इन राज्यों में ऑफिस ऑफ़ प्रॉफिट के मामलों पर चुप्पी क्यों ?
नई दिल्ली: ऑफिस ऑफ़ प्रॉफिट मामले में राष्ट्रपति ने दिल्ली की केजरीवाल सरकार के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी है लेकिन 7 और राज्य ऐसे हैं जहां ऐसे मामले सामने आए हैं लेकिन या तो सरकार उन्हें दबाए बैठी है या फिर मामला सामने आने पर नियुक्तियां तो रद्द हुईं लेकिन विधायकों की सदस्यता बनी रही.
कर्नाटक
एक अंग्रेजी अखबार में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक कर्नाटक में भी ऐसे 10 मंत्रियों के नाम सामने आए हैं, जिन्हें खुद मुख्यमंत्री सिद्धारमैय्या ने संसदीय मंत्री नियुक्त किया था. ये सभी राज्य के मंत्रियों के पद पर सैलरी और अलाउंस का लाभ ले रहे हैं, साथ ही संसदीय मंत्री जो कि पहले ही लाभ का पद है, से भी सैलरी और अलाउंस ले रहे हैं. इनमें माकाबुल एस बागावन, राजा आलागुर, उमेश जी जाधव, डोडामनी रामाकृष्ण, चैन्नाबासाप्पा शिवाली, शकुंतला टी शेट्टी, सी पुटुरंगाशेट्टी, एच पी मंजुनाथ, ई थुकराम, के गोविंदाराज शामिल हैं.
छत्तीसगढ़
अगर इस मामले में दिल्ली की तरह कार्रवाई की जाएगी तो छत्तीसगढ़ की बीजेपी सरकार संकट में पड़ सकती है. 90 सीटों वाली छत्तीसगढ़ विधानसभा में बीजेपी के 49 विधायक हैं, जिनमें से 11 संसदीय सचिव के पद पर अभी भी काम कर रहे हैं. अगर कार्रवाई हुई तो बीजेपी की स्ट्रेंथ घटकर 38 रह जाएगी. इसके उलट कांग्रेस पार्टी के पास अभी 39 सदस्य हैं. हालांकि इन 11 संसदीय सचिवों के कामकाज पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने फिलहाल रोक लगा रखी है.
राजस्थान
राजस्थान में वसुंधरा राजे सरकार में 10 मंत्रियों को नियुक्त किया गया जो संसदीय सचिव के पद पर 40 हजार की सैलरी के अलावा 50 हजार अलाउंस भी लेते हैं जिसमें मेडिकल और बाकी सुविधाएं शामिल नहीं हैं. ये बिलकुल दिल्ली जैसा ही लाभ के पद का मामला है. ये लाभ हासिल करने के इस मामले में सुरेश सिंह रावत, जितेद्र कुमार, विश्वनाथ मेघवाल, लाडू राम विश्नोई, भैएरा राम चौधरी, नरेंद्र नागर, बीमा भाई, शत्रुघन गौतम, ओमप्रकाश, कैलाश वर्मा का नाम सामने आया है.
पुडुचेरी
पंडुचेरी में भी लाभ के पद का एक मामला सामने आया है. विधायक के लक्ष्मीनारायण संसदीय सचिव के पद पर हैं.
पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल में टीएमसी की सरकार ने भी साल 2013 और 2014 में 26 संसदीय सचिवों को नियुक्त किया था. हालांकि कलकत्ता हाई कोर्ट ने 2015 में इसपर रोक लगा दी थी. ममता इसके लिए कानून भी लेकर आईं मगर 2013 में एक जनहित याचिका दायर हो गई. हाईकोर्ट ने ममता बनर्जी के बनाए कानून को रद्द कर दिया. 24 विधायकों की नियुक्ति भी रद्द हो गई हालांकि किसी की सस्यता पर कोई फर्क नहीं पड़ा.
हरियाणा
हरियाणा में भी 4 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया गया था. 18 जुलाई 2017 को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने नियुक्ति रद्द कर दी. 50 हज़ार सैलरी मिलती थी और 1 लाख से ज़्यादा भत्ता मिलता था. इस मामले में भी सिर्फ नियुक्तियां रद्द हुईं लेकिन सदस्यता किसी विधायक की नहीं गई.
मध्य प्रदेश
मध्यप्रदेश का मामला सबसे जयादा विवादित माना जा रहा है. यहां विधान सभा के 118 विधायक ऐसे है जो लाभ के पद का लाभ उठा रहे हैं. आम आदमी पार्टी ने इस मामले की शिकायत भी की थी. शिकायत के मुताबिक 116 विधायक राज्य भर के कॉलेजों के जनभागीदारी समिति के सदस्य हैं. अगर दिल्ली की तरह यहां कदम उठाए गए तो शिवराज सरकार को इस्तीफ़ा देने की नौबत आ सकती है. इन विधायकों के आलावा शिवराज के दो मंत्री पारस जैन और दीपक जोशी भी भारत स्काउट गाइड में पदाधिकार है जो लाभ के पद के दायरे में आते हैं.