कब कैसा नववर्ष हमारा?
विनोद बंसल
भारत व्रत पर्व त्यौहारों का देश है जिसका हर दिन कोई न कोई विशिष्टता लिए हुए होता है. कोई किसी महापुरुष का जन्मदिवस है तो कोई पुण्य तिथि. कोई फसल से सम्बंधित होता है तो कोई किसी खगोलीय घटना से सम्बन्धित. कोई समाज जीवन को प्रेरणा स्वरूप मनाया जाता है तो कोई किसी घटना विशेष को याद रख कर उससे सदैव ऊर्जावान बने रहने के लिए. एक बात तय है कि हमारे यहाँ कुछ भी यूं ही नहीं मनाया जाता बल्कि, प्रत्येक उत्सव/त्यौहार का कोई न कोई एक सामाजिक, वैज्ञानिक, आध्यात्मिक या राष्ट्रीय कारण अवश्य होता है. किन्तु हां! कालान्तर में हमारे देश में कुछ पर्व त्यौहार या परम्पराएं ऎसी भी घुस आईं जो हमारे इन सिद्धांतों से कभी मेल नहीं खातीं फिर भी हमने उन्हें अपना लिया.
अंग्रेजी कैलेंडर के प्रथम दिवस यानी एक जनवरी के आने के एक सप्ताह पहले ही क्रिसमस और नए साल के आगमन की तैयारियों का जोश चारों ओर नजर आने लगता है। इस जोश में अधिकतर लोग अपना होश भी खो बैठते हैं। करोड़ों रुपये नववर्ष की तैयारियों में लगा दिए जाते हैं। होटल, रेस्त्रां, पब इत्यादि अपने-अपने ढंग से इसके आगमन की तैयारियां करने लगते हैं। हैप्पी न्यू ईयर’ के बैनर, होर्डिंग्स, पोस्टर और कार्डों के साथ शराब की दुकानों की भी खूब चांदी कटने लगती है। कहीं कहीं तो जाम से जाम इतने टकराते हैं कि मनुष्य मनुष्यों से तथा गाड़ियां गाडियों से भिड़ने लगती हैं और घटनाएं दुर्घटनाओं में बदलने में देर नहीं लगती। हम भारतीय भी पश्चिमी अंधानुकरण में इतने सराबोर हो जाते हैं कि उचित अनुचित का बोध त्याग अपनी सभी सांस्कृतिक मर्यादाओं को तिलांजलि दे बैठते हैं। पता ही नहीं लगता कि कौन अपना है और कौन पराया। क्या यही है हमारी संस्कृति या त्योहार मनाने की परम्परा !
जिस प्रकार ईस्वी संवत ईसा से संबंधित है, ठीक उसी प्रकार, हिजरी संवत् का सम्बन्ध मुस्लिम जगत और हजरत मुहम्मद साहब से है। किन्तु भारतीय काल गणना के प्रमुख स्तंभ विक्रमी संवत् का सम्बन्ध किसी भी धर्म से न होकर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत और ब्रह्माण्ड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है। इतना ही नहीं, ब्रह्माण्ड के सबसे पुरातन ग्रंथ वेदों में भी इसका वर्णन है। नव संवत् यानी संवत्सरों का वर्णन यजुर्वेद के 27वें व 30वें अध्याय के मंत्र क्रमांक क्रमश: 45 व 15 में विस्तार से दिया गया है। विश्व में सौरमण्डल के ग्रहों व नक्षत्रों की चाल व निरन्तर बदलती उनकी स्थिति पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग आधारित होते हैं।
वैज्ञानिक आधार के कारण ही पाश्चात्य देशों के अंधानुकरण के बावजूद, चाहे बच्चे के गर्भाधान की बात हो, जन्म की बात हो, नामकरण की बात हो, गृह प्रवेश या व्यापार प्रारम्भ करने की बात हो, सभी में हम एक कुशल पंडित के पास जाकर शुभ लग्न व मुहूर्त पूछते हैं। और तो और, देश के बड़े से बड़े राजनेता भी सत्तासीन होने के लिए सबसे पहले एक अच्छे मुहूर्त का इंतजार करते हैं जो कि विशुद्ध रूप से विक्रमी संवत् के पंचांग पर आधारित होता है न कि अंग्रेजी कैलेंडर पर। भारतीय मान्यता के अनुसार कोई भी काम यदि शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ किया जाये तो उसकी सफलता में चार चांद लग जाते हैं।
भारतीय संस्कृति श्रेष्ठता की उपासक है। जो प्रसंग समाज में हर्ष व उल्लास जगाते हुए एक सही दिशा प्रदान करते हैं, उन सभी को हम उत्सव के रूप में मनाते हैं। राष्ट्र के स्वाभिमान व देश प्रेम को जगाने वाले अनेक प्रसंग चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से जुडे हुए हैं। यह वह दिन है, जिस दिन से भारतीय नव वर्ष प्रारम्भ होता है। यह सामान्यत: अंग्रेजी कैलेंडर के मार्च या अप्रैल माह में पड़ता है। मान्यता है कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के सूर्योदय से ही ब्रह्मा जी ने जगत की रचना प्रारंभ की। भगवान श्री राम, चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य और धर्म राज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात्, नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। आर्य समाज स्थापना दिवस, सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगददेव, संत झूलेलाल व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म भी वर्ष प्रतिपदा के दिन ही हुआ था।
यदि हम इस दिन के प्राकृतिक महत्व की बात करें तो वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष-प्रतिपदा से ही होता है, जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है। फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिए शुभ मुहूर्त होता है।
क्या एक जनवरी के साथ ऐसा एक भी प्रसंग जुड़ा है, जिससे राष्ट्र प्रेम जाग सके, स्वाभिमान जाग सके या श्रेष्ठ होने का भाव जाग सके? मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा पद्धति का ही नतीजा है कि आज हमने न सिर्फ़ अंग्रेजी बोलने में हिन्दी से ज्यादा गर्व महसूस किया बल्कि अपने प्यारे भारत का नाम संविधान में ‘इंडिया दैट इज भारत’ तक रख दिया। इसके पीछे यही धारणा थी कि भारत को भूल कर इंडिया को याद रखो क्योंकि पुरातन नाम से हस्तिनापुर व उसकी प्राचीन सभ्यता और परम्परा याद आएगी।
राष्ट्रीय चेतना के ऋषि स्वामी विवेकानन्द ने कहा था, “यदि हमें गौरव से जीने का भाव जगाना है, अपने अन्तर्मन में राष्ट्र भक्ति के बीज को पल्लवित करना है तो राष्ट्रीय तिथियों का आश्रय लेना होगा। गुलाम बनाए रखने वाले परकीयों की दिनांकों पर आश्रित रहने वाला अपना आत्म गौरव खो बैठता है।” इसी प्रकार महात्मा गांधी ने 1944 की हरिजन पत्रिका में लिखा था, “स्वराज्य का अर्थ है : स्व-संस्कृति, स्वधर्म एवं स्व-परम्पराओं का हृदय से निर्वाह करना। पराया धन और पराई परम्परा को अपनाने वाला व्यक्ति न ईमानदार होता है न आस्थावान।”
आवश्यक है कि हम अपने नव वर्ष का उल्लास के साथ स्वागत करें न कि अर्धरात्रि तक मदिरापान कर हंगामा करते हुए, नाइट क्लबों में अपना जीवन गुजारें। यदि इस तरह का जीवन जीते हुए हम लोग उन्मत्त होकर अपने ही स्वास्थ्य, धन-बल और आयु का विनाश करते हुए नव वर्ष के स्वागत का उपक्रम करेंगे, तो यह न केवल स्वयं के लिए बल्कि अपनी भावी पीढ़ी, समाज और राष्ट्र के लिए भी घातक होगा।
हम नववर्ष के दिन कुछ ऐसे कार्य कर सकते हैं, जिनसे समाज में सुख, शान्ति, पारस्परिक प्रेम तथा एकता के भाव उत्पन्न हों। जैसे सर्व प्रथम प्रभु आराधना, हवन, यज्ञ, संध्या वन्दनोपरांत हम गरीबों और रोगग्रस्त व्यक्तियों की सहायता करने, वातावरण को प्रदूषण से मुक्त रखने, वृक्षारोपण करने, समाज में प्यार और विश्वास बढ़ाने, शिक्षा का प्रसार करने तथा सामाजिक कुरीतियां दूर करने जैसे कार्यों के लिए संकल्प ले कर इस ओर पहल कर सकते हैं। आइए! विदेशी दासत्व को त्याग स्वदेशी अपनाएं और गर्व के साथ भारतीय नव वर्ष यानी विक्रमी संवत् को ही मनाएं तथा इसका अधिक से अधिक प्रचार करें।
(लेखक विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)