‘‘भगवान नाम की महिमा अपार‘‘
राम नाम की महिमा किसी से छीपी नहीं है। वेद, पुराण तथा सभी ग्रन्थों ने हरिनाम की महिमा को गाया है। गुरूनानक, कबीर, तुलसीदास व मीराबाई आदि संतों ने कभी नाम के अतिरिक्त अन्य कोई साधन प्रभु प्राप्ती के लिए सरल व सुलभ नहीं बताया है। कोई कही भी किसी भी अवस्था में नाम सुमिरन कर सकता है। हरि नाम सुमिरन के लिए व्यक्ति को कोई खास तैयारी नही करनी पड़ती। व्यक्ति सुबह-सायं दिन-रात कभी भी नाम सुमिरन कर सकता है। राम नाम सुमिरन हेतु ही हमारे नाम भगवान के नाम पर रख जाते है ताकि जब हम किसी को पुकारे तो मुख से इसी बहाने राम नाम निकल जाए। रामनाम की महिमा भगवान शंकर भोले नाथ से प्रारम्भ होकर जगत में समायी है। भगवान शंकर अजन्मा है यानि उनका आदि अन्त किसी को नही पता है। जब अविनाशी शंकर राम नाम नित् निरन्तर जपते रहते है तो हम काल के गाल में समाये हुए प्राणी किस घड़ी का इन्तजार करते है कि कब नाम लिया जाए। मृत्यु और जन्म का कोई समय विशेष निश्चित नहीं है। जन्म कभी भी हो सकता है इसी प्रकार मृत्यु भी कभी आ सकती है। 24 घंटे, जन्म मृत्यु का चक्र चलता रहता है। किसी संत ने कहा कि ‘‘जागने से सोना भला जो कोई जाने सोय, स्वास स्वास बस उसका सुमिरनहोय। गुरूनानक कहते है राम नाम मे सब समया है। गौस्वामी तुलसीदास जी श्रीराम चरित मानस में लिखते है ‘‘कहो कहा लगी नाम बड़ाई-राम न सकहिं राम गुणगाई‘‘ अर्थात नाम की महिमा इतनी अनन्त है कि स्वयं राम भी राम नाम महिमा उसके गुण पूरा -पूरा नहीं बताते है। संतो को तो राम नाम का सहारा है ही राम ने तो अनेक दुष्टो को भी तारा है। गणिका, अजामिल, गीध, व्याध, गज आदि खल तारे घना। आभीर यमन किरात आदि नाम के प्रभाव से मुक्त हो गए। कहने का तात्पर्य यहि है कि नाम नामी से केवल शरणागत होकर नाम सुमिरन करने भर से उसकी मुक्ति की गारण्टी देता है। रामचरित मानस में पूज्य गुरूदेव लिखते है ‘‘ध्रुव सगलानि जपे हरि नाऊ-पायऊ अचल अनुपम ठाऊ, सुमिरि पवनसुत पावन नामु-अपने बस कर रखे रामु‘‘ अपतु अजामिल गज गानिकाऊ, भय मुक्त हरि नाम प्रभाऊ-नाम राम को कलपतरू-कलि कल्याण निवासु जो सुमिरत भयो भाग से-तुलसी तुलसीदासु। अर्थात ध्रुव ने मां के कहने से हरिनाम लिया और साक्षात नारायण के दर्शन प्राप्त कर उन्हीं के आज्ञानुसार 36 हजार वर्ष राजभोग और तदोउपरान्त ध्रुव लोक जो अचल है उस को प्राप्त किया। श्री हनुमान जी महराज तो निरन्तर राम नाम सुमिरिन में ही लीन रहते है जिसके कारण भगवान राम स्वंय उनके वश में रहते है। तुलसीदास बाबा भी कहते है कि उन्होंने नाम के प्रताप से सब पाया है। ‘‘तुलसी-तुलसी जग कहे तुलसी जंगल की घास-भई कृपा रघुनाथ की हो गए तुलसीदास‘‘। नाम संस्कार का विशेष महत्व होता है। राजा दशरथ के चारों पुत्रों का नामकरण संस्कार स्वयं गुरू वशिष्ट करते हुए कहते है ‘‘जो आंनंद सिधु सुखराशी सिकर से त्रिलौक सुपासी-सो सुखधाम राम अस नामा-आखिल लोक पावक विश्रामा-यानि राम से पूर्व उनको आनदं का सागर सुखो की राशी, जिनके एक कण मात्र से तीनो लोक सुवासित हो जाते है जो सुखों के धाम है हे राजन तुम्हारे उस बडे़ पुत्र का नाम राम रखता हूं। विश्व भरण पोषण कर जोई- ताकर नाम भरत अस होई-यानि जो सम्पूर्ण विश्व का भरण पोषण करेंगे उन तुम्हारे पुत्र का नाम मैं भरत रखता हॅू। जाके सुमिरिन ते रिपु नाशा नाम शत्रुघन वेद प्रकाश- यानि जिनके सुमिरन मात्र से शत्रु का नाश हो जाएगा जो वेदो का प्रकाश स्वरूप है उनका नाम शत्रुघन रखता हूॅं। लक्ष्मणधाम राम प्रिय सकल जगत आधार-गुरू वशिष्ट तेहि राखा लक्ष्मण नाम उदार-यानि जो समस्त लक्षणों के धाम राम के प्रिय और सकल जगत के आधार है ‘‘शेष नाग‘‘ जिनके फने पर पृथ्वी टीकि है उनका नाम लक्ष्मण रखता हूॅ। परम फकिर रामकथा के सरस गायक पूज्य संत मोरारी बाबू जी नाम महिमा को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि उन्होंने योगियों से मुलाकात की उनके बारे में पढा, सुना, ज्ञानियों से भी मुलाकात की उनके विषय में जाना-ध्यान मार्गियों से भेंट की सबसे पूछा कि आप सबने अपने अपने मार्ग से क्या परमपिता परेश्वर को पा लिया है तो बापू कहते है सभी ने कहा कि अभी पूरा नहीं पाया है झलक भर मिलि है। बापू कहते है जब उनकी नाम मार्गियो से मिला उनको पढा तो सबने कहा लिखा की नाम के प्रताप से उन्होंने परमात्मा को पूरा पूरा पाया है अर्थात कही अधूरापन नहीं बचा। नाम की महिमा से वेदान्त भी थर्राता है यह मोरारी बापू को परम तपस्वी नारायण दास जी कहते है। बापू कहते है मैं न योग मार्गी हूं न ध्यान मार्गी हूं न ही ज्ञान मार्गी हूॅ मैं तो केवल और केवल नाम मार्गी हंू। कबीर साहब के एक शिष्य ने उनसे पूछा कि आप राम राम सुमिरन करते है लेकिन आप तो निराकर ब्रहम के उपासक है राम तो दशरथ के बेटे है उनका जन्म हुआ है तो आप कौन से राम का नाम सुमिरन करते हैं तब कबीर साहब ने शिष्य से मुस्काराते हुए पूछा कि बेटा राम तो एक ही है तुम राम को विलग-विलग कैसे कहते हो। उन्होंने समझाया कि तुम्हारे बाप तुम्हारी बुआ के क्या लगते है भाई-तुम्हारी दादी के क्या है बेटा और तुम्हारी मां के क्या है साई यानि तुम्हारा बाप तो बाप है फिर राम भी इसीप्रकार साकार में दशरथ का बेटा है निराकार में घट घट में लेटा है समस्थ जगत का नियन्ता है और समस्त जगत में विराजते हुए उससे अलग भी वही राम ही तो है। बस तुम राम का सुमिरन करो ये उस पर छोड दो वह क्या है और क्या नहीं है। तुम्हारे सुमिरन करने से वह प्राप्त हो जाएगा। यद्यपि हरि अनन्त हरि अनन्ता कही सुनहिं बहु विधि सब संता। मेरे पूज्य पिता जी सबको घर में कहते है राम राम करते रहो जब तक घट मे प्राण-कभी तो दीनदयाल के भनक पडेगी कान। ‘‘जय सिया राम‘‘ तुलसीदास जी कहते है तुम अपने राम को कैसे भजते हो यह तुम्हारी ईच्छा है ‘‘तुलसी अपने राम को हिज भजो या खीज-भूमि पडे उपजेगें ही उल्टे सिधे बीज।
(नरेन्द्र सिंह राणा)
प्रदेश प्रवक्ता भाजपा