आजाद की समाजवादी अवधारणाओं पर बहस जरूरी: शिवपाल
समाजवादियों ने आजाद शहादत दिवस मनाया
लखनऊ: समाजवादी बौद्धिक सभा के तत्वावधान में अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद की शहादत-दिवस व्यापक पैमाने पर मनाई गई। इस अवसर पर प्रख्यात् समाजवादी नेता शिवपाल सिंह यादव, मारीशस के प्रसिद्ध संत स्वामी स्वामी सत्यकाम आनंद सरस्वती व समाजवादी चिन्तक दीपक मिश्र ने “आजाद“ की तस्वीर माल्यार्पण कर कृतज्ञता ज्ञापित कर “आजाद, लोहिया व समाजवाद“ विषयक परिचर्चा की शुरूआत की। शिवपाल सिंह ने चन्द्रशेखर आजाद को भारतीय समाजवाद का आदि-पुरुष बताते हुए कहा कि आजाद स्वतंत्रता व समाजवाद के अनन्य योद्धा थे। वे देश को आजाद कराकर यहाँ शोषण विहीन समतामूलक समाजवादी समाज की स्थापना करना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू सदृश चिन्तनशील क्रांतिकारियों को एकत्र कर “हिन्दुस्तान गणतांत्रिक समाजवादी सेना“ (HRSA) बनाया था। “समाजवाद“ के नाम पर बनने वाले इस प्रथम संगठन के संस्थापक अध्यक्ष आजाद ही थे। नई पीढ़ी आजाद की कहानियों व तयाग से तो पूर्णतया परिचित व प्रेरित है किन्तु उनकी वैचारिकी व वैचारिक अवदान से उतना अवगत नहीं हैं जितना होना चाहिए। आजाद की विचारधारा पर गहन व सघन बहस जरूरी है। आजाद अपने झोले में पुस्तक व पिस्तौल एक साथ रखते थे। वे और उनका समूह अनावश्यक हिंसा के सदैव विरोधी रहे हैं। भारतीय इतिहासकारों हिन्दुस्तान गणतांत्रिक समाजवादी सेना व इसके सेनानायक चन्द्रशेखर आजाद के यथोचित न्याय नहीं किया। उन्होंने बौद्धिक सभा के प्रदेश अध्यक्ष इतिहासकार पंकज कुमार “आजाद व समाजवाद“ पर लघु पुस्तक प्रकाशित व वितरित करने की आग्रह किया।
मारीशस के संत स्वामी सत्यकाम आनंद सरस्वती ने कहा कि आजाद न केवल भारत अपितु विश्व के क्रांतिकारियों के प्रेरणास्रोत हैं। उन्होंने मारीशस में वुकलिमा, न्यू वेलकॉस स्थित अपने आश्रम में आजाद की आदमकद प्रतिमा लगाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि अन्याय व उपनिवेशवाद के विरुद्ध जो लड़ाई आजाद ने लड़ी, वह पूरी दुनिया के लिए प्रेरक विरासत है। गांधी, आजाद, लोहिया, सुभाष को एक देश की परिधि में बाँधा जा सकता।
समाजवादी चिन्तक एवं चिन्तन व बौद्धिक सभा के अध्यक्ष दीपक मिश्र ने कहा कि आजाद ने भारत में “समाजवाद“ का मधुर सपना देखा था, और अपने सपने को पूरा करने के लिए हर प्रकार का त्याग किया। उनकी जीवनी त्याग, बलिदान व सतत्-संघर्ष की जीवंत गाथा है। हिन्दुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोसिएशन के जो दस्तावेज मिले हैं, उनको पढ़ने के बाद पता चलता है कि आजाद जितने बड़े वीर उतने ही महान ज्ञानी थे, तभी उन्हें बिस्मिल, अशफाक उल्ला व भगत सिंह जैसे मननशील क्रांतिकारियों का समर्थन मिला। आजाद के मधुर स्वप्न को राम मनोहर लोहिया ने सैद्धान्तिक धरातल पर उतारा। लोहिया ने आजाद से ही प्रेरणा लेकर ही बयालिस की क्रांति के दौरान “आजाद दस्ता“ का गठन किया था व लोकनायक जयप्रकाश नारायण के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाया। दोनों के लक्ष्य व भावभूमि एक समान थी। परिचर्चा के उपरान्त शिवपाल ने मारीशस के शिष्टमंडल को शाल ओढ़ाकर व आजाद-साहित्य प्रदान कर स्वागत किया। इस अवसर पर अग्रवाल सभा के अध्यक्ष राजेश अग्रवाल, गोण्डा के समाजवादी नेता सुरेश शुक्ल, सूर्यवती बंगाराजू, शोभा मानीकाम, ममता मुस्लीगाजू, रंजीत मुस्लिगाजू, सत्यायन काजू, निर्मली अपय्या, बौद्धिक सभा के महासचिव अभय यादव, देवी प्रसाद, सपा के पूर्व सचिव नवाब अली अकबर समेत कई समाजवादी व बुद्धिजीवी मौजूद रहे।