क़मरयाब जीलानी जिन्होंने अपनी पूरी ज़िदगी खि़दमते ख़ल्क में गुज़ार दी
(यौमे वफ़ात 9 मार्च पर खुसूसी मज़मून)
मोहम्मद आरिफ नगरामी
कमरयाब जीलानी एडवोकेट साहब को हम सबसे जुदा हुए आज दस साल हो गये हैं मगर ऐसा महसूस नहीं होता है कि कमरयाब जीलानी एडवोकेट का इंतेकाल हो गया है वह जहनों में, दिलों में, ओर तसव्वुरात व खयालात में आज भी जिन्दा हैं और क्यों न हों इसलिए कि अशखास और अफराद की जिन्दगी कौमों और मिल्लतों के नाम वक्फ होती है जिनकी हयात कौमी, समाजी, मिल्ली व मजहबी सरगर्मियों और खिदमात से आरास्ता होती हैं वह मरने के बाद भी अल्लाह के बंदों के दरमियान जिन्दों की तरह याद रहते हैं।
जहां तक मुझे याद पडता है कि कमरयाब जीलानी एडवोकेट मरहूम से मेरी पहली मुलाकात लखनऊ यूनीवर्सिटी के शोबा उर्दू में हुई थी जहां से वह उर्दू अदब में एमए कर रहे थे और हम यूनीवर्सिटी में बीए के तालिब इल्म थे ये वह जमाना था जब कि तलबा असातिजा की इज्जत व तकरीम अपने वालिदैन से भी ज्यादा तो करते ही थे साथ ही अपने सीनियर तलबा के अदब में भी कोई कमी नहीं करते थे जूनियर तलबा सीनियर तलबा को सलाम करने और आदाब बजा लाने में हमेशा पहल करने की कोशिश करते थे और उनको वह इज्जत दी जाती थी जैसे घरों में छोटे भाई बहन अपने बडे भाईयों को देते हैं। सीनियर तलबा भी अपने जूनियर तलबा के साथ बहुत ही खुलूस मुहब्बत और शफकत से मिलते थे और हम मंजिल और मोड पर उनकी राहनुमाई करते थे कोई मसला दरपेश होता तो जूनियर तलबा अपने सीनियर तलबा से राब्ता कायम करके मसला का हल तलाश करते थे कमरयाब भाई भी हमेशा अपने जूनियर तलबा से निहायत ही शफकत के साथ पेश आते थे वजह ये भी थी कि हमारे भतीजे डा अम्मार अनीलस नगरामी (पिसर प्रो. मो. यूनुस नदवी नगरामी) और मरहूम कमरयाब भाई के छोटे भी मसऊद आलम जीलानी में पुरखुलूस दोस्ती थी और दोनों एक साथ ही तालीम हासिल कर रहे थे। बादमें अम्मार मियां और मस्ऊदद आलम जीलानी की दोस्ती जब रिश्तेदारी में इस तरह बदल गयी कि अम्मार मियां की शादी मरहूम कमरयाब जीलानी एडवोकेट और मस्ऊद आलम जीलानी की छोटी बहन तस्नीम जीलानी से और हमारी भतीजी सारा अनीस से हो गया तो दोनों खानदानों में अजनबियत का एहसास खत्म हो गया दूरियां नजदीकियों में बदल गयीं तो कमरयाब जीलानी मरहूम के अवसाफ हमीदा का जुहूर होने लगा तो मको एहसास हुआ कि मरहूम कमरयाब जीलानी ने क दर्दमंद दिल पाया था जिसमें यतीमों के लिए बेपनाह मुहब्बत थी उनकी ये मुहब्बत सिर्फ जुबानी हद तक ही नहीं थी बल्कि अमलन वह हर वक्त यतीमों की खिदमत के लिए तैयार रहते थे कमरयाब भाई उस नबी स. के उम्मती थे जो पैदाइश से कब्ल ही यतीम हो गया था और जिसने पिसरी का सदमा भी बरदाश्त किया था और उसी नबी स. के सच्चे खुदा ने अपनी सच्ची किताब में बार बार यतीमों से हुसन सुलूक की ताकीद फरमाई हैं और यतीमों के साथ शफकत व मुहब्बत करने वालों के लिए बेशुमार रहमतों का वादा फरमाया है। कमरायब जीलानी मरहूम का कब मोमिन था और खुदा और रसूल स. ने यतामा की जो अहमियत बताई है उसके पेश नजर उनके दिल में यतीमों के लिए हमदर्दी का जज्बा था कि वह मुम्ताज दारूलयतामा में रहने वाले यतीम बच्चों की रिहाइश, तालीम तआम का बहुत ज्यादा ख्याल रखते थे।
कमरयाब जीलानी जिनको हम कमर भाई के नाम से पुकारते थे फितरतन और मिजाजन खिदमत गुजार इंसान थे इसीलिए वह उस राह से गुरेज करते रहे जो राहआम बन गयी हो वह अपनी चली हुई डगर को शाहेराह बनाने के हुनर से सो वाकिफ थे वह दीनी तालीमात के रास्ते से दुनिया को खुबसूरत और पायदार बनाने के ख्वाहिशमंद थे वह अपनी दुनिया आप बनाने के लिए उम्र भर कोशां रहे कमर भाई एक शानदार पसे मंजर रखने वाले खानदान में पैदा हुए लिहाजा ता हयात वह आने आबा व अजदाद की अजमत पारीना के तहफ्फुज के लिए जददोजहेद करते रहे उनके दिल व दिमाग में बडी हौसलामंदी थी वह माजी की कंदीलों से हाल के निगारखानों को रोशन करने की आरूजूएं आने सीने में ताहयात पाले रहे। यतीम बच्चों और की परवरिश, तालीम और उन्हें अजदवाजी जिन्दगी से मुंसलक कराना कमरयाब भाई का मकसद हयात था इस तरह के काम उन्हें रूहानी खुशी अता करते थे। कमरयाब भाई मलीहाबादी शुजाअत और लखनवी तहजीब का खुबसूरत संगम थे अपने छोटों से शफकत बराबर वालों से खुलूस अदब से पेश आते थे और उनका बहुत एहतराम करते थे कमरयाब भाई के खाने पीने उठने बैठने लिबास व गुफ्तुगू से लखनी तहजीब की झलक मिलती थी अंजुमन इस्लाहुल मुस्लिमीन जिसकी मजलिस मुंतजिमा के वह फआल और मुतर्हिक मेम्बर थे गुलशन की तरह महकाने में कमरयाब जीलानी मरहूम का नाकाबिले फरमोश किरदार था अंजुमन के कामों में मरहूम ने जिस ररह हिस्सा लिया वह किसी कारनामें से कम नहीं खिदमत खलक का जज्बा उम्मत की फिक्र कमरयाब भाई को हर वक्त बेदार रखती।कमरयाब जीलानी मरहूम की शख्सियत एक हमागीर शख्सियत थी जिसका दिल मिल्लत इस्लामिया की तामीर व तरक्की के लिए सरगर्म अमल रहता था अगर आज हम कमरयाब भाई की जिन्दगी पर निगाह दौड़ायें तो महसूस होगा कि उनकी शख्सियत मुख्तलिफ इदारों, तंजीमों सोसाइटियों, अकादमियों, और दानिशगाहों से मुनसलिक थी बुनियादी तौर पर मरहूम का ताल्लुक लखनऊ की मशहूर दरसगाह इस्लामिया कालेज से था जिसकी मजलिस मुंतजिमा के वह नायब सदर भी थे दूसरी तरफ वह मुम्ताज दारूलयतामा में एक अहम जिम्मेदार की हैसियत से गरीब व नादार और यतीम बच्चों और बच्चियों के साथ उठाये हुए थे अगर हम आज मुम्ताज दारूलयतामा और बैतुननिसवां का नतीजा है इस आलीशान इमारत में सैंकडों गरीब व यतीम बच्चे और बच्चियों के साथ तालीम भी हासिल कर रहे हैं। कमरयाब जीलानी मरहूम मिल्लत के एक बहीख्वाह, बेलौस खादिम थे मुरव्वत व खुश अखलाकी नेज फैयाजी व करीमुननफसी उनका तुररये इम्तिेयाज था वह हर एक से बडी खंदा पेशानी से मिलते थे कहा जाता है कि एक सालेह और अच्छा इंसान वह होता है। जिसकी जिनदगी में लोग उससे मिलने की तमनना करें और उसके मरने के बाद लोग उसके महासिन व कमालात का तजकिरा करे साथ उसके लिए दुआये खैर करें। मरहूम कमरयाब जीलानी में ये भी सिफत मौजूद थी जिसकी वजह से आज तकलोग उनकी मिली जुली समाजी और तालीमी खिदमात को याद कर रहे हैं। और उनके लिए दुआये खैर कर रहे हैं।
मोहतरम कमरयाब भाई के इंतेकाल का हादसा 9 मार्च को पेश आया उनके इंतेकाल की खबर इल्म व अदब और तहजीब और सकाफत के हलकों में बिजली बनकर गिरी उसके अचानक पेश आने वाले हादसा से न सिर्फ शहर लखनऊ बलिक पूरे हिन्दुसतान का तूल व अर्ज मुतास्सिर हुआ क्योंकि कमरयाब भाई एक बावकार खलीक, रिफाही कामों में गैर मामूली दिलचसपी रखने वाले अफराद थे इसी लिए वह बिला तफरीक मजहब व मिललत सबकी निगाहों में मोतबर और मोहतरम थे और यही वजह है कि उनके इंतेकाल के बाद उनको उनकी आखिरी आरामगाह तक पहुंचाने के लिए उनके जनाजे में जो हुजूम शामिल था उसकी मिसाल लखनऊ में कम ही देखी गयी। शहर व कुर्ब व जवार के सोगवारों, आइज्जा अहबाब, और दोस्तों ने नम आंखों से सिर्फ फर्द वाहिद को ही कब्र में नहीं उतारा बल्कि उन तमाम तहजीबी रवैयों और मशरकी अकदार को दफन कर दिया जिसके नुमाइंदे अब हमारे मुआशरे में रफता रफता कम होते चले जा रहे हैं।
जिनसे मिलकर जिन्दगी से इश्क हो जाये वह लोग
आपने शायद न देखे हों मगर ऐसे भी थे