कंगाली की कगार पर कांग्रेस कैसे करेगी मालदार भाजपा का मुक़ाबला
नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी आजकल वित्तीय संकटों से जूझ रही है। कांग्रेस के पास इतना पैसा नहीं है कि वह 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी को 2019 के चुनावों में चुनौती दे सके। पिछले पांच महीनों में कांग्रेस नेतृत्व ने कई राज्यों में अपने कार्यालयों को चलाने के लिए जरूरी फंड भेजना बंद कर दिया है। इस मामले की जानकारी रखने वाले कई कांग्रेस पदाधिकारियों ने नाम गोपनीय रखने की शर्त पर बताया कि कांग्रेस ने अपने नेताओं से पार्टी के लिए चंदा बढ़ाने और खर्चों में कटौती करने के लिए कहा है। राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी में कारोबारियों की ओर से आने वाले पैसे में गिरावट आ रही है। पैसे की समस्या इतनी विकराल है कि कांग्रेस पार्टी को अपने एक उम्मीदवार की मदद के लिए चंदा मांगकर फंड का इंतजाम करना पड़ा था।
कांग्रेस पार्टी की सोशल मीडिया प्रभारी दिव्य स्पंदन राम्या ने कहा,”हमारे पास पैसे नहीं हैं। भाजपा की तुलना में हमारे पास चुनावी बांड से पैसे बेहद कम आ रहे हैं।” बता दें कि चुनावी बांड राजनीतिक पाटियों को चंदा देने का नया पारदर्शी तरीका है। कांग्रेस के पास अब इस जरिए से जरूरत के मुताबिक पैसे नहीं आ रहे हैं। इसलिए कांग्रेस को पैसे जुटाने के लिए आॅनलाइन मदद की गुहार लगानी पड़ी थी।
हर चुनाव के साथ बढ़ी किल्लत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी ने सधी हुई रणनीति से कांग्रेस को लगभग सभी बड़े चुनावों में हार दी है। अगर गिनती की बात करें तो भाजपा अपनी सहयोगी पार्टियों के साथ इस वक्त 20 राज्यों में राज कर रही है। इनमें से कई सबसे पुरानी पार्टी यानी कांग्रेस से ही अलग होकर भाजपा के साथ आई हैं। ये बात निर्विवाद रूप से मानी जा सकती है कि साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में मोदी सबसे लोकप्रिय चेहरा होंगे। कांग्रेस अब सिर्फ दो ही राज्यों में काबिज है जबकि 2013 में वह 15 राज्यों पर शासन कर रही थी।
बढ़ते खर्च से बढ़ी समस्या: कांग्रेस ने मार्च 2017 में खत्म होने वाले वित्तीय वर्ष में भाजपा की तुलना में एक चौथाई कम फंड जुटाया है। भाजपा ने इस दौर में करीब 65,317 करोड़ रुपये चंदा हासिल किया है। इस कमाई में पिछले साल की तुलना में करीब 81 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। लोकतंत्र सुधार संगठन के मुताबिक, कांग्रेस ने इस दौर में 14,213 करोड़ रुपये ही जुटाए हैं। इसमें पिछले साल की तुलना में करीब 14 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।
लगातार हार से दूर हुए समर्थक: इस साल से पहले कांग्रेस के बड़े नेता पूर्वी राज्य के चुनाव का नेतृत्व करने के लिए समय से सिर्फ इस वजह से नहीं पहुंच सके थे क्योंकि पैसे की कमी के कारण पार्टी उनके लिए फ्लाइट में टिकट बुक नहीं करवा पाई थी। यही कारण रहा कि त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में पार्टी का प्रचार भाजपा की तुलना में बेहद फीका रहा। एक पार्टी पदाधिकारी ने बताया कि पार्टी की इस दुर्गति का कारण सिर्फ यही है कि लगातार हार के कारण हमारे समर्थक हमसे दूर होने लगे हैं। अब इस संकट से निपटने के लिए यात्रा व्यय के अलावा पार्टी दफ्तरों में आने वाले मेहमानों की चाय के खर्च में भी कटौती की जा रही है।