एमरजेंसी मे लोकतंत्र खतरे में था, मोदी राज मे सभ्यता: प्रशांत भूषण
रिहाई आंदोलन के दस साल पर ‘न्यायिक भ्रष्टाचार और लोकतंत्र’ विषय पर सेमीनार हुआ
लखनऊ: आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों की रिहाई के आंदोलन के 10 साल पूरे होने पर रिहाई मंच द्वारा लखनऊ प्रेस क्लब में ‘न्यायिक भ्रष्टाचार और लोकतंत्र’ विषय पर सम्मेलन आयोजित किया गया।
मुख्य वक्ता के बतौर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि मोदी सरकार हर संवैधानिक संस्था को जर्जर करने पर तुली है। हर तरफ डर और दहशत का माहौल बनाया जा रहा है, ऐसा आपातकाल में भी नहीं हुआ था। इमरजंेसी के दौरान सिर्फ लोकतंत्र खतरे में था लेकिन इस सरकार में सभ्यता ही खतरे में पड़ गई है। सरकार के समर्थन से हत्यारे गिरोहों को छुट्टा छोड़ दिया गया है जो लोगों को सिर्फ निर्ममता से कत्ल ही नहीं करते उसका वीडियो भी प्रसारित कर रहते हैं जिसे पसंद करने वालों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। इस अपराध में सोशल मीडिया का इस्तेमाल हो रहा है और इसके संचालकों के साथ खुद मोदी फोटोे खिंचवाते हैं। हत्यारों का इतना महिमा मंडन हमारी सभ्यता में पहले कभी नहीं हुआ था।
प्रशांत भूषण ने कहा कि हमारी न्याय पालिका हो या जांच एजेंसी सबको अपना पिट्ठू बनाने का प्रयास चल रहा है। कई बन चुके हैं कुछ बन रहे है। सहारा- बिरला प्रकरण में जिनका नाम आता है वह सीवीसी के मेंबर बनाए जाते हैं। एक दूसरे व्यक्ति हैं जिनपर बैंक के एक अफसर की गोपनीय रिपोर्ट लीक करने का आरोप है। यह दोनों मोदी शाह के आदमी हैं। राकेेश मीना प्रकरण में हम सब जानते हैं कि किस तरह से उन्हें आपत्तियों के बावजूद सीबीआई में लाया गया। इलेक्शन कमीशन के हेड गुजरात के मुख्य सचिव रह चुके हैं।
गुजरात में पेट्ररोलियम विभाग का चेयरमैन भी मोदी सरकार ने अपने एक चहेते को बना दिया और अपनी चहेती कंपनियों को गैस खोदने का आवंटन दे दिया। जिसमें फर्जी तरीके से आम जनता का पैसा डुबो दिया गया। यह घोटाला 20 हजार करोड़ का था। सबसे अहम कि इस खुदाई में गैस ही नहीं निकला।
दस साल पहले ईवीएम पर वीपैट का आदेश सर्वोच्च न्यायालय ने दिया था। अब इलेक्शन कमीशन कह रहा है कि हम केवल एक विधानसभा की वीपैट को जांचेंगे। जिस कम्पनी को चिप बनाने का ठेका मिला है उनपर भाजपा से जुड़े होने का आरोप है। यह सब शंका पैदा करती है। अब सर्वोच्च न्यायालय खुद इस पर आदेश करने से मना कर रहा है।
संविधान में सर्वोच्च न्यायालय सिर्फ दो लोगों के बीच विवाद निपटाने की संस्था नहीं है। उस पर मौलिक अधिकारों की रक्षा करने की भी जिम्मेदारी है। सरकार अगर अपना दायित्व नहीं निभा रही है तब न्यायपालिका की जिम्मेदारी आती है। लेकिन आज अदालतें जवाबदेही से भी स्वतंत्रता चाहती हैं। आज कुछ न्यायाधीश ऐसी धारणा रखने लगे हैं कि वे कुछ भी करने को स्वतंत्र हैं। स्वतंत्रता का मतलब है सरकार से स्वतंत्रता ताकि आप उस पर निगरानी रख सकें। न्यायपालिका के भ्रष्टाचार को अगर नहीं रोका गया तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता भी खत्म हो जाएगी।
प्रशांत भूषण ने कहा कि मेडिकल काॅलेज के प्रसाद एजूकेशन ट्रस्ट कालेज मामले में सीबीआई केस के संदर्भ में न्यायिक भ्रष्टाचार को समझा जा सकता है। ये पूरा मामला पब्लिक डोमेन में है। इस मामले में सर्वोच्च अदालत के न्यायाधीश भी शामिल हैं। जिसमें जजों की तरफ से तीन करोड़ रुपए फैसले के लिए मांगे गए थे। इस मामले में 2 करोड़ रूपए भी छापेमारी के दौरान पकड़े जा चुके हैं। सीबीआई की एफआईआर से पता चलता है कि इसमें मुख्य न्यायाधीश भी शामिल हैं। अगर सीबीआई इसकी जांच करती है तब वह न्यायाधीश को ब्लैकमेल कर सकती है जो अब दिखने भी लगा है। इसीलिए हम इस मामले में सुप्रीम कोर्ट गए और एसआईटी जांच की मांग की। उस समय मुख्य न्यायधीश कोर्ट में बैठे थे उन्होंने संविधान पीठ का गठन किया और खुद उसके अध्यक्ष बने जिसमें पांच में से तीन सदस्य ऐसे थे जो उसी केेस में शाामिल थे। बाद में हमारी याचिका को ही खारिज कर दिया गया और हम पर 25 लाख जुर्माना लगाया गया। क्या सर्वोच्च अदालत यह चाहता है कि सीबीआई जजों की जांच करे? आखिर उसे जजों की निगरानी में इसकी जांच से क्या समस्या है? अब सर्वोच्च अदालत और हाईकोर्ट में कितना निष्पक्षता है आप समझ सकते हैं। सरकार बेईमान जज चाहती है ताकि वह उन्हें ब्लैकमेल कर सके। न्यायाधीशों के खिलाफ होने वाली शिकायतों पर स्वतंत्र जांच आयोग होना चाहिए।
अदालत की अवमानना के दुरुपयोग के मामलों में बहुत बढ़ोत्तरी हो गई है। कुछ जज खुद को शहंशाह समझने लगे हैं, वे किसी भी सवाल का जवाब देना उचित नहीं समझते। न्यायपालिका में बहुत भ्रष्टाचार है लेकिन उसके निवारण का कोई तरीका नहीं है।
जजों की नियुक्ति में पहले कानून की समझ के बजाए कानून मंत्री से पहचान जरूरी समझा जाता था लेकिन अब चीफ जस्टिस से पहचान ही मुख्य योग्यता है। अब ये किसी को भी सेलेक्ट कर लेते हैं। इस नियुक्ति में कोई पारदर्शिता नहीं है। हम सरकार से एक स्वतंत्र न्यायिक आयोग की मांग हमेशा से करते रहे हैं।
प्रशांत भूषण ने कहा कि हमारा न्यायिक तंत्र देश के एक प्रतिशत लोगों को भी न्याय नहीं दे सकता। लाॅ कमीशन की रिपोर्ट पिछले 25 साल से पड़ी है। सरकार नहीं चाहती कि न्यायिक व्यवस्था दुरुस्त हो। अब तो रिटायर्ड जज भी करोड़ो कमा रहे हैं। यह धंधा तब तक खत्म नहीं होगा जब तक कि न्यायिक सुधार नहीं होते। जनता ही इसे सुधार सकती है। इसके लिए आंदोलन करना होगा।
रिहाई मंच अध्यक्ष एडवोकेट मोहम्मद शुऐब ने कहा कि न्यायिक भ्रष्टाचार का सीधा सम्बंध राजनीतिक भ्रष्टाचार से है। इसलिए राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने वालों को न्यायिक भ्रष्टाचार के खिलाफ भी बोलना होगा। ये दोनों ही एक दूसरे को बचाने का काम करते हैं। इसीलिए रिहाई मंच आतंकवाद के नाम पर फंसाए गए लोगों के सवाल को अदालत और सड़क दोनों जगह लड़ता है।
16 दिसम्बर 2007 को जौनपुर से फर्जी तरीके से उठाए गए खालिद मुजाहिद जिनकी हिरासती हत्या कर दी गई के चचा जहीर आलम फलाही ने कहा कि इस अपहरण के बाद पुलिस के खिलाफ जिस तरह अवाम सड़क पर उतरी वह इंसाफ के लिए चले संघर्षों के इतिहास का हिस्सा है। इसने मुसलमानों को आंतकवाद के नाम पर फंसाने के खिलाफ जनता को गोलबंद कर दिया था। उन्होंने कहा कि खालिद की हिरासती हत्या के दोषी पुलिस और खुफिया विभाग के अधिकारियों को वे एक न एक दिन सजा दिलवाकर रहेंगे। उन्होंने कहा कि तारिक कासमी के जेल में गए दस साल हो गए है उन्हें उस मामले में सजा हुई है जिसमें आरडी निमेष जांच आयोग ने उनकी गिरफ्तारी को संदिग्ध कहते हुए दोषी पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही थी।
नाहिद अकील ने कहा कि रिहाई मंच आंदोलन ने धर्मनिरपेक्षता को एक नई परिभाषा दी है अब आप परम्परागत मुद्दों को उठाकर अपने को धर्मनिरपेक्षता का झंडाबरदार नहीं कह सकते। अब आप को आतंकवाद जैसे मामलों में मुसलमानों के फंसाए जाने के सवाल को उठाना ही पड़ेगा। यह एक बड़ा बदलाव है।
रफत फातिमा ने कहा कि नफरत की राजनीति को हल्के फुल्के-मुद्दों पर गोलबंदी करके नहीं हराया जा सकता। आप को साम्प्रदायिकता के खिलाफ किसी भी आंदोलन में मुसलमानो की सुरक्षा के सवाल को सबसे पहले रखना होगा।
कानपुर से आए अखलाक चिश्ती ने कहा कि रिहाई आंदोलन ने दस सालों में लोकतांत्रिक मूल्यों को बचाने का जो प्रयास किया है उससे एक नए लोकतांत्रिक समाज का निमार्ण होगा। इस आंदोलन को और व्यापक करने की जरूरत है।
कानूनविद एम के शेरवानी ने कहा कि न्यायपालिका का भ्रष्टाचार लोगों को लोकतंत्र से ही अलगाव में डाल देगा। आम जनता का न तो विधायिका पर भरोसा रह गया है और ना ही कार्यपालिका पर, उसका आखिरी आसरा न्यायपालिका ही है।
डाॅ शफीकुर्रहमान खान ने कहा कि आतंकवाद के नाम पर कितने ही बेगुनाह मुसलमानों को फंसा कर उनके परिवारों को तबाह कर दिया गया। इन परिवारों के प्रति समाज का रवैया भी सौतेला हो जाया करता था लेकिन व्यापक आंदोलन के चलते लोगों के नजरिए में भी काफी बदलाव आया है।
लखनऊ हाई कोर्ट के अधिवक्ता ए एम फरीदी ने अदालत परिसर में अपने उपर आतंकवाद के नाम पर फंसाए गए बेगुनाहों का मुकदमा लड़ने के कारण अधिवक्ताओं द्वारा हुए हमलों का जिक्र किया।
कार्यक्रम का संचालन शाहनवाज आलम ने किया।
कार्यक्रम में पूर्व लोकायुक्त एससी वर्मा, डाॅ मजहर, शबरोज मोहम्मदी, डाॅ इनायतुल्ला खान, संदीप पांडेय, अरूंधती धुरू, सृजनयोगी आदियोग, वीरेन्द्र कुमार गुप्ता, हरेराम मिश्रा, लक्ष्मण प्रसाद, राजन विरुप, विनोद यादव, राबिन वर्मा, वर्तिका, राजेश यादव, बलवंत यादव, राजीव, अर्चना, रवि सिन्हा, अमीक जामई, कल्पना पाण्डे, सलीम बेग, नीति सक्सेना, शिब्ली बेग, हादी खान, रफीउददीन, यावर, अब्बास, अंकित चैधरी, सदफ जफर, अजय शर्मा, शेराज बाबा, तारिक दुर्रानी, अजीजुल हसन, कमर सीतापुरी, कात्यायनी, मसूद, मिनहाज, इफ्तेखार, नाहिद अकील, एखलाक चिश्ती, गुफरान सिद्दीकी, लाल बहादुर सिंह, अजीत यादव, दिनकर कपूर, प्रो एजे अंसारी, इमरान अंसारी, अकील, आचार्य राम लाल, गौरव सिंह, दीपक कबीर, अनिल यादव, राजीव यादव आदि।