नई दिल्ली: राजनीतिक तौर पर संवेदनशील बोफोर्स मामला सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है. सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में बोफोर्स तोप सौदा मामले में आरोपियों के खिलाफ सारे आरोप निरस्त करने के दिल्ली हाई कोर्ट के 2005 के फैसले को चुनौती दी. करीब 13 साल की देरी के बाद सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की.

नये सबूतों के आधार पर सीबीआई ने अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से बात की और इसके बाद ये फैसला लिया. साल 1986 में 1437 करोड़ रुपये के बोफोर्स तोप घोटाले में भारतीय अधिकारियों को 64 करोड़ रुपये घूस देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में अब सीबीआई हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दाखिल कर रही है. सीबीआई ने इस मामले में 31 मई 2005 को दिल्ली हाईकोर्ट के दिए फैसले को अभी तक सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी थी.

साल 2005 में दिल्ली हाई कोर्ट ने घोटाले में यूरोप में रहने वाले हिंदुजा भाईयों पर लगे सभी आरोपों को खारिज कर दिया था.

अग्रवाल ने हाई कोर्ट के इस फैसले को चुनौती दी है. सर्वोच्च अदालत ने 18 अक्तूबर, 2005 को उनकी उस याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार किया था जिसे सीबीआई द्वारा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील नहीं किए जाने के बाद दायर किया गया था. अपने आवेदन में अग्रवाल ने कहा कि उन्होंने जनहित में अपील दायर की है क्योंकि सीबीआई आगे नहीं आई और यह कहा गया कि कानून मंत्रालय से एजेंसी को अनुमति नहीं दी गई, जबकि हाईकोर्ट का आदेश गैरकानूनी था.

सीबीआई और आरोपियों के बीच कथित मिलीभगत के आरोप को ठोस बनाने के प्रयास के तहत अग्रवाल ने अपने आवेदन में उस पूरे घटनाक्रम का सिलसिलेवार ब्यौरा दिया जिसके चलते इतालवी कारोबारी ओत्तावियो क्वात्रोच्ची के लंदन स्थित बैंक खाते पर 2006 में रोक लगा दी गई थी और इसके लिए तत्कालीन सॉलीसीटर जनरल बी दत्ता इंग्लैंड गए थे.

अग्रवाल ने कहा कि उन्होंने पूरे बोफोर्स घोटाले और क्वात्रोच्ची के लंदन स्थित बैंक खाते में जमा की गई कथित रिश्वत की रकम के ब्यौरे तथा 16 जनवरी, 2006 को खाते पर रोक लगाए जाने के बाद घटनाक्रमों की फिर से जांच की मांग करते हुए बीते तीन अगस्त को सीबीआई को पत्र लिखा था. वकील की ओर से दायर याचिका का इस संदर्भ में भी खासा महत्व है कि बीजेपी सांसदों ने मीडिया में आई खबरों के मद्देनजर संसद में बोफोर्स मामले की जांच को फिर से खोलने की मांग की.