भारत के समग्र दृष्टिकोण को डिजिटल परीक्षा मूल्यांकन की आवश्यकता है: श्रुतिधर पालीवाल
पारदर्शिता। गति। विश्वसनीयता। किसी भी परीक्षा के इन पहलुओं से कार्यबल की गुणवत्ता का पता चलता है। वर्तमान केन्द्र और राज्य सरकारों के दिशा-निर्देश सभी पीएसयू परीक्षाओं को डिजिटल रूप दे रहे हैं और निजी क्षेत्र को प्रतिभा की आवश्यकता के लिये डाटा का उपयोग करने हेतु प्रोत्साहित कर रहे हैं। पहले इसमें कुछ संशय था, लेकिन तकनीक ने यह साबित कर दिया है कि इस दृष्टिकोण से जो गति, पारदर्शिता और विश्वसनीयता मिली है, वह कोरी कल्पना नहीं है।
एप्टेक लिमिटेड के वाइस प्रेसिडेन्ट श्रुतिधर पालीवाल के अनुसार हमारे वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत हालिया बजट में शिक्षा के प्रति समग्र दृष्टिकोण होने का
विजन ‘ब्लैकबोर्ड’ से ‘डिजिटल बोर्ड’ पर जाने के आइडिया से प्रेरित है। सरकार ने 115 महत्वाकांक्षी जिलों की पहचान भी की है, जिनमें विकास कार्य किया जाना है। यह विकास स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, कुशलता जैसी सामाजिक सेवाओं में निवेश द्वारा इन जिलों में जीवन स्तर को सुधारने पर लक्षित है। वर्ष 2018-19 के लिये डिजिटल इंडिया प्रोग्राम पर आवंटन को दोगुना अर्थात् 3073 करोड़ रूपये किया गया है।
भारत को डिजिटल आधार पर वास्तव में कुशल और शिक्षित बनाने के लिये डिजिटल परीक्षा मूल्यांकन महत्वपूर्ण है। डिजिटल परीक्षा के मूल्यांकन के पक्ष में की गई प्रस्तुति लोगों द्वारा की जा रही दशकों पुरानी मांग से सामने आई है। इससे परीक्षा और श्रेणीकरण की प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी।
पारदर्शिता की इस अत्यंत आवश्यकता के कारण ही शिक्षा और भर्ती क्षेत्र डिजिटल या आॅनलाइन परीक्षा मूल्यांकन को अपना रहे हैं। हालांकि, इस क्षेत्र में हमारे देश ने काफी देरी से कदम रखा है, लेकिन विकास की दर प्रेरणादायक है।
परीक्षा और मूल्यांकन की पारंपरिक प्रणाली अब हमारे परिवर्तनशील उद्योग की आवश्यकताओं पर खरी नहीं उतर रही है। विगत समय में शिक्षा प्रणाली ने ‘ज्ञान की बदलती परिभाषा’ की चुनौती का सामना किया और सरकार ने कौशल अंतर को भरने के लिए निजी शिक्षा क्षेत्र पर भरोसा किया। इससे परिमाण को गुणवत्ता से अधिक महत्व मिला। देश बेरोजगारी और कुशल कार्यबल के अभाव की दोहरी परेशानियों से जूझ रहा है और यह हमारी मौजूदा शिक्षण पद्धति के कारण है जोकि शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य में रोड़ा बनी हुई है।
आज लाखों युवाओं को रोजगार दिया जा रहा है और सभी के लिये एक जैसी शिक्षा अप्रासंगिक हो गई है। आज रोजगार के लिये केवल सैद्धांतिक नहीं, बल्कि कुशलता का ज्ञान भी आवश्यक है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को विशुद्ध योग्यता पर परखने के लिए हर स्तर पर एक अनूठे सिस्टम को लागू करना जरूरी है। परीक्षा के मूल्यांकन को पेशेवर दुनिया का द्वार समझा जाना चाहिये और सबसे विश्वसनीय उम्मीदवारों को संसाधनों के समूह में प्रवेश मिलना चाहिये, साथ ही रोजगार के मापदंड की पूर्ति नहीं करने वाले अभ्यर्थियों के लिये सुधार के क्षेत्रों पर जोर देना चाहिये।
चर्चा को आगे बढ़ाने के दृढ़ संकल्प के साथ, सरकार के पास कंप्यूटर-आधारित परीक्षा और मूल्यांकन की श्रेष्ठता को साबित करने के लिए दो उदाहरण हंै। एक तो यह कि कई निजी काॅलेज इंजीनियरिंग और मेडिकल में भर्ती के लिये सरकार की प्रवेश परीक्षाओं के परिणामों का उपयोग कर रहे हैं। और दूसरा यह कि सरकार सभी प्रवेश परीक्षाओं को डिजिटल क्षेत्र में लाना चाहती है।
पिछले कुछ महीनों में हमने उड्डयन, शिक्षक प्रशिक्षण, राज्य विद्युत मंडल, राज्य सरकार की विभिन्न सेवाओं, आदि में विभिन्न नौकरियों के लिये लगभग दो मिलियन अभ्यर्थियों का मूल्यांकन किया है। ऐसे दो मिलियन अभ्यर्थी और हैं, जिनका मूल्यांकन अगले दो माह में किया जाना है।
यही नहीं, सरकार और पीएसयू द्वारा संचालित भर्ती परीक्षाओं में अभ्यर्थियों द्वारा प्राप्त अंकों को इंडिया इंक के साथ साझा करने का निर्णय सही दिशा में उठाया गया एक कदम है। इससे प्रतिभा खोज की लागत कम होगी और सकारात्मक वातावरण निर्मित होगा।
ऐसी परीक्षाओं की पारदर्शिता पर मौजूदा धारणा एक चुनौती है। पहले कई प्रतियोगी परीक्षाओं पर नकल या प्राॅक्सी परीक्षण का आरोप लगता था, क्योंकि इनमें से अधिकांश पारंपरिक कागजी परीक्षाएं थीं। अविश्वास को दूर करना जरूरी है। इसलिये इंडिया इंक की स्वीकार्यता बढ़ाने के लिये यह परीक्षाएं सत्यता की कसौटी पर खरी होनी चाहिये। कुछ वर्ष पहले तक यह एक चुनौती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है।
इसका श्रेय बिग डाटा और एनालिटिक्स को जाता है कि आज प्रत्येक अभ्यर्थी के लिये अनूठा प्रश्न पत्र तैयार करना कोई बड़ी बात नहीं है। अब ऐसे प्रश्न पत्र तैयार करना संभव है, जो न सिर्फ प्रत्येक अभ्यर्थी के लिये अनूठे होंगे और जिन्हें परीक्षा के इतिहास में कभी दोहराया नहीं जायेगा।
पारंपरिक परीक्षा मूल्यांकन में अंतराल होते थे, जिनके कारण अधिक समय लगता था और इनमें नकल या धोखाधड़ी होने की ज्यादा आशंका रहती थी। यह न तो मापन योग्य थे, और न ही स्थायी। डिजिटल मूल्यांकन वर्ष दर वर्ष प्रत्येक मापदंड पर बेहतर रहने में सक्षम हुये हैं। कंप्यूटर-आधारित परीक्षा मानव त्रुटि या उत्तरों के श्रेणीकरण में पक्षपात से बचने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है। इसलिये इससे परीक्षा की गुणवत्ता और विश्वसनीयता बढ़ती है। सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें समय बचता है।
यह व्यावसाय का एक शानदार उदाहरण है जिसमें भर्ती की लागत को टैलेंट की गुणवत्ता के बिल्कुल विपरीत अनुपातिक बनाया जा सकता है। साथ ही पारदर्शिता और नैतिकता के उच्च मापदंड बने रहते हैं। सरकार की अधिकांश पहलों की तरह, इस मिशन में निजी क्षेत्र को सरकार का भागीदार बनाकर पारदर्शिता बढ़ाने का दृष्टिकोण काबिलेतारीफ है।