बंगाल में भारी हिंसा के बाद भी भाजपा बनी नंबर दो
मृत्युंजय दीक्षित
बंगाल का राजनैतिक परिदृश्य आंतरिक रूप से बदलाव की ओर अग्रसर हो रहा है। जिस समय पूरे देश की नजर कर्नाटक के रण पर लगी हुयी थी ठीक उसी समय पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव भारी हिंसा के बीच संपन्न हो रहे थे। मीडिया चैनलों में कर्नाटक को लेकर दिन भर खबरंें और बहसें चलतीं रही लेकिन बंगाल में जिस प्रकार लोकतांत्रिक मर्यादाओं का घोर हनन हुआ तथा हिंसा का नंगा नाच हुआ तब वहां की हृदय विदारक घटनाओं के प्रति किसी भी दल ने निंदा के प्रस्ताव पारित नहीं किये । पंचायत चुनावों के दौरान पूरा का पूरा बंगाल राजनैतिक कार्यकर्ताआंें की हत्याओं से थर्रा उठा। बंगाल का राज्य निर्वाचन आयोग सरकार का अंधभक्त बना रहा था तथा वहां के चुनावों में तृणमूल कार्यकर्ताओं का खूंखार चेहरा लोकतंत्र की हत्या करता रहा और उसके प्रति महागठबंधन के नेता पूरी तरह से मौन साधकर बैठ गये थे । वह भी तब जब महागठबंधन के महा समर्थक कांग्रेस व सीपीएम के कार्यकर्ताओं व अल्पसंख्यकों की भी सरेआम हत्यायें हो रहीं थी। तृणमूल कार्यकर्ताओं ने जिस प्रकार से लोकतंत्र की हत्या की उस पर सभी दलों के लोग मूक दर्शक बने बैठे रहे। भारी हिंसा के बीच तृणमूल कांग्रेस के लोगोें ने लगभग आधा चुनाव तो निर्विंरोध ही जीत लिया। वहां पर जिस प्रकार से मतपत्रों को फाड़ा गया, लूटा गया, बूथ कैप्चरिंग की गयी वह हमें उस समय की याद दिलाता है जब देश में बैलेट से ही चुनाव कराये जाते थे। बंगाल की हिंसा में दो दर्जन से अधिक लोग मारे गये तथा कई दलों के कार्यकर्ता व चुनाव अधिकारी तथा कर्मचारी बुरी तरह से घायल हो गये। पंचायत चुनाव पूरी तरह से आतंक और भय के साये में संपन्न हुये । तृणमूल के कार्यकर्ताओं का इतना भय था कि दूसरे दलांे के उम्मीदवार अपना पर्चा तक नहीं भर पाये थे। 40 फीसदी से अधिक चुनाव तृणमूल ने इसी प्रकार से जीत लिया। आज वहीं ममता बनर्जी बीजेपी को बता रही हैं कि देश में लोकतंत्र की हत्या हो रही है । बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पहले अपने ही घर में झांककर देखना चाहिये कि वहां पर क्या चल रहा है। आज पूरा बंगाल त्राहि- त्राहि कर रहा है और बंगाल की जनता सुअवसर की प्रतीक्षा में है कि वह अपने ऊपर हो रहे जुल्म और सितम का वांेट की ताकत से बदला ले सके।
पंचायत चुनावों में हुई भारी हिंसा के बावजूद बंगाल का आंतरिक राजनैतिक परिदृश्य अब धीरे- घीरे ही सही मगर बदलाव की ओर अग्रसर हो रहा है। बंगाल में अब वामपंथ अपना अंतिम अस्तित्व बचाने के लिये संघर्ष कर रहा है। वहीे अब बंगाल भी कांग्रेस मुक्त की ओर अग्रसर हो रहा है। बंगाल में अब बीजेपी बड़ी ताकत के रूप में उभरकर सामने आ रही है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का यदि मुस्लिम तुष्टीकरण का यही रवैया रहा और बंगाल की धरती पर हिंदुओं के प्रति विष वमन होता रहा तथा हिंदू जनमानस पर अत्याचार होते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब बंगाल में एक न एक दिन बीजेपी का राज आ जायेगा। आज बंगाल एक बहुत तेजी से पिछड़ा हुआ राज्य बनता जा रहा हैं।बंगाल में विकास की किरण नहीं अपितु हिंसा व दंगों की ज्वाला से दहक रहा है। उसी बंगाल के पंचायत चुनावों में आज बीजेपी दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी है। बंगाल के पंचायत चुनावों में बीजेपी का इस प्रकार से उभरना वास्तव मे वामपंथियों और कांग्रेस के लिये खतरे की घंटी बन चुका है। राज्य में विगत 37 वर्षो से शासन कर चुका वामपंथ अब तीसरे व कांग्रेेस चैथे स्थान पर पहुंच गयी है। राज्य में कुल 31, 802 ग्राम पंचायत सीटों में से तृणमूल कांग्रेस ने 20 हजार 848 सीटों पर जीत हासिल की वहीं बीजेपी नंबर दो की पार्टी बनकर उभरी है। बीजेपी ने पांच हजार पचास से अधिक सीटों पर विजय प्राप्त कर ली है । पिछले 25 वर्षो में ऐसा पहली बार हुआ है कि बीजेपी राज्य के लगभग हर जिले में ग्राम पंचायत स्तर पर जीतने में सफल रही है। इससे पहले भाजपा ने यहां के ग्रामीण इलाकों मेें मंदिर आंदोलन के दौरान 1992 में जीत हासिल की थी। माकपा तीसरे स्थान पर खिसक गयी है। उसे केवल 1306 गाम पंचायतों में जीत हासिल हुई है जबकि कांग्रेस को केवल 918 ग्राम पंचायतों में फतह हासिल हुई है। इससे अधिक तो वहां के निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल रहे हंै। वहीं दूसरे स्तर के पंचायत चुनावों में भी बीजेपी ने वामपंथियों व कांग्रेस की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन किया हैं। दूसरे स्तर के पंचायत समिति के चुनावों में बीजेपी 40 स्थानों पर सफल रही है जबकि माकपा को केवल 13 और कांग्रेस को दो ही सीटों पर सफलता मिली हैं। इन सभी चुनावों में कई जिलों यथा पुरूलिया , झाड़ग्राम और माल्दा जिलों में बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के बीच काफी कांटे का मुकाबला रहा।
पंचायत चुनावों के परिणामोें से साफ संकेत जा रहा है कि यदि बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगावाकर अर्धसैनिक बलांे के नेतृत्व में तथा वहां के चुनाव आयोग को स्वतंत्र व निष्पक्ष बनाने के बाद चुनाव संपन्न कराये जायें जिसमें सभी दलों के उम्मीदवार निर्भीक होकर अपना पर्चा भर सकें और सभी दल अपना प्रचार निर्भीक होकर कर सके उसी समय बंगाल को ममता , वामपंथ और कांग्रेस की दोमुंही विषैली राजनीति से मुक्ति मिल जायेगी। आज पूरा बंगाल ममता की तुष्टीकरण की राजनीति से कराह रहा है। वहां का हिंदू जनमानस बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की तरफ आशा भरी निगाहों से देख रहा है।
अभी हाल ही दिल्ली में बीजेपी कार्यालय मेें आयोजित एक समारोह में पीएम नरेंद्र मोदी ने बंगाल में हुई हिंसा के प्रति बयान दिया और कहा था कि लोकतंत्र की वास्तविक हत्या तो बंगाल में हो रही है। समारोह मंे पीएम मोदी ने कहा कि बंगाल के पंचायत चुनावों में जो कुछ हुआ वह लोकतंत्र के लिये चिंता का विषय है। बंगाल में बैलेट पेपर लूटे गये, वोट डालने से रोका गया। पश्चिम बंगाल ने एक शताब्दी तक देश को दिशा देने का काम किया है। लेकिन ऐसे महान लोगों की धरती को लहुलूहान कर दिया गया। न्यायपालिका और सिविल सोसाइटी सभी को बंगाल में अपनी भूमिका अदा करनी होगी। पीएम नरेंद्र मोदी ने जिस प्रकार से बंगाल के लिये चिंता प्रकट की व पहली बार बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनजी पर तीखा हमला बोला उससे उनके आगे आने वाले दिनों में बंगाल मिशन की छाप व संकेत बनकर दिखलायी पड़ रहे हैं। आज बंगाल में निश्चय ही भाजपा का उभार बढ़ता दिखलायी पड़ रहा है। अभी हाल ही में बंगाल में नवपाड़ा विधानसभा और उलुबेरिया लोकसभा उपचुनावों में भी भाजपा दूसरे स्थान पर रही थी। यहां पर वामपंथ और कांग्रेस बीजेपी से काफी चीचे चले गये थे। 2016 के बंगाल विधानसभा चुनावांे में बीजेपी के वोट शेयर मेें 6 फीसदी की वृद्धि हुई और तीन विधानसभा सीटों पर सफलता हासिल की जबकि छह सीटों पर उसके सहयोगी जीतने में सफल रहे। बंगाल में बीजेपी का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है। संभवतः यही कारण है कि ममता बनर्जी भाजपा व पीएम नरेंद्र माूेदी के खिलाफ इतनी तीव्रता व आक्रामकता के साथ मुखर हो रही हैं। ममता बनर्जी नोटबंदी व जीएसटी को लेकर कठोर तो हैं ही साथ ही बंगाल में केंद्रीय योजनाओं को भी लागू नहीं होने दे रही हैं। अभी सरकार ने प्रधानमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना लागू करने का ऐलान किया जिसका उन्होंने विरोध कर दिया। मोदी व बीजेपी विरोध के नाम पर बंगाल में विकास को रौंदा जा रहा हैं। ममता की मुसिलम परस्त राजनीति के कारण हिंदू समाज त्राहिमाम कर रहा है। बंगाल के साम्प्रदायिक दंगों की चर्चा यहां के राजनैतिक दल नहीं करते। विकास के धन से मस्जिद के इमामों को सैलरी दी जा रही है। कई जिलों में दंगों के दौरान हिंदू संपति का बंपर नुकसान हुआ है तथा हिंदू महिलाओ व युवतियों का सरेआम चीरहरण हो रहा है। देर रात मोमबत्ती जलाकर प्रदर्शन करने वाले लोगों को बंगाल की घटनायंे आहत नहीं कर रही हैं।
आज वह लोग भी बंगाल के लिए कुछ नहींे बोल रहे जिनके कार्यकर्ताआंे को जिंदा तक जला दिया गया। पंचायत चुनावों की हिंसा के दौरान माकपा कार्यकर्ता को भी पत्नी सहित जिंदा जला दिया गया था। बंगाल में ऐसी विभत्स घटनायें घटी हैं कि उनका वर्णन नहीं किया जा सकता लेकिन कांगे्रस व वामपंथियों को यह चीतकार नहीं सुनायी पड़ रहा है। आज सभी दल कर्नाटक के रण में तो कूद पड़े हैं लेकिन बंगाल की कोई चर्चा ही नहीं कर रहा है। जब बहुत हिंसा के समाचार फैले औेर कुछ चर्चा शुरू हुई तब एक तृणमूल संासद ने बेहद शर्मनाक बयान दिया कि वाममोर्चा के शासन में तो 400 लोग मारे गये थे ? क्या यही लोकतंत्र है, क्या यह तानाशाही नहीं है। बंगाल में केवल बीजेपी ही है जो वर्तमान समय में ममता के लोकतंत्र से लड़ रही है। बंगाल में वामपंथ और कांग्रेस का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। बंगाल में आने वाला समय बीजेपी का ही है।
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