ऐसा लग रहा है कि बीजेपी के लिए लोकसभा उपचुनावों में हार का शगुन अच्छा नहीं रहा. पार्टी ने एक तरफ इन चुनावों में अपनी प्रतिष्ठत सीटें हारीं, दूसरी तरफ हार के बाद से ही पार्टी के दलित और ओबीसी नेताओं ने संगठन और सरकार के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया है. पहले बहराइच की सांसद सावित्री बाई फूले ने प्रदेश नेतृत्व और केंद्रीय नेतृत्व को चेतावनी देते हुए लखनऊ में रैली की. अब इसी क्रम में रॉबर्टसगंज से बीजेपी सांसद छोटेलाल ने सीधे सीएम योगी और पार्टी प्रदेश नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है.

मामले में बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता चंद्रमोहन कहते हैं कि सांसद को पार्टी फोरम पर बात रखनी चाहिए थी. उनकी सरकार सबका साथ सबका विकास के नारे से चल रही है. लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि बीजेपी में सबकुछ ठीक नहीं है. मामला गंभीर है. ऐसा विरोध कोई पहली बार नहीं हो रहा है.

प्रदेश में योगी सरकार के गठन के बाद से ही पार्टी के सांसद, विधायक कई बार अपनी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते रहे हैं. इनकी शिकायत बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रधानमंत्री के दरबार तक भी जाती रही है. चाहे वह गोरखपुर हो, अमेठी, प्रतापगढ़ हो या बांदा, बाराबंकी और फतेहपुर हर जगह कहीं विधायक तो कहीं सांसद पार्टी और अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं.

अगर आंकड़ोंं को देखे तो वर्तमान लोकसभा में 121 में से 67 दलित सांसद बीजेपी के ही हैं. इनमें उत्तर प्रदेश की सभी सुरक्षित 17 लोकसभा सीटें भी शामिल हैं. वहीं यूपी की विधानसभा में 87 दलित विधायक बीजेपी के टिकट पर चुन कर आए हैं. इस लिहाज से देखें तो 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनावोंं में दलित वोट का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी के साथ गया. लेकिन गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव में बदले समीकरणों में राजनीति का मिजाज़ गड़बड़ाया है. ऐसे में मिशन 2019 की कामयाबी के जरूरी है कि बीजेपी पहले अपना घर संभाले और फिर विरोधियों के पलटवार का राजनैतिक जवाब दे.