गुजरात चुनाव से गायब बुनियादी मुद्दे
तारकेश्वर मिश्र
गुजरात चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच चुनावी तीर दिन ब दिन तीखे और जहरीले होते जा रहे हैं। दोनों ओर से व्यक्तिग आक्षेप और गढ़े मुर्दे उखाड़ने का खेल बदस्तूर जारी है। इन सब के बीच आम आदमी से जुड़े बुनियादी मुद्दे पूरी तरह परिदृश्य से गायब दिखाई दे रहे हैं। वास्तव में जिस भारत को हम दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहते नहीं अघाते, वहां लोकतांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को ताक पर रखने से गुरेज नहीं किया जाता। विकास की प्रतिस्पर्धा के बजाय समाज को छोटे खांचों में बांटने का राजनीतिक खेल बदस्तूर जारी है। यही बात गुजरात चुनावों में पूरी तरह उभरकर सामने आ रही है। दरअसल, कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व के सहारे मोदी के गढ़ में अपनी खोई जमीन पाने को कमर कसे हुए है। कभी हिंदू एजेंडे का मुखर विरोध करने वाली कांग्रेस यदि हिंदू वोटों को लुभाने का उपक्रम कर रही है तो यह उसके जीने-मरने का प्रश्न है।
गुजरात चुनाव के मद्देनजर पिछले कुछ महीनों में राहुल गांधी ने गुजरात में करीब दो दर्जन बड़े-छोटे मंदिरों में उपस्थिति दर्ज कराई, जिसके चलते भाजपा आक्रामक मुद्रा में है। यही वजह है कि जब पिछले दिनों जब राहुल गांधी प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर में जलाभिषेक व पूजा-अर्चना के लिए गये तो विवाद के नये अध्याय खुल गये। दरअसल, सोमनाथ मंदिर में यूं तो सभी धर्मों के लोगों का प्रवेश संभव है, मगर दूसरे धर्म के लोगों की अलग से रजिस्टर में एंट्री होती है, जिसमें राहुल गांधी व सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल की इंट्री की गई। जिसके चलते विवाद की शुरुआत हुई और उनके हिंदुत्व पर सवाल उठाये गये।
ज्योंही इसकी खबर उड़ी त्योंही राहुल के धर्म को लेकर टीका-टिप्पणी शुरू हो गई। इसके बाद सोमनाथ मन्दिर का प्रवास तो एक तरफ धरा रह गया और बात जाति-धर्म पर आकर टिक गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण में सरदार पटैल की भूमिका की प्रशंसा करते हुए पं. नेहरू द्वारा उसमें लगाए अड़ंगे की चर्चा उछालकर राहुल को घेरने का दांव चला वहीं भाजपा प्रवक्ता गैर हिंदुओं वाली आगन्तुक पुस्तिका में राहुल की प्रविष्टि को लेकर आक्रामक हो उठे। इस अप्रत्याशित हमले से तिलमिलाई कांग्रेस ने राहुल को हिन्दू साबित करने की रणनीति के तहत रणदीप सुरजेवाला से बयान दिलवा दिया कि राहुल न केवल ब्राह्मण अपितु जनेऊधारी ब्राह्मण हैं। इसके लिए पिता की अंत्येष्टि के समय कुर्ते के ऊपर जनेऊ पहने उनकी फोटो भी सार्वजनिक कर दी गई। कांग्रेस ने ये कदम क्या सोचकर उठाया ये तो वही जाने किन्तु इसकी वजह से राहुल मजाक का पात्र बन गए। जात पर न पांत पर, मुहर लगेगी हाथ पर का नारा लगाने वाली पार्टी ने अपने सबसे ताकतवर नेता को हिन्दू से भी ऊपर उठते हुए जनेऊधारी ब्राह्मण बताकर क्या सिद्ध करना चाहा ये तो श्री सुरजेवाला ही बता सकते हैं किंतु इससे बजाय फायदा होने के कांग्रेस को नुकसान होने की आशंका बढ़ चली है।
राहुल गांधी के धर्म और जाति के बारे में सदैव रहस्य बना रहता है। धार्मिक आयोजनों में भी उनकी मौजूदगी शायद ही रहती हो। मन्दिर जाने वालों पर भी वे कटाक्ष करते रहे हैं। लेकिन उप्र विधानसभा चुनाव के प्रचार की शुरुवात अयोध्या की हनुमान गढ़ी से कर राहुल ने बता दिया कि वे भी अन्य राजनेताओं की तरह से ही हैं। यद्यपि उस चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया तथा वह दहाई का आंकड़ा तक न छू सकी। चूंकि राहुल अभी भी राजनीति के प्रशिक्षु माने जाते हैं जिनकी हर गतिविधि पर्दे के पीछे बैठे पेशेवर रिंग मास्टरों द्वारा निर्देशित रहती है इसलिए वे खुद भी नहीं जानते कि वे क्या और क्यों कर रहे हैं? उनके भाषणों की विषयवस्तु भी अन्य कोई तैयार करता है। भले ही वे अपनी मां सोनिया गांधी की तरह लिखा-लिखाया न पढ़ते हों किन्तु उनके भाषणों में स्वाभाविकता का नितांत अभाव होता है। गुजरात चुनाव की शुरुवात में वे द्वारिकाधीश के दर्शन करने गए और तबसे आये दिन वे किसी न किसी हिन्दू मन्दिर में दर्शन करने पहुंच जाते हैं जिससे कि कांग्रेस और गांधी परिवार के दामन से हिन्दू विरोधी होने का दाग मिटाया जा सके।
ऐसा करने के पीछे शायद हिन्दू वोट बैंक को सुरक्षित रखने का मकसद रहा होगा। कांग्रेस को जब ये लगा कि धर्मनिरपेक्षता नामक कार्ड अब बेअसर हो चला है तो उसने भी भाजपा का हिन्दू हथियार उपयोग करने की कोशिश की किन्तु किसी भी काम में स्वाभाविकता न हो तो उसका अपेक्षित प्रभाव नहीं पड़ता। और तो और उल्टा असर होने से नुकसान हो जाता है। राहुल को ब्राह्मण और वह भी जनेऊधारी बताने जैसी नासमझी कांग्रेस को कितनी महंगी पड़ेगी ये तो चुनाव परिणाम ही बता सकेंगे किंतु श्री सुरजेवाला की टिप्पणी से राहुल का मजाक उडना और तेज हो गया। ब्राह्मणों द्वारा जनेऊ धारण करले के लिए बाकायदा यज्ञोपवीत संस्कार होता है। केवल जनेऊ धारण करने से कोई अपने को श्रेष्ठ ब्राह्मण बताने लगे ये अनुचित होता है।
राहुल सदृश सुशिक्षित और अत्याधुनिक पारिवारिक वातावरण में पले-बढ़े व्यक्ति को अचानक जनेऊधारी ब्राह्मण प्रचारित करना अव्वल दर्जे की नादानी ही नहीं अपितु मूर्खता ही कहा जाएगा। हार्दिक पटैल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी सरीखे जातिवादी नेताओं के सामने घुटनाटेक हो चुकी कांग्रेस को अपने सर्वोच्च नेता को ऊंची जाति वाला बताना ये सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि पार्टी अपनी वैचारिक और सैद्धांतिक पहचान को लेकर असमंजस और अपराधबोध से ग्रसित होने के बाद अब हड़बड़ाहट का शिकार होती जा रही है। यूँ भी लालू और अखिलेश सरीखे जातिवादी नेताओं की पिछलग्गू तो वह पहले ही बन चुकी थी। इसे भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी विडंबना कहा जायेगा कि जिन नेताओं पर जातिगत भेदभाव को मिटाकर समतामूलक समाज के निर्माण का दायित्व है वे ही वोटों की मंडी में अपनी जाति बेचने में रत्ती भर भी नहीं हिचकतेे। राहुल गांधी की जाति या धर्म निजी मामला है लेकिन रणदीप सुरजेवाला ने उन्हें जनेऊधारी ब्राह्मण बताकर उनका मजाक उड़ाने वालों को बैठे-बिठाए एक और अवसर प्रदान कर दिया।
विपक्ष के आरोप हैं कि सामाजिकता और आर्थिक उत्थान के तमाम मानकों पर गुजरात नाकाम हो रहा है, पिछड़ रहा है। तो प्रधानमंत्री और भाजपा के नेता उन्हीं आरोपों पर, आंकड़ों के साथ, पलटवार क्यों नहीं करते? आतंकवाद के सरगना हाफिज सईद की रिहाई पर कांग्रेस ने ताली बजाई, चीनी राजदूत से मिले राहुल गांधी और सेना की सर्जिकल स्ट्राइक पर भी शक करते हुए सबूत मांगे, प्रधानमंत्री मोदी ने ये मुद्दे उठाकर भी साबित करने की कोशिश की कि ‘राष्ट्रवाद’ भाजपा ही जानती है और उसी के जरिए वोट बरसेंगे। हालांकि आतंकवाद राष्ट्रीय समस्या और चुनौती है। वह किसी भी पार्टी का एजेंडा नहीं है, लिहाजा उसे चुनावी गेंद नहीं बनाना चाहिए। आतंकवाद को ‘राष्ट्रीय मुद्दा’ मानते हुए राजनीति से बाहर रखना चाहिए।
वहीं दूसरी ओर सवाल उठना स्वाभाविक है कि एक लोकतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष देश में किसी नेता के धर्म को लेकर क्यों सवाल खड़े किये जाएं? धर्म व्यक्ति की निजी आस्था है, उसके आधार पर सार्वजनिक जीवन में सवाल क्यों खड़े किये जाएं? क्या देश में विकास व अन्य जरूरी मुद्दों का अकाल पड़ गया है, जो धर्म की बैसाखी का सहारा लिया जा रहा है। क्या यह आदर्श चुनाव आचार-संहिता का उल्लंघन नहीं है? वक्त रहते भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों को इस तरह की बयानबाजी और जुमलेबाजी से बाज आना चाहिए। नहीं तो देश की जनता इन दोनों को खरिज करके सत्ता की चाबी किसी तीसरे के हाथ सौंप देगी। लोकतंत्र व देश की जनता के लिये यह प्रवृति अफसोसजनक व घातक है।