क्या शिक्षा मित्रों का भविष्य हुआ चौपट?
रविश अहमद
उत्तर प्रदेश के 1.72 लाख रोज़गार प्राप्त नौजवान अब योगी सरकार की मेहरबानी के चलते 10,000 रू प्रतिमाह लेकर काम कर रहे हैं, जबकि इसी पौने दो लाख शिक्षकों की संख्या से विशिष्ट बीटीसी कराकर समायोजित किये गये करीब 1 लाख 35 हजार शिक्षा मित्र सहायक अध्यापक नियुक्त किये गये थे और सहायक अध्यापक के बराबर ही तनख़्वाह भी मिल रही थी कि इलाहबाद हाईकोर्ट के आदेश ने उनकी पटरी पर दौड़ती गाड़ी को उतार दिया। उन सबके लिये यह ज़िन्दगी से हुए खिलवाड़ से कम नही कहा जा सकता। सभी उलझे हुए आस लगाये हैं कि सुप्रीम कोर्ट में दायर पुनर्विचार याचिका शायद इन सबको संजीवनी दे और यें सब फिर से अपना वह सम्मान प्राप्त कर सकें जो इन्हें सरकार द्वारा ही दिया गया था।
दरअसल समायोजन के मामले में कई तकनीकी खामियां रही होगीं तभी सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी इन शिक्षा मित्रों के सहायक अध्यापक के पद पर किये गये समायोजन को रद्द कर दिये गये फैसले पर अपनी मुहर लगानी पड़ी।
इस सब में बड़ा सवाल यह है कि शिक्षा मित्रों की ग़लती क्या है क्या उनके द्वारा जबरन सहायक अध्यापकों की नौकरी छीनी गयी थी या फिर सरकार के निर्देशानुसार बिना विशिष्ट बीटीसी किये यह समायोजन हथियाया गया।
ज़ाहिर है जो भी तकनीकी अथवा कानूनी ख़ामियां रही वें सरकार की रही जिसका दंश झेल रहे हैं शिक्षा मित्र। मात्र 3500 रू से करीब 35000 रू तक पंहुचना एक शिक्षक के लिये सबसे बड़ा सपना होता है क्योंकि वह जानता है कि उसका मेहनताना कमोबेश इतना अथवा नियमानुसार प्रमोशन होकर अधिकतम 40-42 हज़ार तक ही हो सकता है जिसके लिये वह शिक्षण आरम्भ करने से पहले से ही तैयार रहता है। शिक्षण कार्य करने वाले हर उस व्यक्ति को पढ़ा लिखाकर इस क़ाबिल बनाते हैं कि वह एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर शीर्ष पदों तक पहुंच सके। एक कार में बैठने वाला सरकारी तन्ख़वाह का ड्राइवर और उसी कार में बैठा आईएएस इसी शिक्षक की देन होता है। नेता-अभिनेता, सेलिब्रिटी, वैज्ञानिक, पुलिस-प्रशासन यहां तक कि छोटे से छोटा कारोबारी हो या बड़ा उद्योगपति हो, देश को हर छोटे बड़े योगदान देने वाले की बुनियाद होते हैं शिक्षक।
देश का जो पहिया घूमता है उसकी धुरी होते हैं शिक्षक। ये प्रतिमाह 30-35 हज़ार का वेतन पाने वाले शिक्षक न केवल शिक्षण बल्कि तमाम छोटी बड़ी सरकारी योजनाओं यहां तक कि चुनावों जैसे महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न कराकर लोकतंत्र में अपना अहम योगदान देते हैं। यह अपनी पूरी ज़िन्दगी अपने परिवार का पालन पोषण अपने बच्चों की उच्च शिक्षा और सभी कार्य इसी वेतन से करते हैं और सब्र के साथ भ्रष्टाचार मुक्त जीवन गुज़ारते हैं।
शिक्षा मित्र के रूप में बच्चों को पढ़ाकर देश सेवा के लिये आगे भेजने का कार्य करते हुए पौने दो लाख युवाओं को करीब एक दशक हो गया है मतलब समझा जा सकता है कि इनमें से अधिकतर की किसी अन्य प्रतियोगिता में हिस्सा लेने की उम्र निकल चुकी है अथवा गृहस्थ जीवन में प्रवेश के चलते अब यह संभव नही रहा।
एक लाख पैंतीस हज़ार के करीब जो सहायक अध्यापक के पद पर समायोजित हो चुके थे उनके लिये रोटी हाथ में देकर छीन लेने का सा व्यवहार हुआ है तो जिनका समायोजन अभी होना बाकी था उनका भविष्य भी फिलहाल अंधकार में चला गया है। पहले समायोजन में कमियां सरकार की रही हैं तो अब सरकार नया कानून लाकर इनको स्थाई समाधान दे सकती है इसकी संभावना से इनकार नही किया जा सकता। लेकिन पिछली सरकार की गलती को नई सरकार सुधारना नही चाहेगी क्योंकि एक मुद्दा कम हो जायेगा।
क्रमशः……