपिछड़ांे व गरीबों तथा अल्पसंख्यकों के वाकई में कितने हमदर्द है। इन दलों की भारतीय संविधान व सर्वोच्च न्यायालय सहित सभी संवैधानिक संस्थ्आओं के प्रति कितना मान सम्मान शेष रह गया है। जब देश की अदालतें इन दलों के पक्ष में फैसला सुनाती हंै तो वह अच्छी हो जाती हंै अगर नहीं सुनाती है तो बुरी हो जाती है। ण्क समय था जब इन दलों के कारण आंधी और तूफान आतें थे लेकिन आज इन दलों के दबाव के चलते पत्ता भी नहीं उड़ पा रहा है। यही कारण है कि आज यह सभी दल एकाध सफलताओं के कारण ही अभी से भारी अहंकार में आते जा रहे हंैं और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पीएम नरेंद्र मोदी सहित समस्त भाजपा संघ को ही निशाने पर लेकर हल्ला बोल रहे हंै।
अभी हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के एक ऐतिहासिक निर्णय के बाद उप्र के सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी आवास खाली करना ही पड़ गया । लेकिन सरकारी आवासों का मोह इन पूर्व मुख्यमंत्रियों के मन से अभी तक छूट नहीं पा रहा है भले ही इन लोगों ने अपने बंगले खाली कर दिये है। प्रदेश की राजनीति में सरकारी बंगलांेे का मोह और उस पर राजनीति की अलग कहानी रही है। लेकिन माननीय कोर्ट के आदेश के आदेशों के अब इन नेताओं को अपना घर खाली करना ही पड़ गया। यह सभी दल अभी तक भाजपा नेताओं को नैतिकता की खूब दुहाई देतेे रहे हैं। लेकिन बंगला विवाद के बाद वास्तव में इन दलों ने जिस प्रकार की छटपटाहट दिखलायी व बयानबाजियां की हैं उससे इन दलो के नेताओं की पोल खुल गयी तथा समाज में जो कहावत बोली जाती रही है कि सरकारी माल अपना को भी पूरी तरह से चरितार्थ कर दिया है। बंगला प्रसंग में इन दलों ने जो राजनीति की है उसके कई पार्ट तथा कहानियां उसमें समाहित होती चली गयी हैं। जब सरकारी बंगलो ंपर कोर्ट का आदेश आया तब सबसे पहले बीजेपी सरकार के पूर्व मुख्यमंत्रियों राजनाथ सिंह तथा कल्याण सिंह ने अपना आवास खाली करने का निर्णय करके इन सभी दलोें के नेताओं को भरी दबाव मंे ला दिया।
सबसे पहले कोर्ट के आदेश के खिलाफ सपा के पूर्व मुखिया और मुलायम सिंह यादव अपना पक्ष रखने और बंगला बचाने के लिये मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास पहुच गये तथा उन्होंने दो विकल्प सुझाये। लेकिन वह विकल्प अब पुराने हो चुके हंै। सपा मुखिया का कहना था कि उनके पास मकान नहीं है। पीएम मोदी ने अभी तक खातों मे ं15 लाख रूपये तो दिये नहीं हम कहां रहने जायेंगे। सरकारी बंगलों को खाली कराने से देश में कौन सा बदलाव आ जायेगा जैसे बहाने तलाशने लग गये। वही उनके सुपुत्र अखिलेश यादव जो महागठबंधन की राजनीति में अपने पिता को देश प्रधानमंत्री बनलाने का सपना देखने लग गये हंै ने बड़ी ही चालाकी का खेल खेलते हुए आवास को खाली कराने का समय मांगा । दो साल का समय मांगना अखिलेश यादव की एक बहुत ही बड़ी चाल थी वह यह सोच रहे थे कि दो साल का समय मिल जायेगा तब 2019 में केंद्र में उनके दबाव वाली सरकार आ जायेगी अैार कोर्ट का आदेश रददी की टोकरी में चला जायेगा। प्रदेश के एक और मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने अपनी बीमारी का हवाला दे दिया। पूरे प्रकरण में सबसे आश्चर्यजनक और चैंकाने वाली दंबगई की राजनीति तो बसपा सुप्रीमो मायावती ने की है।
इस समय राजनैतिक दृष्टिकोण से यदि किसी की धरातल से हालत बेहद खराब है तो बहन मायावती की है। उनके पास ले देकर एक सरकारी बंगला ही बचा था सब तो उनका लुअ चुका है। आज संसद के दोनों सदनों में ही नहीं उप्र विधानसभा में भी उनकी उपस्थिति न के बराबर है। बहन मायावती केवल कर्नाटक में और उप्र के उपचुनावों में बीजेपी के रूक जाने पर सफलता का जश्न मना रही हैं और मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखने लग गयी हैं। बहिन मायावती जी ने भी सरकारी बंगले को लेकर खूब नाटक खेला और उल्टा बीजेपी पर ही उनकी छवि को खराब करने का आरोप लगा दिया जबकि आज वास्तविकता यह है कि बहन मायावती की अपनी इतनी ही ताकत शेष रह गयी है कि वह विपक्ष महागठबंधन के दौर में अपने वोट बीजेपी को हराने के लिये किसी दूसरे दल को दिलवा सकती हंै। अभी भी यदि सपा और बसपा अलग- अलग होकर चुनाव लड़ जायें तो बीजेपी की ही लहर चल पड़ेगी। बसपा सुप्रीमो मायावती ने बंगला खाली करने के नाम पर खूब ओछी राजनीति की है जिसका उन्हंें खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
बंगला खाली करने से पहले मायावती ने सरकारी बंगले को कांशीराम यादबगार विश्राम स्थल ही बना डाला है। इसकी आढ़ में उन्होंने दलितों व पिछड़ों का हमदर्द बनने ढोंग रचा है। मायावती ने एक प्रकार से बेहद ही अनैतिक ढंग से सरकारी बंगले को लूट लिया है तथा उनके खिलाफ तो जनभावनओं को आहत करने और सरकारी बंगले को बलपूर्वक लूटने का आपराधिक देशद्रोह तथा भ्रष्टाचार औेर कदाचार का मुकदमा दर्ज हो जाना चाहिये। उनका यह कृत्य पूरी तरह से अनैतिक और समाज विरोधी है। यह दलितों के साथ औेर मान्यवर कांशीराम जी के खिलाफ भी एक बहुत बड़ा धोखा किया गया है।
मायावती की नैतिकता की पराकाष्ठा तो उस समय बेहद गटर में चली गयी थी जब अपनी सफाई देने के लिये उन्होंने मीडिया को बुलाया और यह साबित करने के लिये ही की यह बंगला कांशीराम का विश्राम स्थल ही था। उन्होंने समस्त मीडिया को सरकारी बंगला दिखाया भी। उस समय पत्रकार वार्ता में बसपा सुपी्रमो ने जिस प्रकार की भाषा श्ैाली का प्रयोग बीजेपी के लिये किया है उससे यह साफ पता चल रहा है कि उनके मन में किमतनी दुर्भावना और बीजेपी से बदला लेने की कितनी छटपटाहट और व्याकुलता भरी हुई हैं। मायावती की भाषा बेहद विकृत होती जा रही है। इसके कई कारण भी है। बसपा सरकार में चीनी मिल घोटालों की सहित बसपा राज के कई घोटालों की जांच शुरू हो रही है तथा कुछ की औरा शुरू होने जा रही है। नोटबंदी के बाद मायावती का पैसा डूब चुका है। चुनाव लड़ने के लिये काफी धन चाहिये ,रैलियां करने ंके लिये व भीड़ बुलाने के लिये धन चाहियंे। काफी दबाव के चलते उन्हें अपने पुराने सबसे खतरनाक दुश्मनों से दोस्ती करनी पड़ रही है। मायावती के नये दोस्त घोटालों और कई प्रकार के अपराधांे में आकंठ डूबे हंै। सरकार योगी आदित्यनाथ की है, देश मंें मोदी लहर चल रही है। यही करण है कि आज मायावती जिनकी राजनीति कभी मोदी के सहारे ही आगे बढ़ी थी और बीजेपी ने उनके जीवन की रक्षा की थी आज वही मायावती बीजेपी को हराने के लिये छटपटा रही है। उसी आढ़ मंे मायावती गलती पर गलती करती जा रही हैं।
बंगला खाली करने के दौरान सभी दलों के नेताओं ने यह बताने का असफल प्रयास किया कि वह बेहद गरीब हैे तथा उनके पास रहने को मकान नहीं हैं। यह बेहद घटिया और नायाब तरीका था। बसपा सुप्रीमो मायावती के बंगले की कहानी पूरे प्रदेश में चर्चित हो चुुकी है। सपा के पूर्व मुखिया मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के पास भी अपनी काफी संपत्ति है। अगर इन सभी नेताओं को गरीब मान लिया जाये तो भी अब इन सभी नेताओं ने चुनाव आयोग के समक्ष हलफनामे में अपनी संपत्ति के ब्यौरे का जो विवरण दिया है उसकी भी अब जांच हारे जानी चाहिये जिससे सब दूधका दुूधऔर पानी का पानी हो जायेगा। कि दलितों और पिछड़ों के यह तथाकथित नेता वास्तव में बेहद गरीब हैं या फिर देश की जनता व सरकार के धन के लुटेरे ।