सशक्तिकरण के साथ महिलाओं का सुरक्षित भविष्य भी आवश्यक
रविश अहमद
महिलाओं के प्रति एक सकारात्मक पहलू विभिन्न षड़यन्त्रों, हिकारतों, एक दूसरे को नीचा दिखाने और गन्दी राजनीति के बीच से निकलकर सामने आया है तलाक ए बिदत पर कानून के रूप में। इस कानून के दो पहलू हैं और दोनों ही दुःखद। पहला यह कि मुस्लिम महिलाओं को सामने रखकर राजनीतिक हित साधने का प्रयास हुआ और दूसरा यह कि कथित मुस्लिम रहबरों ने इसकी गुंजाईश न केवल छोड़े रखी बल्कि तलाक ए बिदत का ग़लत प्रयोग भी जमकर हुआ।
बहरहाल जो भी हुआ उसके बावजूद कानून तो बना लेकिन अस्पष्ट एवं खामियों से भरा पूरा क्योंकि राजनीतिक हित साधना मक़सद था महिलाओं के प्रति संवेदनायें नही।
अब जबकि कानून बनाने की तमाम प्रक्रियाएं चल रही हैं तभी लगे हाथ महिलाओं के वास्तविक सशक्तिकरण अर्थात सुनिश्चित सुरक्षित भविष्य हेतु भी सख़्त कानून बनाया जाना चाहिये जो पहले से अस्तित्व में नही है।
जहां तक इस कानून की बात है यह पूर्णतया एक अनावश्यक कानून है जिसको केवल और केवल मुस्लिम समुदाय के प्रति सर्वसमाज की दुर्भावनायें पैदा करने के लिये हंगामा खड़ा करके बनाया गया। इस दौरान भारतीय मीडिया ने बेहद शर्मनाक किरदार निभाया और तमाम मुद्दों को दरकिनार करते हुए केवल तीन तलाक पर पत्रकारिता को शर्मसार किया। इस कानून की आवश्यकता इसलिये नही थी क्योंकि इस तरह के मामलों में न्यायिक व्यवस्था पहले से मौजूद थी जिसके अन्तर्गत अधिकतर पीड़ित महिलायें घरेलू हिंसा और हर्जे खर्चे सहित दहेज उत्पीड़न एक्ट तक के कानून के तहत न्यायिक लाभ हासिल कर रही थी। तमाम कानूनों की तरह इस कानून का वजूद में आना इस बात की गारंटी हरगिज नही लेता कि सामाजिक तौर पर तीन तलाक पर पूर्णतया प्रतिबंध लग जायेगा। कुल मिलाकर इस कानून के बाद यह अपराध (तलाक ए बिदत) कारित करने वाले लोग अब तीन साल की जेल से डरेगें, यह तभी संभव था जब बिना ट्रायल सीधे सज़ा का प्रावधान रखा जाता।
अब बात करते हैं महिलाओं को वास्तविक सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करने के प्रयास पर। भारत सरकार ने अपने कानून से सम्बन्धित बयानों में यह इशारा किया है कि उसने इस्लामिक मान्यताओं के अनुरूप ही कानून बनाने का प्रयास किया है उम्मीद की जानी चाहिए कि बिना किसी धर्म भेद के तमाम महिलाओं के सम्बन्ध में पत्नि को यदि कोई पति एक झटके में अलग कर देता है तो उसे भी इस कानून के दायरे में लाया जायेगा ताकि किसी अन्य नये धर्म आधारित कानून की आवश्यकता न पड़े।
इसी तर्ज पर समस्त महिलाओं को चाहे वह किसी धर्म अथवा जाति की हो उनके सुनिश्चित सुरक्षित भविष्य हेतु सरकार को इस्लामिक शिक्षाओं से प्रेरणा लेकर एक कानून बनाये जाने की अत्यन्त आवश्यकता है जिससे उनके भविष्य की सुरक्षा की पूर्ण गारंटी संभव हो सके।
एक महिला का उसके पिता एवं पति की जायदाद में हिस्सा सुनिश्चित होना चाहिये यह इस्लाम धर्म की शिक्षा है किन्तु तलाक के दुरूपयोग की तरह यह भी अमल में नही लाया जाता।
कुछ पीड़ित महिलायें कोर्ट द्वारा निर्धारित अवधि तक हर्जा खर्चा प्राप्त करने में सफल रहती हैं तो कुछ मामले समाज में ऐसे भी होते हैं जिनमें पीड़िता को लोकलाज के भय से कोर्ट तक जाने नही दिया जाता क्योंकि सिवाय रूसवाई के कुछ हासिल नही होता जो मिलता भी है भविष्य को सुरक्षित करने में नाकाफी रहता है। तो महिला सशक्तीकरण और सुरक्षित जीवन के लिये क्यों न एक ऐसा प्रावधान अमल में लाया जाये जो भविष्य हेतु महिलाओं को सुरक्षा गारंटी देता है क्योंकि फिलहाल का माहौल महिला सुरक्षा हेतु सार्थक बना हुआ है और सरकार को पूर्ण जनसमर्थन भी महिलाओं के प्रति संवेदनाओं के रूप में हासिल है तब लगे हाथ यह कानून/प्रावधान लागू कर देना देश की महिलाओं के लिये सबसे बड़ा और वास्तविक संवेदनपू्र्ण होगा।