दलितों- आदिवासियों के संरक्षण के लिए अध्यादेश लाए सरकार: दारापुरी

लखनऊ: उ0 प्र0 में जारी दलितों के दमन पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने, दलितों पर लादे मुकदमों को वापस लेने, भारत बंद में हुई हिंसा की उच्चस्तरीय जांच कराने, उस हिंसा के नाम पर गिरफ्तार सभी को तत्काल बिना शर्त रिहा करने व बंद के दौरान मरे लोगों को 20 लाख रू0 मुआवजा देने, एस-एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए विधि विरूद्ध आदेश के प्रभावों को रोकने के लिए अध्यादेश लाने और भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर समेत उसके सभी साथियों पर लगी रासुका वापस लेकर उन्हें तत्काल रिहा करने की मांग पर जन मंच अन्य संगठनों के साथ मिलकर 12 अप्रैल को भारत के राष्ट्रपति को मांग पत्र सौंपेगा और उनसे संवैधानिक प्रमुख तथा दलित होने के नाते देश में भाजपा की केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा दलितों, आदिवासियों और समाज के कमजोर तबकों के विरूद्ध छेड़े युद्ध पर तत्काल रोक लगाने की मांग करेगा। यह बातें आज प्रेस को जारी बयान में जन मंच के संयोजक पूर्व आई0 जी0 एस0 आर0 दारापुरी ने कहीं।

उन्होंने जेल में बंद भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर की भूख हड़ताल का समर्थन करते हुए कहा कि मोदी और योगी सरकार अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए पूरे देश में जातीय ध्रुवीकरण की धृणित राजनीति का खेल खेल रही है। दलितों, आदिवासियों और समाज के कमजोर तबकों के विरूद्ध सरकार ने युद्ध छेड़ दिया है। अकेले उo प्रo में भारत बंद में हुई हिंसा के नाम पर हजारों दलितों के विरूद्ध फर्जी मुकदमें कायम कर दिए गए हैं। उनको गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया। उन्हें थानों में बर्बर तरीके से पीटा जा रहा है। महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गो के साथ बदसलूकी की गयी। बकायदा सूची बनाकर दलितों की हत्याएं हो रही हैं। भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर और उनके साथियों की हाईकोर्ट से जमानत होने के बाद सरकार ने रासुका लगाकर जेल में बंद कर रखा है और जेल में भी उन्हें यातनाएं दी जा रही हैं। सरकार की दमन की यह कार्यवाहियां देश और प्रदेश की शांति और सामाजिक ताने-बाने को तहस तहस कर देंगी । इसलिए योगी सरकार को प्रदेश में जारी दलितों के दमन पर तत्काल रोक लगानी चाहिए। उन्होंने कहा कि एक ऐसी सरकार जो दलितों के खिलाफ युद्ध में उतरी हो और बर्बर दमन करा रही हो उसके प्रमुख मुख्यमंत्री को बाबा साहब की जयंती पर ‘दलित मित्र’ से सम्मानित करना बाबा साहब के मिशन और उनके विचारों का अपमान है।

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की सुप्रीम कोर्ट में की गयी लचर पैरवी और एस-एसटी एक्ट के खिलाफ दी गयी दलीलों के कारण ही सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट को कमजोर करने वाला फैसला सुनाया है। यह बात खुद सरकार द्वारा दाखिल की गयी रिव्यु पेटिशन की सुनवाई में माननीय न्यायधीश ने कही है। सरकार के दलित आदिवासी विरोधी रूख के कारण सुप्रीम कोर्ट के आये फैसले से तो देश आईपीसी और सीआरपीसी को लागू करना ही असम्भव हो जायेगा। क्योंकि तब तो हर एफआईआर के दर्ज करने के पूर्व जांच करने की बात उठने लगेगी। उन्होंने कहा कि भाजपा के दलितों सासदों द्वारा लगातार लिखी गयी चिठ्ठियों से यह स्पष्ट है कि भाजपा में दलित आदिवासियों का सम्मान सुरक्षित नहीं है। इसलिए उन्हें भाजपा द्वारा करायी जा रही उपवास की नौटंकी में हिस्सेदारी करने की जगह भाजपा से इस्तीफा देना चाहिए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति दलित जाति से आते हैं और देश के संवैधानिक प्रमुख हैं , अतः उन्हें एससी-एसटी एक्ट में प्रदत्त दलितों-आदिवासियों के अधिकारों के संरक्षण के लिए तत्काल अध्यादेश लाने के लिए भारत सरकार को निर्देशित करना चाहिए।