विश्वस्तरीय वित्तीय समावेशन कन्सल्टिंग फर्म माइक्रोसेव ने पायलट परियोजना डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर इन फर्टीलाइज़र का मूल्याकन किया जिसका लाॅन्च 11 राज्यों के 14 ज़िलों में किया गया था। इस अध्ययन से पता चला है कि डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर इन फर्टीलाइज़र सिस्टम के तहत किसानों के लिए लेनदेन की स्थिति में सुधार हो रहा है। इसके तहत आधार आधारित प्रमाणीकरण में ज़बरदस्त बढ़ोतरी हुई है, 62 फीसदी मामलों में पहली बार में, 97 फीसदी मामलों में तीसरी बार में और शेष मामलों में तीन से अधिक बार में यह प्रमाणीकरण सफल हो रहा है। आधार प्रमाणीकरण की असफलता दर मात्र 3.4 फीसदी है।

नीति आयोग एवं उर्वरक विभाग के अनुरोध पर माइक्रोसेव ने यह अध्ययन किया है। माइक्रोसेव ने एक साल में तीन राउण्ड्स में मूल्यांकन किया, जिसकी शुरूआत सितम्बर 2016 में हुई। माइक्रोसेव ने 427 रीटेलरों और 5,659 किसानों के साथ मात्रात्मक अध्ययन किया। इसके अतिरिक्त 138 रीटेलरों, 185 किसानों एवं उर्वरक सब्सिडी से संबन्धित ज़िला अधिकारियों, उर्वरक कंपनी प्रतिनिधियों और ज़िला कन्सलटेन्ट्स के साथ विस्तार से विचर-विमर्श किया है।

माइक्रोसेव का अध्ययन दर्शाता है कि रीटेलरों का कमीशन दोगुना करने के साथ-साथ नए रीटेलरों को लाइसेंस जारी करना योजना के राष्ट्रीय विस्तार के लिए लाभकारी होगा। माइक्रोसेव के विशेषज्ञों का मनना है कि परियोजना का आगे बढ़ना निश्चित रूप से फायदेमंद साबित होगा परंतु यह राष्ट्रीय विस्तार चरणबद्ध तरीके से करना ज़्यादा असरकारी होगा।

देश भर में इसकी शुरूआत से पहले सरकार ने हिमाचल प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, हरियाणा, केरल, महराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आन्ध्रप्रदेश, गुजरात और राजस्थान के 14 ज़िलों में पायलट का लाॅन्च किया।

अध्ययन दर्शाता है कि आधार प्रमाणिकता की असफलता की स्थिति में या फिर आधार की अनुपलब्धता की स्थिति में रीटेलर किसान के लेनदेन को अन्य माध्यम से POS मशीन में समायोजित करता है जिससे लेनदेन के समय में कमी की जा सके और दुकान में किसानों की भीड़ का प्रबंधन किया जा सके। अध्ययन में यह भी पाया गया है कि रीटेलर किसान की भीड़ का प्रबंधन करने के लिए सरकार द्वारा आयोजित एक से ज़्यादा POS मशीन का उपयोग करने के खिलाफ़ है। यह विरोध इसलिए है कि रीटेलर्स को एक से ज्यादा POS मशीन को चलाने के लिए एक अतिरिक्त कर्मचारी का वेतनभार उठाना पड़ेगा।

अध्ययन से एक सकारात्मक तथ्य भी पता चला है कि 98 फीसदी किसानों से उतनी ही राशि ली गई, जितनी लेनदेन की रसीद में दर्शाई गई थी। 54 फीसदी रीटेलर और 59 फीसदी किसान उर्वरक वितरण की मैनुअल प्रणाली के बजाए क्ठज्.थ् को पसंद करते हैं। 40 फीसदी रीटेलरों और 32 फीसदी किसानों ने बताया कि वे उर्वरकों की खरीद बिक्री के लिए कैशलैस यानि नकदरहित लेनदेन को पसंद करते हैं।

सरकार ने यूरिया का उद्योगों एवं देश के बाहर डायवर्ज़न को सीमित करने के लिए क्ठज्.थ् योजना का आरंभ किया है। अध्ययन से साफ है कि सर्वेक्षण किए गए 93 फीसदी या 396 रीटेलरों को प्रशिक्षण मिला है। इनमें से 90 फीसदी यानि 356 रीटेलरों को लगा कि यह प्रशिक्षण उनके लिए फायदेमंद है जो उन्हें पाॅइन्ट-आॅफ-सेल डिवाइस के संचालन और उसके फीचर्स समझने में मदद करता है।

वहीं दूसरी ओर किसानों में इस बारे में जागरुकता बढ़ाने की आवश्यकता है 66 फीसदी किसानों का कहना है कि उर्वरक खरीदने के लिए आधार कार्ड की उपलब्धता की अनिवार्यता की जानकारी रीटेलर के दुकान पर आने के बाद ही पता चली। उन्हें यह जानकारी किसी विश्वसनीय स्रोत जैसे सरकार या पंचायत के अधिकारियों से नहीं मिली। ,

अध्ययन से यह भी पता चला है कि अनौपचारिक शिकायत निवारण प्रणाली क्ठज्.थ् योजना के राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार की स्थिति में भारी मात्रा में रीटेलर की शिकायतों का निवारण करने में अप्रभावी हो जाएगी। इसके साथ ही हाल ही में लाॅन्च किए गए टोल फ्री नंबर में शिकायत निवारण प्रणाली के लिए उचित फीचर्स की कमी है जैसे क्षेत्रीय भाषाओं में बातचीत की सुविधा तथा शिकायत निवारण को टैªक करने के लिए सही प्रणाली।