हुनरमन्द व्यक्ति भूखा नहीं मरता
नारी सशक्तिकरण के बिना मानवता का विकास अधूरा : अनुभा जैन
रुद्रपुर: नारी सशक्तिकरण के बिना मानवता का विकास अधूरा है। यह जरूरी है कि हम स्वयं को और अपनी शक्तियों को समझें। जब कई कार्य एक समय पर करने की बात आती है तो महिलाओं को कोई नहीं पछाड़ सकता। यह उनकी शक्ति है और हमें इस पर गर्व होना चाहिए। महिला उद्यमी परिवार एवं समुदायों की आर्थिक संपन्नता, गरीबी उन्मूलन और महिला सशक्तीकरण में विशेष सहयोग दे सकती है।
उक्त बातें सरदार भगत सिंह राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, दीन दयाल उपाध्याय कौशल केन्द्र द्वारा आयोजित और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, सेबी और बीएसई आईपीएफ द्वारा वित्त पोषित एक सप्ताह की राष्ट्रीय कार्यशाला स्किल्स इम्पावारिंग दी न्यू इण्डिया (Skills Empowering the New India) के दूसरे दिन ऊधमसिंह नगर की जिला सेवायोजन अधिकारी अनुभा जैन ने कहा। उन्होंने आगे कहा कि शैक्षिक योग्यता के साथ हुनर का होना अति आवश्यक है। रोजगार पाने के लिए कौशल-कुशल होना भी आवश्यक है। हुनरमन्द व्यक्ति भूखा नहीं मरता।
अर्थशास्त्र विभाग कि अध्यक्ष डॉ मनीषा तिवारी ने सफल उद्यमी की विशेषताओं को बताते हुए, आत्मविश्वास, जोखिम लेने की क्षमता, रचनात्मकता, जिम्मेदारी, लक्ष्य के प्रति जुनून के साथ ही उद्यमिता के दस गुण बताये। मडाला डाॅट काम के आलिषा सिंह, बालाजी टेलीफिल्म की एकता कपूर, 3क् एनिमेशन स्टूडियो की संस्थापिका नम्रता शर्मा, लाइमरोड की संस्थापक सुचि मुखर्जी, नेक्स्टड्राप की अन्ु श्रीधरन आदि का उदाहरण देते हुए उद्यमी बनने के लिए प्रोत्साहित किया। महिला उद्यमी अपने लिए और अन्य लोंगों के लिए नए कार्य सृजित कर समाज को प्रबंध, संगठन एवं व्यवसाय समस्याओं के भिन्न-भिन्न समाधान उपलब्ध कराती है।
सितारगंज राजकीय डिग्री कालेज के प्राचार्य डॉ सुभाष चन्द्र वर्मा ने उत्तराखण्ड के पारंपरिक कला और रोजगार के अवसर पर बोलते हुए कहा कि चुनौतियों को अवसर में बदलने का भरोसा युवाओं में ही होता है। उत्तराखण्ड की थारू जनजाति की पारम्परिक आर्ट और क्राफ्ट की बात करते हुए पारम्परिक कौशल की मार्केटिंग के गुण सिखायें। थारू पैच वर्क, आन्तरिक साज-सज्जा, उत्तराखण्ड के पारम्परिक परिधान, पारम्परिक कौशल की व्यावसायिक उपयोग की पलायन रोका जा सकता है। उत्तराखण्ड में व्यावसाय की असीम सम्भावनायें हैं। आवश्यकता है आधुनिक परिवेश के अनुसार उनका समुचित समायोजन कर समयानुकूल बनाने की।
दूसरे सत्र के मुख्य वक्ता इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल डेवलपमेंट के अध्यक्ष डॉ अमित कुमार श्रीवास्तव ने स्वयं सहायता समूहों कि निर्माण और कार्यपद्धति पर बोलते हुए कहा कि हुनरमंद हाथ कभी खाली नहीं रहते। स्वयं सहायता समूह महिलाओं के आर्थिक-सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर वंचित वर्ग को समाज की मुख्या धारा में जोड़ रहें है । व्यवसाय को लेकर जितनी ज्यादा दिलचस्पी होगी उतने ही ज्यादा रोजगार के अवसर होंगे और बेरोजगारी की समस्या का समाधान होगा । स्वयंसहायता समूह महिला-पुरूष किसी के भी द्वारा चलाया जा सकता है।
प्रगतिशील स्वयं सहायता समूह की मीरा परिहार ने कहा कि स्वयं सहायता समूह के माध्यम से सरकरी योजनाओं का समुचित लाभ लेकर वंचित महिलांये अपने आप को मुख्यधारा में जोड़ सकती है आवश्यकता है सार्थक प्रयास की । स्वयं सहायता समूह के गठन और कार्यविधि से सम्बंधित जिज्ञासाओं का समाधान कर गठन के प्रक्रिया और समूह द्वारा किये जा रहे कार्यों को विस्तार से बताया । ईमानदार भला सोचने वाले ही स्वयं सहायता समूह का संचालन सही तरीके से करते हैं। आर्थिक और सामाजिक स्तर को ध्यान में रखकर ही समूह का गठन करना चाहिए। समूह द्वारा उत्पादित उत्पादों को बाजार ले जाना और बिक्री की व्यवस्था महत्वपूर्ण है।
आभार ज्ञापन करते हुए संयोजक एवं कौशल केन्द्र के विभागाध्यक्ष डॉ. विनोद कुमार ने सभी को स्मृति चिन्ह और पुस्तकें भेट की। कार्यशाला का संचालन करते हुए आयोजक सचिव डॉ. हरनाम सिंह ने बताया कि कल कार्यशाला को कुमायूं विश्वविद्यालय, ईकामर्स के विभागाध्यक्ष प्रो. अतुल जोशी, एडियेंट, सिडकुल के राजीव विश्नोई, महाविद्यालय के राजनीति विज्ञानं के डॉ डी के पी चौधरी और डाॅ पी एन तिवारी संबोधित करेगें । जिसमें प्रमुख रूप से डॉ. पुष्पा देवी, डॉ हरीश चन्द्र , डा. पी.सी. सुयाल, डॉ. मनीषा तिवारी, डॉ. दिनेश शर्मा, डॉ. शम्भू दत्त पाण्डेय, डॉ. भगवती जोशी, डॉ कमला, डॉ. उज्मा सहरोज, डॉ. रूमा साह, डॉ. अनच्लेश कुमार, डॉ. गौरव वाष्र्णेय, नरेश कुमार, ई. आकांक्षा गुप्ता, अमित कुमार सिंह, डॉ संतोष अनल, डॉ रीनू रानी,रूद्र देव, वेद विश्वकर्मा, हितेश जोशी सहित विभन्न विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों शिक्षक, शोध छात्र एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।