उप चुनाव बताएंगे हवा का रुख़
-फ़िरदौस ख़ान
उत्तर प्रदेश और बिहार में लोकसभा और विधानसभा के उपचुनावों को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज़ हो गई हैं। उत्तर प्रदेश की गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा और बिहार की अररिया लोकसभा सीटों के लिए 11 मार्च को मतदान होना है। इसी दिन बिहार की जहानाबाद और भभुआ विधानसभा सीटों के लिए भी वोट डाले जाएंगे। चुनाव नतीजे 14 मार्च को आएंगे। सियासी दलों ने इन चुनावों में जीत हासिल करने के लिए कमर कस ली है। ये उप चुनाव जहां प्रतिष्ठा का सवाल बने हुए हैं, वहीं अगले साल होने वाले आम चुनाव के लिहाज़ से भी अहम माने जा रहे हैं। सियासी दलों का मानना है कि ये चुनाव साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव का रुख़ तय करेंगे।
उत्तर प्रदेश की गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटें पहले भारतीय जनता पार्टी के पास थीं। भारतीय जनता पार्टी की पूरी कोशिश है कि वह अपनी इन सीटों पर दबदबा बनाए रखे। भारतीय जनता पार्टी के लिए गोरखपुर सीट जीतना इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सीट रही है। उन्होंने साल 1998 से लगातार पांच बार भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीता है। इससे पहले उनके गुरु व गोरखनाथ मंदिर के पूर्व महंत अवैद्यनाथ मंहत यहां से तीन बार लोकसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। यह सीट जीतकर वह पांच बार संसद तक पहुंचे हैं। इतना ही नहीं, किसी सत्ताधारी पार्टी के लिए वह सीट प्रतिष्ठा का सवाल बन जाती है, जो उसके शासक के पास रही हो।
कांग्रेस के लिए भी ये उप चुनाव बहुत अहम है। फूलपुर लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस का पुराना और गहरा रिश्ता रहा है। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू साल 1952 में इसी सीट से चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे थे। उन्होंने साल 1952, 1957 और 1962 में लगातार तीन बार इस सीट पर जीत का परचम लहराया। पंडित जवाहर लाल नेहरू का जलवा यह था कि साल 1962 में समाजवादी नेता डॉ। राम मनोहर लोहिया ने कांग्रेस को हराने के लिए यहां से ख़ुद चुनाव लड़ा और शिकस्त खाई। पंडित जवाहर लाल नेहरू की वजह से ही यह सीट बेहद ख़ास हो गई। पंडित जवाहरलाल नेहरू की मौत के बाद उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित यहां से साल 1964 का उपचुनाव जीतकर सांसद बनीं। उन्होंने साल 1967 में यहां से जीत दर्ज की। संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि बनने के बाद साल 1969 में उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया। यहां हुए उपचुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार जनेश्वर मिश्र ने जीत हासिल की। इसके बाद साल 1971 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के विश्वनाथ प्रताप सिंह ने यहां से चुनाव जीता। साल 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की उम्मीदवार कमला बहुगुणा ने जीत हासिल की, जो बाद में कांग्रेस में शामिल हो गईं। साल 1980 के चुनाव में लोकदल के उम्मीदवार बीडी सिंह ने यहां से चुनाव जीता। साल 1984 के आम चुनाव में कांग्रेस के रामपूजन पटेल ने यहां से जीत दर्ज की। बाद में वह जनता दल में चले गए और साल 1989 और 1991 में भी उन्होंने जीत हासिल की। साल 1996 और 1998 के आम चुनाव में समाजवादी पार्टी के जंग बहादुर ने यहां से चुनाव जीता। साल 1999 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के ही धर्मराज पटेल और साल 2004 के आम चुनाव में बाहुबली अतीक़ अहमद ने यहां से जीत का परचम लहराया। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में यह सीट बहुजन समाज पार्टी के खाते में चली गई। यहां से बहुजन समाज पार्टी के कपिल मुनि करवरिया ने जीत दर्ज की। यह जीत बहुजन समाज के लिए इसलिए भी बहुत ख़ास थी, क्योंकि पार्टी के संस्थापक कांशीराम यह सीट हार गए थे। कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले फूलपुर लोकसभा क्षेत्र में पहली बार साल 2014 में केशव प्रसाद मौर्य ने जीत हासिल करके इसे भारतीय जनता पार्टी की झोली में डाल दिया।
समाजवादी पार्टी भी इन सीटों को हासिल करने के लिए जी जान लगा देना चाहती है। ऐसा करके वह विधानसभा में मिली हार के ज़ख़्म पर कुछ मल्हम लगाना चाहती है। भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी पार्टी से ही राज्य की सत्ता छीनी थी। समाजवादी पार्टी चाहती है कि अगर ये सीटें उसकी झोली में आ गईं, तो इससे पार्टी में एक नई जान आ जाएगी। इस जीत से पार्टी कार्यकर्ताओं में भी जोश पैदा होगा। उप चुनाव में समाजवादी पार्टी एकला चलो की राह पर चल रही है। समाजवादी पार्टी के विधानसभा में विपक्ष के नेता राम गोविंद चौधरी ने किसी भी दल के साथ गठबंधन से इंकार करते हुए कहा है कि दोनों सीटों पर उनके उम्मीदवार पार्टी के चुनाव निशान पर ही मैदान में उतरेंगे।
गौरतलब है कि गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफ़ा देने की वजह से ख़ाली हुई हैं। योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य अपनी-अपनी सीटों से इस्तीफ़ा देकर उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य बन गए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल में रहने के लिए प्रदेश की विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य होना ज़रूरी है। इस चुनाव में इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन भी मुद्दा बनी हुई है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने चुनाव आयोग से ईवीएम की बजाय मतपत्रों से मतदान कराए जाने की मांग की है।
उधर, बिहार में भी उपचुनाव को लेकर माहौल गरमाया हुआ है। बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड ने उपचुनाव से दूरी बना ली है। पार्टी का कहना है कि उसका कोई उम्मीदवार इस चुनाव में खड़ा नहीं होगा। सियासी गलियारे में कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का घटक दल यानी जनता दल यूनाइटेड ने भारतीय जनता पार्टी के दबाव में आकर उप चुनाव से किनारा किया है। भारतीय जनता पार्टी अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र उप चुनाव जीतकर यह संदेश देना चाहती है कि जनता में उसकी पैठ अभी भी बनी हुई है।
बहरहाल, कांग्रेस राजस्थान में हुए उप चुनाव में मिली जीत से उत्साहित है। कांग्रेस ने अलवर, अजमेर और मांडलगढ़ विधानसभा क्षेत्रों में हुए उप चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को करारी शिकस्त दी थी। इसके अलावा कांग्रेस, समाजवादी पार्टी व अन्य विपक्षी दलों का यह भी मानना है कि जनता वादा ख़िलाफ़ी के लिए भारतीय जनता पार्टी को सबक़ सिखाएगी। हालांकि भारतीय जनता पार्टी के नेता सभी सीटों पर जीत के दावे कर रहे हैं। अलबत्ता, सियासी दलों की जीत और हार जनता के हाथ में है।
(लेखिका स्टार न्यूज़ एजेंसी में संपादक हैं)