ईमान के बगैर आमाल की कोई हैसियत नहीं: मौलाना गुलज़ार अहमद मिस्बाही
दरगाह शाहमीना में जश्ने ईद मीलादुन्नबी का इनेक़ाद किया
लखनऊ: आमाल से कब्ल ईमान बनाने की जरूरत है इस के लिये ईमान के बगैर आमा की कोई हैसियत नहीं। आमाल के बगैर तो निजात मुमकिन है लेकिन ईमान के बगैर निजाज की उम्मीद बे सुद है। मजकूरा खयालात का इज़हार जश्ने ईद मीलादुन्नबी के सातवे जलसे से खिबात करते हुये मौलाना गुलज़ार अहमद मिस्बाही मदरसा अहले सुन्नत नूरूल इस्लाम अकबर नगर ने किया और उन्होंने कहा कि मोमिन के हर अमल में दो हुकूक हैं। एक हक़ अल्लाह का दूसरा हक़ रसूल का। अल्लाह का हक़ ये है कि जो भी अमल हो वह खालिस अल्लाह के लिये हो और रसूल का हक़ ये है जो भी अमल हो वह आप के तरीके के मुताबिक़ हो। जब दानों हुकूक की अदायगी होगी तभी वह अमल काबिले कबूल और बायसे ज्र व सवाब होगा। उन्होंने कहा कि आप की सोहबत के साथ आप की अज़मत और इताअत लाजमी है। उन्होंने ने नमाजोें की पाबन्दी पर जोर देते हुये कहा कि एक सच्चा आशिक रसूल कभी नमाज तर्क नहीं कर सकता। इस लिये हुजूर स0अ0व0 ने नमाज को अपनी आखों की ठण्डक बताया है। नेज़ मरने की तैयारी का पहला जीना नमाज है जिसे को एहतिमाम जरूरी है। प्रोग्राम की सदारत पीरज़ादा शेख राशिद अली मीनाई और निज़ामत कारी मोहम्मद इस्लाम कादरी ने आगाज कारी मोहम्मद अजमल ने की। शायरे इस्लाम अतीक सिद्दीक़, कमर सीतापुरी, अतीक लखनवी, मौलाना आज़म वगैरह शोअरा ने बारगाहे रिसालम में मनजूम नज़राना अकीदत पेश किया। इस मौके पर जीमल अहमद बशीरी मुज़क्की बकाई, शमशेर अली, हाजी मोहम्मद अय्यूब, हाजी मोहम्मद शफीक़ वगैरह खास तौर से मौजूद थे। सलात व सलाम व कुल के बाद जलसे का इख्तिताम हुआ।