इकोनॉमिक सर्वे: देश में कहां मिलेगी जॉब का कोई ज़िक्र नहीं
नई दिल्ली: हर साल जॉब मार्केट में आ रहे लगभग 1.5 करोड़ युवाओं के समक्ष गहराती रोजगार की समस्या अब केंद्र सरकार की सबसे बड़ी सरदर्दी बन गई है. हालांकि 29 जनवरी को संसद में पेश आर्थिक सर्वे में इस मामले में सरकार की तरफ से कोई साफ तस्वीर नहीं रखी गई. सर्वे में युवाओं को ट्रेनिंग देकर जॉब के लिए तैयार करने की बात तो जरूरी की गई, लेकिन यह नहीं बताया गया कि यह ट्रेनिंग किस तरह की होगी और रोजगार के अवसर कहां निकलने जा रहे हैं. सर्वे में यह भी नहीं बताया गया कि फिलहाल कितने लोगों को जॉब की जरूरत है और सरकार उसके लिए क्या करने जा रही है.
हालांकि सर्वे से इस बात के पर्याप्त संकेत हैं कि बजट में रोजगार को पहली प्राथमिकता दी जाएगी. सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार द्वारा तैयार इस सर्वे में खासकर युवाओं, महिलाओं के लिए रोजगार के उपाय निकालने पर बल दिया गया है. इसमें कहा गया है कि सरकार को एजुकेटेड, ट्रेंड और हेल्दी लेबर फॉर्स तैयार करने के लिए उचित इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जाना चाहिए. इसके लिए उचित शिक्षा और ट्रेनिंग जरूरी है. लेकिन इसके लिए कोई टाइम बाउंड फ्रेमवर्क नहीं दिया गया है.
गौरतलब है कि हाल ही में एसबीआई ग्रुप की चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर सौम्या कांति घोष और आईआईएम बेंगलुरु के प्रोफेसर पुलक घोष द्वारा की गई एक स्टडी में बताया गया है कि हर साल 15 मिलियन यानी 1.5 करोड़ लोग जॉब मार्केट में आ रहे हैं.
इसी रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2017-18 के नवंबर तक 36.8 लाख जॉब पैदा हुईं. इस तरह अगर पूरे साल की बात करें तो यह संख्या 55 लाख होगी. इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर सभी आकलनों को ध्यान में रखा जाए तो वर्तमान वित्त वर्ष के दौरान कुल मिलाकर 70 लाख लोगों को फॉर्मल सेक्टर में नौकरी मिलने जा रही है, क्योंकि हर महीने 5.9 लाख लोगों को फॉर्मल सेक्टर में नौकरी मिल रही है.
वैसे इस सरकारी रिपोर्ट का खंडन इकोनॉमिस्ट से लेकर राजनीतिक दल तक सभी कर रहे हैं. कांग्रेस की तरफ से पूर्व वित्त मंत्री पी चिंदबरम ने पहले से इसे झूठ करार दिया है. उन्होंने सवाल उठाया है कि आखिर ये जॉब पैदा कहां हो रही है और ये मिल किन्हें रहे हैं, सरकार यह क्यों नहीं बता रही है.
कांग्रेस प्रेसिडेंट राहुल गांधी ने तो यहां तक कहा है कि अगर सरकार जॉब पैदा नहीं कर सकती तो बता दे और कांग्रेस को सत्ता में आने दे, हम 6 महीनों में इस काम को करके दिखा देंगे.
सभी आकलनों और एक्सपर्ट की मानें तो देश में सालाना इस समय 6-7 मिलियन यानी 60-70 लाख के करीब जॉब फॉर्मल और इनफॉर्मल दोनों सेक्टर्स में निकल रही हैं. इस तरह जॉब मार्केट में एंट्री करने वाले आधे लोगों बेरोजगार रह जा रहे हैं. इसके अलावा, 90 फीसदी से अधिक इनफॉर्मल सेक्टर यानी असंगठित क्षेत्र में मिलती है, जहां सोशल सिक्युरिटी जैसी कोई व्यवस्था नहीं होती है. अलबत्ता, सरकार ने यह जरूरी कहा दिया कि जॉब के संकट को जिस तरह से बढ़ाकर पेश किया जाता है, यह उतना गंभीर है नहीं.
इस तरह रोजगार की चाहत में भटकने वाले युवाओं के लिए आर्थिक सर्वे एक तरह से निराशा ही लेकर आया. हालांकि पूरी तस्वीर एक फरवरी को पेश होने वाले बजट से ही साफ होगी, क्योंकि एक्शन डे तो यही होगा.