ब्लात्कार-हत्या की घटनाओं में समाज भी गुनाहगार
रविश अहमद
इक आह भरी होगी, तुमने न सुनी होगी
जाते जाते उसने आवाज़ तो दी होगी।।
मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह की गायी ग़ज़ल का यह मिसरा आज एक मासूम बच्ची के लिये न्याय की मांग कर रहे लोगों की तख़्तियों का स्लोगन बना है। वाकई क्या गुज़री होगी सिर्फ 8 साल की बच्ची पर। मासूमियत की उम्र में किसका गुस्सा झेला है उस बच्ची ने, कौन लोग असल ज़िम्मेदार हैं उस छोटी बच्ची पर हुए ज़ुल्म के? क्या सिर्फ वो हैवान जिन्होने यह बर्बर कुकृत्य अन्जाम दिया है या फिर वो लोग जो लगातार समाज में नफरतों के बोये बीजों को सींच रहे हैं। याद रखिये यह किसी के साथ भी हो सकता है वो तो मर गयी पंहुच गयी वहां जहां निर्भया और एक 8 महीने की मासूम बच्ची पहले से मौजूद हैं अब उसे दर्द से छुटकारा मिल गया होगा, लेकिन उन करोड़ों बच्चियों की हिफाज़त कौन करेगा जो हमारी बहन-बेटी के रूप में हमारे साथ हैं। छोटे कपड़े पहनना, सजना संवरना बन्द करा दो, दरवाज़े यहां तक कि खिड़कियां भी बन्द कर दो अपने घरों की क्या पता कहां से कोई दरिन्दा आ जाये।जाये।
क्या यह सब उपाय काफी हैं महिला अस्मिता की सुरक्षा के लिये? निर्भया को रेप करने के बाद भी दरिन्दों का मन नही भरा तो उसके प्राइवेट पार्ट में लोहे की रॉड डाली गयी मतलब मानसिकता का अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल कि ऐसा क्यों? उन्नाव में सत्ताधारी दल के विधायक पर आरोप है कुछ तो कारण ज़रूर होगा अन्यथा राजनीतिक षड़यन्त्र के चलते एक पिता और चाचा अपने घर की नाबालिग़ लड़की की अस्मिता को यूं शर्मिन्दा न करते और फिर ज़ुल्म की इंतहा सबने देखी कि युवती के पिता को इतना पीटा गया कि पुलिस हिरासत में उसकी मौत हो गयी। पिता की जान जाने के बाद भी कोई मामले की गहराई को सिर्फ राजनीतिक माने तो यह उसकी नादानी ही कही जायेगी। सूरत में एक बच्ची मिली उम्र 11 साल शरीर पर 86 चोट के निशान, बलात्कार की पुष्टि इसके बावजूद यह दावा किया जाये कि महिलाओं का सशक्तिकरण हो रहा है तो इससे बड़ा धोखा हम खुद को कहां दे सकते हैं
देश की राजधानी दिल्ली में निर्भया के हृदयविदारक कांड के बाद भी सरकार की लापरवाही का अंदाज़ा आप इस बात से लगाईये कि इस बार राजधानी में शिकार हुई कुल आठ माह की गुड़िया।
अभी हाल ही में जम्मू के कठुआ की मज़लूम आसिफा और उन्नाव की नाबालिग युवती को इन्साफ के लिये आवाज़ बुलन्द होना शुरू ही हुई थी कि गुजरात के सूरत से फिर एक शर्मसार करने वाली घटना सामने आयी जिसमें 11 साल की बच्ची को दरिन्दों ने नोच नोच कर मार दिया, कितनी बर्बरता की गयी होगी 11 साल की बच्ची के साथ कि उसके शरीर पर 7 दर्जन से ज़्यादा चोट के निशान थे।
किसे दोष दिया जाए, सरकार को या समाज को?
अभी लोगों का गुस्सा शान्त नही हुआ था और शासन प्रशासन इस मुद्दे पर कुछ सख़्ती करने की सोच ही रहा होगा इसी बीच उत्तर प्रदेश के जनपद एटा में मात्र 4 दिन के भीतर दो अलग अलग घटनाओं में नाबालिग बच्चियों से दुष्कर्म और हत्या रिपोर्ट की गयी।
समाज बदल रहा है जब मुहब्बत की शमां रौशन करने वालों पर पाबन्दी की कोशिशें और नफरत फैलाने वालों के प्रति नरम व्यवहार किया जाता है तब ऐसे नतीजे आने स्वाभाविक हैं। जब भारतीयों को हिन्दू-मुस्लिम की नज़र से देखा जाने लगे तो ऐसी घटनाएं होनी लाज़मी हैं। जब सरकार आम आदमी को सिर्फ वोटर समझने लगे तब ऐसा होना स्वाभाविक है । जब सिस्टम पर सवाल खड़े होने लगें यहां तक कि न्यायपालिका भी राजनीति का शिकार होने लगे तो फिर हम कैसे कल्पना कर सकते हैं कि हम एक स्वस्थ समाज का हिस्सा हैं। सोचना आम आदमी को है कि कहां गुम हो गयी है शर्मो हया, कहां ग़ायब हो गया है भाईचारा, अपराधियों को अब कानून का डर क्यों नही है? क्यों बुज़ुर्गों की बैठकें हमारी चैपालों-चौराहों से हट गयी हैं। आधुनिकता का अगर यह असभ्य समाज है तो हमारा अनपढ़ असभ्य समाज ही ठीक था और अगर हमें वास्तव में आधुनिक होना है तो बैर और नफरत को छोड़ तरक्की के रास्ते खोजने होगें नही तो कोई निर्भया कोई आसिफा और न जाने कितनी मासूम बेकसूर वहशियत और हैवानों की भेंट चढ़ती रहेगीं।