लखनऊ: रिहाई मंच ने भारत बंद के आन्दोलनकारियों पर रासुका लगाने के हापुड़ के एसपी संकल्प शर्मा के बयान पर कड़ी आपत्ति दर्ज करते हुए कहा कि रासुका का कानून ही संविधान की भावना के विरुद्ध है। एक तरफ एससीएसटी एक्ट को निष्प्रभावी किया जा रहा है दूसरी तरफ हक़-हुकूक के आन्दोलन से जुड़े लोगों को बलवाई बताकर भाजपा बदनाम कर रही है। एससीएसटी एक्ट को निष्प्रभावी किए जाने के विरोध में भारत बंद के दौरान आज़मगढ़ में होने वाली कथित हिंसा और पुलिस कार्रवाई के दो महीना पूरे होने पर आजमगढ़ रिहाई मंच प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी ने रिहाई मंच, नवयुवक अम्बेडकर दल, जन मुक्ति मोर्चा, अखिल भारतीय प्रगतिशील छात्र मंच, लोक जनवादी मंच और किसान संग्राम समिति की संयुक्त जांच रिपोर्ट जारी की। उन्होंने इसे राज्य प्रायोजित दमनात्मक कार्रवाई बताया।

जांच दल ने आज़मगढ़ के मालटारी, भदांव, सरायसागर, अज़मतगढ़, महादेव नगर झारखंडी, फैजुल्ला–जहीरुल्ला, जमीन सिकरौला आदि गांवों का दौरा कर तथ्य जुटाए। जिनसे पता चलता है कि मालटारी बाज़ार और सगड़ी तहसील पर होने वाले विरोध प्रदर्शन में पत्थरबाज़ी की घटना प्रयोजित थी। रिपोर्ट में कहा गया है की जब आन्दोलन शान्तिपूर्वक चल रहा था उसी दौरान विश्वहिंदू परिषद, बजरंगदल और अन्य साम्प्रदायिक संगठनों के लोगों ने साजिश के तहत पत्थर फेंके और उसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज करके बर्बरतापूर्वक आन्दोलनकारियों को पीटा और उन्हें गिरफ्तार किया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस की दबिश और दलित बस्तियों में महिलाओं और बच्चों पर क्रूरता के कारण नवजवानों को गांव छोड़ कर भागना पड़ा, कई दलित छात्रों की परीक्षाएं छूटीं और नाबालिगों तक को आरोपी बनाया गया। इसी प्रकार विकास कुमार और एक अन्य रंजीत कुमार क्रमशः कक्षा 9 व 10 के छात्र हैं और नाबालिग हैं। आदित्य कुमार पुत्र जवाहिर राम की बीएससी और प्रवीण कुमार की एमए की परीक्षा छूट गई। उन्होंने कहा कि जांच में इस बात के साक्ष्य मिले हैं कि कई स्थानों पर पुलिस ने बेगुनाह दलितों की जाति पूछकर आरोपी बनाया। ज़रूरत का सामान खरीद रहे दलित युवकों को व्यापारी वर्ग ने पकड़ कर पुलिस के हवाले किया। अज़मतगढ़ नगरपालिका चेयरमैन पारस सोनकर आन्दोलन में शामिल नहीं थे उसके बावजूद भाजपा से जुड़े पूर्व चेयरमैन के इशारे पर उनको और उनके बूढ़े पिता को आरोपी बनाया गया। इससे यह बात पुख्ता होती है कि मनुवादियों के साथ पुलिस सत्ता के इशारे पर दमनात्मक कार्रवाई की। सरकारी दमन का एक और उदाहरण देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीब दलितों से धारा 151 में जमानत के लिए पांच-पांच लाख रूपये की दो ज़मानत मांगी गई। औपचारिकताएं पूरी होने के बाद भी 14 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती तक उनकी रिहाई के परवाने पर एसडीएम द्वारा हस्ताक्षर न किया जाना बताता है कि पूरी राज्य मशीनरी आरोपियों की रिहाई को बाधित करने के किसी खास निर्देश पर काम कर रही थी।

आजमगढ़ रिहाई मंच प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी ने आरोप लगाया कि गिरफ्तार युवकों को हिरासत में लेने के बाद पिटाई की गई और 307 (हत्या का प्रयास) समेत कई गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई। इससे साफ जाहिर है कि मनुवादी गिरोह दलितों को हत्यारा साबित करने पर तुला हुआ है. 63 नामजद और 150 अज्ञात के नाम से दर्ज हुए मुकदमों में अब तक 24 की गिरफ्तारी हुई है जिनको जमानत मिल चुकी है। मंच ने मांग की कि भारत बंद के नाम पर दर्ज मुकदमों को तत्काल वापस लिया जाय।

जांच टीम में रिहाई मंच के मसीहुद्दीन संजरी, सालिम दाऊदी, जनमुक्ति मोर्चा के राजेश, अखिल भारतीय प्रगतिशील छात्र मंच के तेज बहादुर, राहुल, लोक जनवादी मंच के दुखहरन राम, नवयुवक अम्बेडकर दल के राजकुमार, रविंद्र, जीतेन्द्र, छात्र नेता हिमांशु कुमार और किसान संग्राम समिति के सूबेदार व रामाश्रय शामिल थे।