तंबाकू के खिलाफ़ योगी की जंग
लखनऊ। नेताओं से उम्मीद की जाती है कि वे समाज के लिए उदाहरण प्रस्तुत करें और ऐसा ही कुछ उत्तरप्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ, अपने चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन गोपाल के साथ मिलकर कर रहे हैं। दोनों नेताओं ने तंबाकू एवं तंबाकू उत्पादों के इस्तेमाल के खिलाफ़ राज्य में जागरुकता फैलाने की शपथ ली है। इसी प्रयास में जाने-माने कैंसर विशेषज्ञ प्रोफेसर आर ए बड़वे तंबाकू एवं समाज पर इसके बुरे प्रभावों के बारे में जागरुकता पैदा करने में जुटे हैं। डाॅ बड़वे टाटा मेमोरियल अस्पताल में निदेशक हैं और तंबाकू के खिलाफ इस जंग का नेतृत्व कर रहें हैं।
टाटा मैमोरियल अस्पताल से डाॅक्टरों की एक टीम, हैड एण्ड नेक सर्जन डाॅ पंकज चतुर्वेदी, डाॅ कैलाश शर्मा, डायरेक्टर एकेडेमिक्स भी एसएससीआई में मौजूद थे, जिन्होंने संस्थान के पुनर्विकास के लिए दिशानिर्देश दिए और प्रगति का मूल्यांकन किया। मुख्य मंत्री और उनके सहकर्मियों ने विश्व कैंसर दिवस के मौके पर टाटा मैमोरियल अस्पताल टीम की मौजूदगी में शपथ ली। इस मौके पर केजीएमयू के माननीय वाईस चांसलर प्रोफेसर एम.एल.बी. भट भी मौजूद थे जो एसएससीआई, सीजी सिटी के डायरेक्टर भी हैं। उत्तरप्रदेश में 50 फीसदी से ज़्यादा कैंसर के मामलों का कारण तंबाकू और तंबाकू उत्पादों का सेवन ही है, इसी मुख्य तथ्य के मद्देनज़र मुख्यमंत्री जी ने शपथ ली।
20वीं सदी में कैंसर के कारण तकरीबन 100 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई और 21 सदी में यह संख्या 1 बिलियन तक पहुंचने का अनुमान है। ऐसे में इस जानलेवा उत्पाद के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाना बेहद ज़रूरी है, हालांकि यह समाज के लिए एक बड़ी चुनौती है। योगी ने इसी दिशा में प्रयास शुरू कर दिए हैं। मानव इतिहास में इस बात का एक भी उदाहरण नहीं मिलता है, जिससे यह पता चलता हो कि तंबाकू का इस्तेमाल मनुष्य के लिए फायदेमंद है।
अतीत में तंबाकू पर लगाम लगाने के बहुत से प्रयास नाकाम साबित हुए हैं। वास्तव में डाॅ वेरा डा कोस्टा ई सिल्वा, हैड, यूएन टोबेको ट्रीटी के अनुसार ‘‘तंबाकू उद्योग की सक्रियता संयुक्त राष्ट्र की प्रणाली के उद्देश्यों, मूल सिद्धान्तों एवं नियमों के विपरीत है।’’
इस बात को सुनिश्चित करने के लिए बहुत से प्रयास किए जा रहे हैं कि तंबाकू एवं तंबाकू उत्पादों के उद्योग में कोई निवेश न किया जाए। इसे उच्चतम स्तर पर किया गया है। उदाहरण के लिए तंबाकू नियन्त्रण के विश्व स्वास्थ्य संगठन के फ्रेमवर्क कन्वेंशन लेख 4.7 के अनुसार सरकारी निकायों और संस्थानों के तंबाकू उद्योग में कोई आर्थिक हित नहीं होने चाहिए, जब तक वे राज्य स्वामित्व में तंबाकू उद्योग के लिए एक दल के स्वामित्व के प्रबन्धन के लिए ज़िम्मेदार न हो। साथ ही लेख 7.2 के अनुसार जिन दलों के पास राज्य स्वामित्व के तंबाकू उद्योग नहीं है, उन्हें तंबाकू उद्योग एवं संबंधित उद्यमों में निवेश नहीं करना चाहिए। राज्य स्वामित्व के तंबाकू उद्योग के दलों को सुनिश्चित करना चाहिए कि तंबाकू उत्पादों में किया गया कोई भी निवेश उन्हें तंबाकू नियन्त्रण पर विश्वस्तरीय स्वास्थ्य संगठन के फ्रेमवर्क कन्वेंशन को लागू करने से नहीं रोकता हैं।
दुनिया भर में बड़ी संख्या में आधिकारिक संस्थानों ने अपने पोर्टफोलियो को तंबाकू मुक्त बनाया है। वे पूरी सतर्कता के साथ तंबाकू कंपनियों में निवेश नहीं करते। भारत में भी आने वाले समय में इसी रूझान को बढ़ावा मिलेगा। मुबई उच्च न्यायालय में पहले से इस संदर्भ में एक जनहित याचिका दायर की जा चुकी है जिसमें एलआईसी जैसे संस्थानों से आग्रह किया गया है कि तंबाकू कंपनियों में निवेश न करें। हालांकि दबाव बहुत अधिक है, किंतु इस दिशा में कार्रवाही करना भी ज़रूरी है।