संसद में मोदी के भाषण ने विपक्ष को दिखाया आईना
तारकेश्वर मिश्र
प्रधानमंत्री संसद में कम ही बोलते हैं लेकिन पिछले चार सालों में वो जब भी बोले समूचे विपक्ष की बोलती उन्होंने बंद कर दी। पिछले दिनों संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर उन्होंने लम्बे भाषण दे डाले जिनमें अपनी सरकार की उपलब्धियों का बखान करते हुए कांग्रेस पर जोरदार और तीखा हमला किया। उनके भाषण को विश्लेषकों ने 2019 के चुनावी मुकाबले का एजेंडा तय करने वाला बताया वहीं कुछ का मानना है उनकी नजर में फिलहाल कर्नाटक विधानसभा का चुनाव है जिसे भाजपा हर हाल में जीतना चाहेगी क्योंकि खुदा न खास्ता वहां उसे सफलता नहीं मिली तब गुजरात विधानसभा चुनाव में कमजोर प्रदर्शन के बाद राजस्थान में हुए तीन उपचुनावों में मिली जबरदस्त पराजय का सिलसिला लम्बा खिंचने का खतरा बढ़ जाएगा। मोदी के हमले से विपक्ष खासकर कांग्रेस हलकान है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चूंकि अपनी पार्टी के एकमात्र वोट बटोरू चेहरा बन गए हैं इसलिए हार और जीत दोनों उनके खाते मंे दर्ज होती है। 2018 में ही भाजपा शासित मप्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होना हैं जिनमें राजस्थान छोड़ बाकी दो राज्यों में लंबे समय से सरकार में रहने से भाजपा को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है जो अस्वाभाविक नहीं है किंतु उनके तुरन्त बाद लोकसभा के महा मुकाबले की दृष्टि से पार्टी के लिए अपनी राज्य सरकारें बचाना अत्यावश्यक होगा। कल श्री मोदी ने जिस अंदाज में संसद के मंच से देश को सम्बोधित किया उससे उन्होंने ये एहसास करवाने की कोशिश की कि गुजरात में लगे झटके के बाद भी उनकी मारक क्षमता और हौसला यथावत है।
बीते कुछ समय से कांग्रेसाध्यक्ष राहुल गांधी जिस तरह से हमलावर शैली में बड़बोले हो गए थे उसके कारण प्रधानमंत्री ने भी कुछ ज्यादा ही तगड़े प्रहार कर दिये। लोकसभा में कांग्रेस द्वारा लगातार शोर के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने एक-एक कर अपने शासनकाल की उपलब्धियां गिनाने के साथ ही पिछली मनमोहन सरकार की गलतियों और असफलताओं का जो ब्यौरा पेश किया उसका कांग्रेस के पास शायद ही कोई जवाब होगा। राहुल हमेशा ये कहते आए हैं कि मोदी उनसे बेहतर वक्ता हैं। कल के भाषण के बाद भी उन्होंने वही कहा किन्तु साथ ही ये कटाक्ष भी कर दिया कि प्रधानमंत्री ने उनके सवालों के उत्तर नहीं दिए जिनमें सबसे ताजा है वायुसेना के लिए फ्रांस से खरीदे जा रहे रफैल लड़ाकू विमान की कीमतों सम्बन्धी जानकारी गोपनीय रखना। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि सरकार ने ऐसा ब्यौरा देने से मना किया हो। खुद यूपीए सरकार के दौरान साल 2008 में रक्षा मंत्री एके एंटनी ने सुरक्षा कारणों से इजरायल के साथ मिसाइल सौदे का ब्यौरा देने से इनकार कर दिया था।
पिछले दिनों राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद ने सरकार को गेम चेंजर की बजाय नेम चेंजर बताकर उसका मजाक बानाया था जिसके जवाब में श्री मोदी ने कहा कि उनकी सरकार एम चेजर है जो लक्ष्य का पीछा करते हुए उसे हासिल करती है। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति के अभिभाषण और बजट पर हर साल लम्बा भाषण देकर विपक्ष के तमाम हमलों का थोक में जवाब देते हैं और गत दिवस भी उन्होंने वही किया। उनके पूर्व राज्यसभा में अपने पहले भाषण में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पकौड़ा विवाद पर विपक्ष को काफी धोया था। दरअसल संसद के दोनों सदनों के भीतर विपक्ष में एकजुटता का अभाव होने से वह सत्ता पक्ष को घेरने में सफल नहीं हो पाता। राज्यसभा में उसके पास बहुमत होने पर भी वह बहस की बजाय सदन को बाधित करने की गलती करता रहता है जिससे उसकी छवि खराब होती है।
लोकसभा में प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान कांग्रेस सदस्य नारेबाजी करते रहे लेकिन प्रधानमंत्री ने उसकी परवाह न करते हुए अपनी धार बनाए रखी। राज्यसभा में कांग्रेस सदस्य रेणुका चैधरी द्वारा लगातार हंसने पर प्रधानमंत्री ने जिस तरह उन्हें मजाक का पात्र बनवा दिया वह उनकी वाकपटुता और हाजिरजवाबी का उदाहरण है। कुल मिलाकर राहुल गांधी के फुटकर हमलों का एकमुश्त उत्तर देकर मोदी ने अपने दबावमुक्त होने का संकेत तो दिया ही उल्टे कांग्रेस पर दबाव बनाने में कामयाब भी हो गए।
राहुल गांधी राफेल सौदे में भ्रष्टाचार हुआ लेकिन उनके इस आरोप की हवा तब निकल गई जब मनमोहन सरकार के कार्यकाल में रक्षा सौदों सम्बन्धी जानकारी देने से लगातार इंकार किये जाने के दस्तावेजी सबूत सामने आ गए और टीवी चैनलों पर चली बहस में भी अधिकतर लोगों का अभिमत यही रहा कि रफैल सौदे में कोई बिचैलिया नहीं है जिससे फ्रांस और भारत सरकार के बीच शीर्ष स्तर पर सब कुछ तय हुआ। अतरू इसमें भ्रष्टाचार की गुंजाईश नहीं है। लगता है राहुल ने ये पैतरा सीबीआई द्वारा बोफोर्स दलाली का प्रकरण पुनरू खोले जाने के विरोध में दबाव बनाने के लिए चला किन्तु वह उल्टा पड़ गया। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में बैंकों के फंसे कर्ज के लिए भी जिस तरह मनमोहन सिंह की सरकार पर जोरदार हमला बोला वह भी निशाने पर जाकर लगा।
राहुल गांधी के आत्मविश्वास और आक्रामकता में निश्चित रूप से वृद्धि हुई है लेकिन वे अपनी दिशा नियंत्रित नहीं रख पाते। विपक्षी एकता की जो कोशिशें कांग्रेस की तरफ से होती हैं वे भी परवान नहीं चढ़ पा रहीं। तात्कालिक मुद्दों पर सरकार को घेरकर भले ही श्री गांधी खबरों में बने रहें किन्तु उनके हमलों की तीव्रता जल्द खत्म हो जाती है क्योंकि वे अक्सर अपने ही गोल में गेंद डाल देने की गलती दोहरा देते हैं जिसका लाभ उठाने में प्रधानमंत्री कभी नहीं चूकते। बजट के बाद आईं चैतरफा प्रतिक्रियाओं में सरकार को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा था। कल प्रधानमंत्री ने दोनों सदनों में अपने आक्रामक अंदाज से उस दबाव से पार्टी और सरकार को बाहर निकाल लिया।
पीएम मोदी ने आक्रामक भाषण इसलिए दिया क्योंकि कांग्रेस के कुछ नेता खासतौर से राहुल गांधी उनपर पिछले कई दिनों से लगातार व्यक्तिगत हमले कर रहे थे। तरह-तरह के इल्जाम लगाए जा रहे थे। इसलिए पीएम मोदी ने एक-एक आरोप का जवाब दिया। राजनीतिक भाषणबाजी अपनी जगह है लेकिन एक और बात है जिसका जिक्र मैं करना चाहता हूं। संसद की यह परंपरा रही है कि जब प्रधानमंत्री सदन में बोलते हैं तो सारा सदन उनकी बात सुनता है। न कोई शोर मचाता है और न ही ज्यादा टोका-टाकी होती है। लेकिन कांग्रेस के सांसदों ने प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान लगातार नारे लगाए और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की, जबकि वे सदन में मौजूद थे। प्रधानमंत्री का पूरा भाषण शोर-शराबे के बीच हुआ। इसे किसी भी लिहाज से सही नहीं माना जा सकता। यह लोकतंत्र का अपमान है। यह संसदीय परंपराओं की अवमानना है और प्रधानमंत्री के पद की गरिमा के खिलाफ है। पकौड़ा और रफैल सौदे पर प्रधानमंत्री को घेरने जैसी कोशिशें प्रारम्भ में भले ही कारगर दिखीं हों लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने उनका असर खत्म कर दिया। लेकिन इसके साथ ही भाजपा और केंद्र सरकार को ये भी ध्यान रखना चाहिए कि केवल विपक्ष को कठघरे में खड़ा करने से उनके नंबर नहीं बढ़ेंगे। आरोपों के जवाब में प्रत्यारोप से 2019 का महासंग्राम नहीं जीता जा सकता।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि मोदी सरकार को विरासत में जो समस्याएं मिलीं वे निश्चित रूप से गम्भीर थीं किन्तु अगले चुनाव में प्रधानमंत्री न तो मनमोहन सरकार की कमियां गिना सकेंगे और न हीं वायदों की झड़ी लगाना सम्भव होगा। इसके ठीक उलट उन्हें अपनी पांच वर्ष की उपलब्धियां जनता के सामने प्रस्तुत कर दूसरा कार्यकाल मांगना होगा और इसलिए जरूरी है वे बचे हुए समय में ऐसे ठोस काम करें जिनका प्रत्यक्ष लाभ जन साधारण को मिल सके। गत दिवस मोदी जी ने जो उपलब्धियां गिनवाईं वे अपनी जगह सही हैं किंतु आदर्श स्थिति वह होगी जब उन्हें ये सब बताने की जरूरत न पड़े और जनता खुद होकर उनका गुणगान करे। विपक्ष खासकर कांग्रेस को भी चाहिए कि वह केवल विरोध के लिए विरोध से परहेज करने के अलावा प्रधानमंत्री को जबरन घेरने और सस्ते आरोप लगाने से बचे। राहुल गांधी को ये याद रखना चाहिए कि वे अपनी पार्टी के अध्यक्ष भले ही बन गए हों लेकिन छवि और लोकप्रियता में वे नरेन्द्र मोदी के मुकाबले बहुत पीछे हैं। कुल मिलाकर पीएम मोदी ने 2019 के चुनाव के लिये कमर कस ली है।
-लेखक उप्र राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।