दरगाह महबूबे इलाही के सहर व इफ़्तार में दूर दराज़ के ज़ायरीन शिरकत करते हैं
मो0 आरिफ़ नगरामी
रमजानुल मुबारक के मुतबर्रक महीने में देहली के जिन मकामात पर खुसूसी भीड़ भाड़ होती है और जहां लोग खास तौर पर सफर करके अफ्तार व सहरी से लुत्फ अंदोज होने जाते हैं। उनमें एक दरगाह हजरत ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया भी है। दरगाह के खुद्दाम अफ्तार के पहले मुतहर्रिक व फआल नजर आते हैं। अक्सर लोग दरगाह के खुद्दाम को बाज मामले में बुरा भला भी कहते हैं लेकिन अफ्तार की तैयारी और दस्तरख्वान चुनने के दौरान वह सारे इल्जामात बेकार महज की हैसियत इख्तेयार कर जाते हैं। यूं तो दरगाह खुद ही मजारात बुर्जगान से पटी पड़ी है। इस पर जायरीन का अंबोह कसीर और गुरबा की भीड़ भी कुछ कम नहीं होती है। इसके बावजूद खुद्दाम जगह निकाल कर हटो भागो की आवाजें बुलंद करके दस्तरख्वान लगाते हैं और बड्ी मुहब्बत शफकत के साथ अवाम व खवास को दस्तरख्वान के गिर्द बैठाते हैं। यहां खुद्दाम असर की नमाज के बाद से ही अफ्तार की तैयारियों में मसरूफ हो जाते हैं। फ्रूट चाट पकौडे़ वगैरह का अच्छा खासा इंतेजाम होता है। यहां ठंडे पानी का भी अवाम व जायरीन के लिए इंतेजाम किया जाता है। जायरीन यहां बडी अकीदत व एहतेराम के साथ बैठते हैं। दूर दूर से जायरीन ख्वाजा के दरबार में आते हैं, अफ्तार का मंजर देखकर हजरत ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया का दौर याद आ जाता है। जब हजरत बज़ाते खुद भूखों और नंगों की निगरानी किया करते थे और पीछे-पीछे हजरत अमीर खुसरो सब सखीन में चंद मूरी मैली का विर्द किया करते थे। हजरत महबूबे इलाही का नाम नामी इस्मे गिरामी मोहताजे तआर्रूफ नहीं है। आप मख्लूक खुदा की खिदमत खल्क करने वालों में नुमायां मकाम रखने वाले अहम बुजुर्ग हैं। आपके इस दुनियाए फानी से कूच करने के बावजूद अब तक आपकी बारगाह से फुयूज व बरकात का सिलसिला हुनूज जारी व सारी है। तकरीबन सात सौ बरस गुजर जाने के बावजूद अकीदतमंद दिलों की आपसे रगबत का आलम ये था कि आपको प्यार से सुल्तान जी कहा करते थे। आपकी बारगाह में लंगर का सिलसिला अरसे कदीम से जारी है। आप के दौर में प्याज के छिल्के तीस ऊंट पर लाद कर रोजाना फेंके जाते थे। आप बजाते खुद हर जुमा को खानकाह के तमाम हुजरों की सफाई कराते और माल होता उसे फुकरा में तकसीम कते उसके बाद ही नमाज जुमा की अदायगी के लिए तशरीफ ले जाया करते थे। हर रोज महबूब इलाही की बारगाह में बेशुमार दौलत आया करती थी, मगर आप शाम तक गरीबों में तकसीम कर दिया करते थे। जिसकी वजह से इस दौर के हुक्मरां हैरान व शिश्दर थे, मगर आपके जाने के बाद भी वह सिलसिला चलता आ रहा है। महबूब इलाही की बारगाह में पूरे साल लंगर और रमजान के दिनों में सहरी व अफतार हजारों की तादाद में जायरीन किया करते हैं। आपकी खानकाह से बादशाहों नवाबों, सरमायादारों ने खुब खुब फैज हासिल किया और मुख्तलिफ साहिबे हैसियत लोगों ने आपकी अजीम खानकाह तामीर कराई। महबूब इलाही से काफी बादशाहों और नवाबों ने खानकाह की तामीर करने की इजाजत तलब की थी मगर इजाजत नहीं दिया करते थे। चुनांचे अमादुल मलिक जियाउददीन वकील ने शिफारिश के जरिये महबूब इलाही से खानकाह तामीर कराने की इजाजत ले ली मगर आपने फरमाया मैं इजाजत इसलिए नहीं देता कि इसमें एक राज पोशिदा है वह ये कि जो शख्स इस जमीन पर इमारत तामीर करायेगा वह जिन्दा नहीं रह सकता। और ऐसा हुआ भी जब खानकाह का तामीरी काम मुकम्मल हो गया तो जियाउददीन वकील ने मजलिस समा का इंएकाद किया। समा में महबूब इलाही मय मुरीदीन खानकाह में तशरीफ लाये समा के दौरान जियाउददीन वकील को ऐसा वजद तारी हुआ कि वह महबूब इलाही के जानो पर सर रख कर रहमत हक से जा मिले। फिरोज शाह तुगलक मो शाह बादशाह नवाब खुर्शीद जाह बस्त, सुल्तान मो बिन तुगलक जैसे हुकमरानों ने महबूब इलाही की दरगाह को तामीर कराया। महबूब पाक का फैजान अब भी जारी है। नुमाइंदे से खुसूसी गुफ्तुगू करते हुए सै. मजहर अली निजामी ने बताया कि पूरे रमजान में ऐ हजार रोजेदार दरगाह इहाते में अफतार किया करते हैं जब कि इस तादाद में जुमेरात और इतवार के दिनों में जबरदस्त इजाफा हो जाया करता है। ये सारे इंतेजामात हमारे यहां खुददाम हजरात की एक कमेटी हजरत निजामुददीन औलिया दरगाह कमेटी के जरिये ये सारे इंतेजामात किये जाते हैं। जो जायरीन नजर पेश करते हैं उसी के जरिये अफतार का नजम होता है। आम दिनों में तो लंगर का नज्म होता है और रमजान में अफतार का नज्म बाजब्ता किया जाता हैं दरगाह का मंजर रमजान में बिल्कुल ही मुख्तलिफ होता है। चरागां किया जाता है। इबादात का सिलसिला ब दस्तूर जारी रहता है। तरावीह 27 रमजान को मुकम्मल हुआ करती है। उसके बाद दो दिनों 26 और 27 रमजान को दरगाह की मस्जिद खिल्जी में शबीना का इंएकाद होता है। जिसमें सहरी के अलावा जरूरियात के सारे इंतेजामात बहुत ही बेहतर तरीके से किये जाते हैं। इमाम मस्जिद दरगाह सै सैफुल इस्लाम निजामी ने बताया कि माहे रमजान का सारा मामूल तब्दील हो जाता है। और इबादात का सिलसिला जारी व सारी रहता है रोजेदारों से पूरी दरगाह भरी रहती है तकरीबन डेढ सौ अफराद के अफतार का नज्म हमारे हुजरे के सामने ही किया जाता है। गुजिश्ता आठ बरसों से बाजब्ता बुजुर्गो की रवायत के मुताबिक मेहमानों को दस्तरख्वान पर बिठाकर अफ्तार कराया जाता है। यहां 27 रमजान तक हाफिज मिकदाद और हाफिज अबुबकर तरावीह पढाते हैं अब तरावी मुकम्मल होने के बाद शबीना का आगाज हो चुका है।रोज़ो के लिये इख़लास और इतबा हज़रत सरवरे आलम सल0 ज़रूरी है। रसूलल्लाह सल0 ने फ़रमाया ईमान और एहसान के साथ जिस ने माहे रमज़ान के रोज़े रखे अल्लाह ताला उसके तमाम गुनाहों को माफ़ फरमाता है।’’ रमज़ानुल मुबारक रहमत का अज़ीम महीना में तौबा और इस्तग़फ़ार की कसरत करें दुनिया और आखि़रत की आफ़ात व मुसीबत से निजात मिल जाएगी। अल्लाह ताला फ़रमाता है! तुम्हें जो कुछ मुसीबते पहुंची है वह तुम्हारे अपने हाथो का बदला है। और वह तो बहुत सी बातो को दर गुज़र फ़रमाता देता है। अल्लाह ताला का इरशाद है। ऐ ईमान वालो अल्लाह के सामने सच्ची तौबा करो
कुरआन करीम की कसरत से तिलावत करें चूकि कुरआन पाक रमज़ानुलमुबारक में नाज़िल हुआ है। अल्लाह ताला के रसूल सल0 रमज़ानुल मुबारक में कुरआन पाक का दौर फ़रमाते है। सदकात व ख़ैरात की कसरत करें सदक़ात का सवाब सत्तर गुना ज्यादा बढ़ा दिया जाता है। इस मुबारक माहे रमज़ान में नमाज़े बजमाअत पाबंदी से अदा करें एक नमजा से दूसरी नमाज़ एक जुमा से दूसरा जुमा एक रमज़ान से दूसरे रमजानुलमुबारक तक के गुनाहों को अल्लाह ताला माफ़ फ़रमाता है, साथ ही नमाज़ तहज्जुद का एहतेमाम करें और दुआओं का भी एहतेमाम करें क्योकि रोज़ा दार की दुआ इफ़्तार से क़ब्ल रद नही होती। अपने भाइयों को नेकी का हुक्म करना। बुराई से रोकना। दावत व तबलीग़ का काम ज्यादा करना। मालिके हक़ीक़ी की इबादत के लिये इंसान में तक़वा पैदा हो तो खु़दा की इबादत व अताअत और फ़रमाबरदारी की लिज्जत महसूस होती है। तक़वा यह है कि इनसान हराम चीज़ो से इजतनाब करे। रोज़ा एक ऐसी इबादत है कि कोई भी दूसरी इबादत इस का बदल नही बन सकता
हज़रत आयशा सिद्दीक़ रज़ी अल्लाह अनहा से रवायत है कि रसूल अल्लाह सल0 शाबान की महीने का इतना एहतेमाम न फ़रमाते फिर जब रमज़ानुलमुबारक का चांद नज़र आता तो रोज़े रखने लगते। रमज़ानुल मुबारक नेकियों का महीना हे इस माहे मुबारक में अपने मुलाज़मीन के साथ नेहायत नरमी और शफ़क़त के साथ पेश आना चाहिए अब अपने नफ़्स पर कन्ट्रोल करना हमारा काम है जमीआ अहले इस्लाम यह अज़्म कर लें तो इस मुक़द्दस महीने का साया हम हम पर ऐसा कि हमेशा के लिए दुनिया की मुसीबते और आखि़रत के अज़ाब से निजात पालेंगे अल्लाह ताला हम सब मुसलमानो को अमल सालेह की तौफ़ीक़ अता फ़रमाएं। आमीन!