बिन बुलाये मेहमान और अनचाहा उन्माद
आधुनिक जीवन मे मनुष्यों की लाचारी तथा अस्त-व्यस्तता को दर्शाता है नाटक ‘‘सूरजमुखी और हैमलेट’
भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद लखनऊ की क्षितिज योजना के अन्तर्गत नाट्यांगन द्वारा राय उमानाथ बली प्रेक्षागार में मंचित रंजीत कपूर के ‘सूरजमुखी और हैमलेट’ ने हास्य का उन्माद फैलाया। हास्य का स्त्रोत हैं विसंगत परिस्थितियां सनकी पात्र तथा उनका ऊटपटांग व्यवहार जिसमें संघर्ष का समाधान बड़े सहज ढंग से होता है। अपने उत्कृष्ट पटकथा लेखन के लिये संगीत नाटक एकेडेमी सम्मान तथा दादा साहेब फाल्के सम्मान से विभूषित रंजीत कपूर ने इस नाटक का निर्देषन किया है।
नाटक का प्रारम्भ होता हैें लेखक (अवधेष कुमार मिश्र) और उसकी पत्नी माया(सीमा मोदी) की तीखी नांेक-झोंक से। पति एक प्रतिष्ठित नाट्य लेखक है। फसाद की जड़ एक पत्र है जो लेखक को अल्मारी मंें मिलता है। पति को शंका है कि उसकी पत्नी के किसी दूसरे पुरुष से सम्बन्ध हैं। अपमान और तिरस्कार से खिन्न पत्नी घर छोड़ कर अपनी अनपढ़ बहन के पास जाने का निर्णय लेती है। पति-पत्नी का यह वाक-युद्ध जब अपने चरम पर पहुंचता है तभी बांगलादेष के प्रतिष्ठित समाचार पत्र की एक पत्रकार बेगम नफीसा रहमान(श्रीमती ज्याति गुप्ता) अपने फोटोग्राफर(सिद्धार्थ पाण्डेय) के साथ लेखक का इण्टरव्यू लेने पहुंच जाती है। बांगलादेषी पत्रकार के लिये लेखक का इण्टरव्यू लेना सरल नहीं होता। लगातार एक के बाद दूसरे व्यवधान इस प्रक्रिया को बाधित करते रहते हैं। कभी गलत नम्बर पर लेखक को अपना पति समझने वाली अज्ञात महिला (मधु अवस्थी) का बार बार टेलीफोन काॅल आना, कभी फिल्म पटकथा लेखक एवं डाइरेक्टर मित्र चित्तू चोपड़ा (कौस्तुभ ओमर) द्वारा अपनी भविष्य की आने अपनी आने वाली फिल्म के बारे में बार बार चर्चा करना, कभी घर में पानी की पाइप लाइन का लीक को ठीक करने के लिए प्लम्बरो (गुरजीत सिंह और शुभम कटियार) का आना नाटक के उलझाव को और जटिल बनाता है। एक आवारा पड़ोसी वीरू (सिंचित सचान) का उसी दौरान लेखक से आर्थिक तंगी को का हवाला देकर अपनी ज़रूरत के लिये पैसे मांगने आना तथा मौका पाकर घर के हर सामान पर हाथ साफ करना, इण्टरव्यू के दौरान ही उसकी मां (अन्नु गोयल) का अपने रहने के लिए लेखक से एक दूसरे फ्लैट की व्यवस्था करने के लिये कहना, एक सीआईडी इंस्पेक्टर (कृष्ण देव) जो लेखक पर उसके घर में वैष्यावृत्ति संचालित करने का आरोप लगाता है,का अचानक आना, लेखक के एक और दोस्त षिषु (अखिलेष श्रीवास्तव) का अपनी पहली प्रेमिका को छोड़ चुकने के बाद दुखी मन से समस्या के निदान के लिए लेखक के पास इण्टरव्यू के दौरान ही आना आदि तमाम घटनाक्रम अप्रत्याषितरूप से घटित होते हैं जिससे लेखक का इण्टरव्यू कभी पूरा नहीं हो पाता और अषान्ति तनाव और उद्विगनता का दौर लेखक को अंततः विस्फोटक स्थिति में पहुंचा देते हैं। पूरे नाटक के दौरान दर्षक अजीबोगरीब परिस्थितियों से रूबरू होते हैं। दरअसल सूरजमुखी और हैमलेट जाॅं अन्न्हुई के मूल नाटक ऐन एपीसोड इन द लाइफ आॅफ एन आॅथर का रंजीत कपूर द्वारा हिन्दी में रूपान्तरण किया गया है जो परम्परागत भारतीय नाट्य शैली में न हो कर पाष्चात्य नाट्य शैली के एबज़र्ड (विसंगत) नाट्य परम्परा की उल्लेखनीय नाट्य प्रस्तुति है। नाटक में अवधेष कुमार मिश्र सीमा मोदी अन्नु गोयल ज्योति गुप्ता मधु अवस्थी अखिलेष श्रीवास्तव अपर्णा सिंह, कृष्ण देव सांवरिया,सिद्धार्थ पाण्डेय सिंचित सचान शुभम कटियार गुरुजीत सिंह,कौस्तुभ ओमर तथा राजन विष्वकर्मा ने अपने जीवन्त अभिनय से दर्षको ं का भरपूर मनारंजन किया। पाष्चात्य नाट्य परम्परा की ‘फार्स’ शैली में प्रस्तुत यह नाटक परम्परागत विषय-वस्तु, पात्रो के चरित्र मुद्दो, संघर्ष तथा नाटक के अन्य गम्भीर तत्वों पर संकेन्द्रित करने के बिल्कुल विपरीत अत्यन्त सामान्य किन्तु हास्यास्पद स्वाभविक एवं अप्रत्याषित घटनाओं का संयोग प्रस्तुत करता है। इस प्रकार के नाट्य प्रस्तुतियों में प्रायः पात्रों में तारतम्यता से पृथक अव्यवस्था की स्थिति होती है। फार्स शैली की विसंगतियों पर आधारित यह नाटक आधुनिक जीवन मे मनुष्यों की लाचारी तथा अस्त-व्यस्तता को दर्शाता है । पूरे नाटक में दिखाई पड़ती है अव्यवस्था,उथल-पुथल तथा तर्कहीन घटनाक्रम जिन पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है। मंच संचालन कर रहे आकाषवाणी लखनऊ के कार्यक्रम अधिषाषी प्रतुल जोषी ने इस नाटक की पाष्चात्य परम्परा की विषिष्ट शैली के बारे में दर्षकों को अवगत कराया। रंजीत कपूर ने इस नाटक में सेट की परिकल्पना को प्रकाष संयोंजन से परिकल्पित करते हुये मंच सज्जा से मुक्त रखा । लेखक के अध्ययन कक्ष लिविंग रूम तथा बरामदे को लाइटस्पाट से संयोजित किया गया। प्रकाष संयोजन तथा ध्वनि संयोजन अग्रज पाण्डेय व अतिन अवस्थी ने किया।