खनन बन्द होने से कमज़ोर होता आम आदमी
रविश अहमद
जिस वक्त खनन बन्द हुआ प्रत्यक्ष रूप में करीब 150000 लोग केवल सहारनपुर में खनन कार्य से जुड़े थे यदि एक व्यक्ति के परिवार में औसतन 5 लोग माने जायें तो करीब 750000 लोग प्रभावित हैं। यह कोई सटीक आंकड़ा नही है लेकिन 200 स्टोन क्रशर 1500 ट्रैक्टर ट्राली, हजारों जेसीबी और 1000 ट्रक को विभिन्न सूत्रों द्वारा न्यूनतम बताये जाने पर यह न्यूनतम आंकड़ा केवल जनपद सहारनपुर का है।
क्योंकि केवल खनन होने तक नही बल्कि अगर इस आंकड़े को कुल कारोबार के 80% से अधिक रोज़मर्रा की मज़दूरी के पैमाने से मापा जाये तो आंकड़ा जनपद की कुल आबादी का 80% ही परोक्ष रूप में प्रभावित माना जायेगा। 35,00,000 की आबादी का जनपद 80% में कितना होगा यह आप खुद गणना कर लें।
इस पूरे गणित में राज़ मिस्त्री, दिहाड़ी मज़दूर, पीओपी लेबर, रंगाई पुताई वाले, बिल्डिंग मैटेरियल के दुकानदार, रंग पेन्ट के दुकानदार सभी लोग खनन मज़दूरी से सीधे जुड़े लोगों से अलग जोड़ने का प्रयास किया गया है। इसमें शामिल हैं बिल्डर्स, ब्रोकर्स, प्रॉपर्टी डीलर्स और रिसेलर्स और इनके यहां हर तरह का काम करने वाले लोग और उनके परिवार। अपवाद यह है कि इस मज़दूर तबके का बड़ा हिस्सा कृषि से भी जुड़ा है लेकिन सहारनपुर के परिदृश्य में यह खनन कार्य पर अधिक निर्भर है।
स्थित आर्थिक रूप में दिन ब दिन कितनी नाज़ुक होती जा रही है यह आपको सहारनपुर के किसी भी बाज़ार के व्यापारी आसानी से बता सकते हैं। तमाम सीज़न चाहे वह त्यौहारों के हों अथवा मौसमों के बुरी तरह पिट चुके हैं। स्लम एरिया या यूं कहें गरीबों की बस्तियों का जायज़ा लीजिए मालूम होगा कि किस तरह मुश्किल से लोग अपना गुज़ारा कर पा रहे हैं।
एनजीटी के आदेश पर तो सवाल नही उठाया जायेगा लेकिन ऐसी परिस्थितियों के लिये सरकार कौन से उपाय कर रही है यह बड़ा सवाल है।
इधर जनता को राजनीतिक लोग तमाम तरह के मुद्दों में उलझाकर रखती है क्या जनता को ऐसे ही भूखे मरने के लिये छोड़ दिया जाये। भूख इन्सान को लगती है धर्म को नही यह बात राजनीतिक लोग समझना ही नही चाहते हैं बल्कि आपको ऐसा उलझाकर रखते हैं कि आप भी भूख पर परेशान होने की जगह धर्म रक्षा में लगे रहें।
सरकार को नरेगा/मनरेगा या अन्य योजनाओं के ज़रिये लोगों को न्यूनतम मज़दूरी दर पर रोज़गार उपलब्ध कराकर अपने कर्तव्य को पूरा करना चाहिए, और जब ऐसा नही होता है तब पेट की भूख मिटाने के लिये मेहनतकश मज़दूर अपराधी बनने को मजबूर होता है। रात के अन्धेरे में होने वाला अवैध खनन भी इसका एक उदाहरण हो सकता है।
सवाल बड़ी जनसंख्या की रोज़ी रोटी का है जो खनन बन्द होने के बाद से बिना काम के किस तरह गुज़ारा कर रहे हैं यह सुध लेने वाला भी कोई नही है। सहारनपुर जनपद ही की तरह शामली, बिजनौर, नज़ीबाबाद और तमाम पहाड़ी नदियों की तलहटी पर बसे जिलों में खनन कार्य मज़दूरी का एक बड़ा साधन है। खनन कार्य एक ऐसा साधन है जिसका प्रतिफल प्रत्येक विकास कार्य को प्रभावित करता है। कोई एक दो उद्योग नही बल्कि इन्फ्रास्ट्रक्चर से मुताल्लिक तमाम धन्धे इसके सुचारू रहने पर ही सुचारू रहते हैं जबकि खनन बन्द होते ही तमाम विकास कार्य अवरूद्घ हो चुके हैं। सर्वाधिक सीधे तौर पर प्रभावित अगर कोई हुआ है तो वह है मज़दूर तबका। कृषि प्रधान भारत में 48 प्रतिशत मज़दूर खेतीहर मज़दूर माना जाता है लेकिन खनन बहुल क्षेत्रों में नगद और न्यूनतम मज़दूरी से अधिक कमाई हो जाने के चलते मज़दूर खनन में अपनी आजीविका तलाशते हैं।
हमने केवल सहारनपुर जनपद को उदाहरण के तौर पर पेश किया है जबकि उत्तर प्रदेश में खनन एक बड़ा कार्य है जिससे न केवल आम आदमी को बल्कि समस्त सम्बन्धित व्यवसाईयों और प्रदेश सरकार को बड़ी आमदनी प्रत्येक वर्ष हो जाती है। व्यवसायी अपनी पूंजी को बाज़ार में अधिक जोखिम के साथ झोंकता है जिससे कुल कारोबार में वृद्धि होती है जबकि मज़दूर तबका भी न्यूनतम मज़दूरी दर से अधिक कमाई के चलते साधारण बाज़ार में अधिक खर्च कर लेता है, यह आमदनी और खर्च सरकार के राजस्व में भी बढ़ोतरी करता है जिससे विकास कार्य संभवतः अधिक प्रतिशत में होते हैं।
सरकार को प्रति वर्ष खनन ठेको से केवल जनपद सहारनपुर में औसतन करीब कितने रूपयों की प्राप्ति हो जाती है यह जानकारी हमें सहारनपुर जिला मुख्यालय के वित्त विभाग व खनन विभाग से नही मिल पायी है क्योंकि उनका रवैया टालमटोल वाला था वैसे हमें इस बिन्दू पर चर्चा करने की केवल इतनी ही आवश्यकता थी कि इस प्रति वर्ष राजस्व से कितना विकास कार्य संभव था। हमारा उद्देश्य इस बिन्दु पर सरकार का ध्यान आकर्षित करना है कि खनन मज़दूरी बन्द होने से आम आदमी के चूल्हे पर सीधा असर पड़ रहा है। पूरे प्रदेश से मात्र खनन से राजस्व की कितनी आमदनी होती रही होगी इसका आंकड़ा भी शायद आर टी आई के माध्यम से मिल सके। यह तो तय है कि खनन मात्र से पूरे प्रदेश की पर्याप्त आमदनी होती है, इतनी रकम से प्रत्येक जनपद में काफी विकास कार्य संभव होते हैं।
दरअसल आपको और हमें अर्थात जनता को इस खनन कार्य ने इतना प्रभावित कर दिया है कि काम न होने के चलते सभी कुछ चौपट नज़र आने लगा है।
अगर देश के विकास की बात करें तो शिक्षा का भी देश के विकास में बड़ा योगदान होता है लेकिन काम धन्धे बन्द होने की कगार पर पंहुचने से वो मज़दूर लोग जो अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य की कामना मन में संजोये उन्हें शिक्षा के लिये भेजने लगे थे, अब केवल पेट भरने की जुगत में उलझकर उन्हें पढ़ा नही सकेगें। यह वास्तविकता है इसे जितना जल्दी स्वीकार करेगें उतना बेहतर, अन्यथा विकास की ओर अग्रसर प्रदेश का आम आदमी कितना पिछड़ जायेगा, इसका अन्दाज़ा भी डराने वाला है।
साथ ही साथ रोज़गार विहीन समाज में अपराध बढ़ता है इस कटु सत्य से इनकार नही किया जा सकता। सरकार को चाहिये कि विभिन्न योजनाओं के माध्यम से मज़दूर वर्ग को मज़दूरी उपलब्ध कराकर उन्हें संजीवनी देने की पहल करे, क्योंकि योजनाओं के माध्यम से रूपया व सुविधाएं बांटना भी एक सीमा तक ही उचित है जबकि रोज़गार उपलब्ध कराकर मज़दूर वर्ग को लम्बी राहत पंहुचाई जा सकती है।