भारतीय सेना का अप्रतिम विजयोत्सव- बांग्लादेश निर्माण
(16 दिसम्बर विशेष)
मृत्युंजय दीक्षित
16 दिसम्बर का दिन भारतीय सेना के इतिहास में अप्रतिम विजय का दिन है। इस दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तान को हराकर बांग्लादेश के रूप में एक नये देश की नींव रखी। आजादी के बाद स्वतंत्र भारत का एक नया संविधान बना जिसके अनुसार गणतंत्र स्थापित हुआ जबकि पाकिस्तान की कहानी ठीक इसकेे विपरीत रही। पाकिस्तान में काफी समय तक सैनिक तानाशाही का दौर रहा जिसके कारण वहां की सेना में पंजाब के सैनिकों की भरमार होने के कारण अन्य भागों की उपेक्षा होने लगी विशेष रूप से पूर्वी पाकिस्तान की।
अतः अपनी उपेक्षाओं से त्रस्त पूर्वी पाकिस्तान के नये नेतृत्व ने स्वायतता की मांग प्रारम्भ कर दी। संयोगवश 1970 में पाकिस्तानी चुनावों में मुजीबुर्रहमान की पार्टी को बहुमत मिला तथा वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो गये। किंतु तत्कालीन तानाशाह जनरल याहिया खान को यह पसंद नहीं था। मार्च 1971 में में मुजीबुर्रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया किंतु इसके पूर्व ही उन्होनें अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। उनके अनेक सहयोगी भारत आ गये और स्वतंत्र सरकार का गठन कर लिया। इसके साथ ही पाकिस्तानी सेना ने पूरे पूर्वी पाकिस्तान में दमनचक्र प्रारम्भ कर दिया। पाक सेना के क्रूर दमन चक्र के चलते भरत में शरणार्थियों की संख्या में तेज वृद्धि हो रही थी। इनमें पाक सेना के खिलाफ आक्रोश था। अतः इन सबसे मुक्ति पाने के उददेश्य से पूर्वी पाकिस्तान की सरकार ने कर्नल उस्मान के नेतृत्व में एक मुक्तिवाहिनी का गठन किया। मुक्तिवाहिनी ने मुक्ति प्राप्त करने हेतु छापामार हमले प्रारम्भ कर दिये।
वर्तमान बांग्लादेश पश्चिम, उत्तर और पूर्व दिशाओं से भारत से घिरा है। भारतीय सेना ने तत्कालीन परिस्थितियों में दो मुख्य लक्ष्यों पूर्वी पाकिस्तान में से पाकिस्तानी सेनाओं को हराकर वहां से हटने के लिए मजबूर करना जिससे शरणार्थी सुरक्षित वापस जा सकें तथा पश्चिमी सीमाओं पर पाकिस्तान द्वारा जवाबी हमलों को विफल करने के उददेश्य से पूर्वी की ओर से आक्रमण करने की योजना बनायी गयी । दक्षिण की ओर बंगाल की खाड़ी का समुद्रतट है। उधर से बाहरी सहायता पहुंचने से रोकने का दायित्व भारतीय सेना को सौंपा गया। पूर्वी पाकिस्तान में सैनिक अभियान को चार भागों में बांटा गया। संपूर्ण युद्ध की कमान तीनों सेना प्रमुखांे जनरल मानेकशा, नौसेनाध्यक्ष एडमिरल एस. एम. नंदा और वायुसेनाध्यक्ष एयर चीफ मार्शल पी. सी. लाल को सौंपी गयी थी। 3 दिसम्बर 1971 को पाक सेना ने औपचारिक रूप से युद्ध का ऐलान कर दिया और एक साथ कई हवाई अड्डों पर हमला बोल दिया। पूरे देश में आक्रोश की लहर दौड़ गयी। तत्कालीन राष्ट्रपति ने आपातकाल और युद्ध का औपचारिक ऐलान कर दिया। तत्कालीन प्रधाानमंत्री ने अर्धरात्रि में ही विशेष प्रसारण करके हमले का मुंहतोड़ जवाब देने का आहवान किया। अगले दिन युद्धकाल में तुरंत निर्णय लेने कार्यवाही करने और आवश्यक धन उपलब्ध कराने हेतु सुरक्षा बिल पास किया गया।
युद्ध प्रारम्भ होते ही भारतीय सेना के सभी अंगो ने अपने – अपने अभियान प्रारम्भ कर दिये। भारतीय सेना ने त्वरित कार्यवाही करते हुए बंदरगाहों की नाकेबंदी कर दी तथा करांची बंदरगाह के बाहर एवं बंगाल की खाड़ी के मुहाने पर युद्धपोत गश्त लगाने लगे। भारतीय विमानवाहक पोत विक्रांत ने भारी संख्या में पाकिस्तान की सशस्त्र पनडुब्बियों को डुबो दिया। पश्चिमी मोर्चे पर भारतीय नौसेना ने पाक सेना पर कहर बरपा दिया था। 4 दिसम्बर की रात्रि को करांची के तेल भंडारों पर प्रक्षेपास्त्रों से आक्रमण कर आग लगा दी। यह आग वायुसेना के विमानों के लिए करांची की पहचान बन गयी। यहां पर पाकिस्तानी सेना के कई जहाज जलमग्न हो गये। भारतीय वायुसेना ने भी पाकिस्तानी हवाई अडडों और सैनिक ठिकानों पर बमबारी की। मात्र तीन दिन के अभियान से पाक सेना ध्वस्त हो गयी। वायुसेना को पश्चिमी मोर्चे पर कांटें की लड़ाई लड़नी पड़ी।
इस युद्ध में भारतीय सेना का प्रमुख उद्देश्य पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तानी सेन के आतंक से मुक्त कराकर स्वतंत्र बांग्लादेश की स्थापना करना और करोड़ों शरणार्थियों को स्वदेश भेजना था। अतः अंतर्राष्ट्रीय दबावों के कारण यह युद्ध अधिक दिनों तक नहीं चल सका था।पूर्वी क्षेत्र को चार हिस्सों में बांटकर एक साथ आक्रमण करने की योजना बनायी गयी।
भारतीय सेना ने योजनाबद्ध आक्रमण करके धीरे- धीरे कई क्षेत्रों को अपने नियंत्रण में लेना प्रारम्भ कर दिया। 12 दिसम्बर को अति महत्वपूर्ण हार्डिया पुल को कब्जे में लिया और 15 दिसम्बर को भारतीय सेना रंगपुर पहंुच गयी। भारतीय सेना ने 15 दिसम्बर तक ढाका को चारों ओर से घेरने में सफलता प्राप्त कर ली। पूर्वी क्षेत्र में सिल्हेट एक महत्चवूर्ण पड़ाव था। जनरल सगत सिंह के नेतृत्व में 14 दिसम्बर को सिल्हेट को पूरी तरह से अपने कब्जे मंे ले लिया और 15 दिसम्बर को पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया।भारतीय सेनायेें अब अपने अचूक लक्ष्यों और योजनाओं के साथ ढाका और चिटगांव की ओर बढ़ने लग गयीं। इस कार्य में मुक्तिवाहिनी सैनिकों ओर स्थानीय नागरिकों ने बहुत सहयोग किया। पश्चिमी मोर्चें पर भी भारतीय सेनाओं ने पाक हमले को सीमित रखने मंे सफलता प्राप्त कर ली।इसी बीच युद्ध को समाप्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कोशिशें भी प्रारम्भ हो गयीं। इसमेें तत्कालीन सोवियत सरकार ने भारत का सहयोग दिया।
पाक सेना के हौसले धीरे – धीरे पस्त होने लग गये। पाक सैनिकों के गिरते मनोबल का लाभ उठाकर जनरल मानेकशा नंे पाक सेना प्रमुख फरमान अली को आत्मसमर्पण करने की तथा अपनी जान बचाने की अपील की। इसी बीच 15 दिसम्बर को पाकिस्तानी जनरल नियाजी ने युद्ध बंद करने की अपील की। 16 दिसम्बर को भारतीय जनरल मानेकशा ने पाक सेना को आत्मसमर्पण करने को कहा । जिसके बाद गोलाबारी बंद हो गयी। तत्कालीन पाकिस्तानी कमांडर ने भारतीय जनरल मानेकशा की अपील स्वकार कर ली। 16 दिसम्बर को प्रात: 9 बजे से ढाका में युद्धविराम लागू कर दिया गया। सायंकाल बांग्लादेशियों के समक्ष लगभग 90 हजार से कुछ अधिक सैनिकों के साथ पाक कमांडर ने आत्मसमर्पण कर दिया। अगले दिन भारत ने एकतरफा युद्धविराम लागू किया जिसे पाक सेना ने स्वीकार कर लिया। ऐतिहासिक युद्ध और विजय के बाद लगभग 90 हजार से अधिक युद्धबंदियों को भारत लाया गया और बांग्लादेश के रूप में एक नयी सरकार का गठन हुआ । यह विजय दिवस एक ऐतिहासिक और गौरवमयी दिवस के रूप में आज भी याद किया जाता है ओैर पाकिस्तान को एक चेतावनी भी देता है ।