कर्नाटक जीतने वाले से क्यों हो जाती है दिल्ली दूर?
कर्नाटक की 222 सीटों पर शनिवार को वोटिंग हुई, जिसमें आम लोगों के साथ-साथ सीएम सिद्धारमैया, बीएस येदियुरप्पा, एचडी देवगौड़ा समेत राज्य के लगभग सभी बड़े नेताओं और हस्तियों ने वोट डाले. उधर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से जब ये सवाल पूछा गया कि कर्नाटक जीतने वाली पार्टी लोकसभा चुनाव हार जाती है, तो उन्होंने इसे कोरा अंधविश्वास करार दिया. हालांकि कर्नाटक के बीते चुनावी इतिहास पर नज़र डालें तो ये बात उतनी भी गलत नज़र नहीं आती.
बीते दो दशक इस बात की गवाही देते हैं कि कर्नाटक में विधानसभा चुनाव जीतने वाली पार्टी को दिल्ली की गद्दी नसीब नहीं होती. साल 2013 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो कांग्रेस ने कर्नाटक में सरकार बनाई लेकिन 2014 लोकसभा चुनावों में उसे इतिहास की सबसे बड़ी हार का समाना करना पड़ा. 2013 कर्नाटक चुनावों में बीजेपी को 224 में से 40 सीट ही मिली थीं, जबकि लोकसभा 2014 में सिर्फ एक साल बाद ही उसने 28 लोकसभा सीटों में से 17 पर कब्जा जमाया.
2008 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो तब राज्य में बीजेपी ने पहली बार सरकार बनाई थी. हालांकि बीजेपी को 2004 के बाद लगातार 2009 लोकसभा चुनावों में भी हार का सामना करना पड़ा. 2004 के कर्नाटक चुनाव में जनता दल सेक्यूलर (जेडीएस) आई तो उसी साल हुए लोकसभा चुनाव में जेडीएस को बुरी हार मिली. थोड़ा और आगे जाएं तो साल 1999 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने कर्नाटक में सरकार बनाई थी हालांकि 1999 के लोकसभा चुनाव में उसकी हार हुई.
साल 1994 की कहानी भी कुछ ऐसी ही है तब जेडीएस ने कर्नाटक में सरकार बनाई लेकिन साल 1998 के लोकसभा चुनाव में वो हार गई. इससे पहले 1989 में भी कांग्रेस कर्नाटक में जीती थी लेकिन साल 1989 में लोकसभा चुनावों में उसे हार का सामना करना पड़ा. हालांकि अमित शाह का कहना है कि 1967 से पहले कांग्रेस कर्नाटक में भी थी और केंद्र में भी उसकी सरकार थी इसलिए इसे संयोग माना जाना चाहिए.
कांग्रेस के लिए पंजाब की जीत के बाद कर्नाटक इसलिए महत्वपूर्ण राज्य है क्योंकि वहां उसे अपनी सत्ता बचानी है. ये आखिरी बड़ा दक्षिण भारतीय राज्य है जहां कांग्रेस की सरकार है. पीएम मोदी इस पर लगातार तंज कस रहे हैं और बोल रहे हैं कि वह पीपीपी (पंजाब, पुडुच्चेरी, परिवार) पार्टी बन जाएगी. यहां पर जीत मिल जाती है तो इससे आगामी लोकसभा चुनाव 2019 के आलावा साल के आखिर में होनेवाले मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान के चुनाव में भी कांग्रेस कॉन्फिडेंस के साथ उतरेगी.
उधर बीजेपी इस बात की कोशिश कर रही है कि दक्षिण भारत में कांग्रेस के इस आखिरी किले को किसी भी कीमत पर ध्वस्त किया जाए. आंध्र प्रदेश में एन चंद्रबाबू नायडू का साथ छूटने के बाद बीजेपी अब यह उम्मीद कर रही है कि कर्नाटक में उसकी ये जीत दक्षिण की ओर कदम को एक नया जोश देगी. इसके साथ ही, बीजेपी विरोधियों और सहयोगी दलों को 2019 के चुनाव से पहले ये संदेश देना चाहती है कि वह अब देश की सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी है.