दोस्तों का दोस्त दुश्मनों का दुश्मन टीपू सुल्तान
मोहम्मद आरिफ़ नगरामी
यौमे पैदाइश पर खुसूसी मज़मून
यूं तो इस दुनिया में हजारों बच्चे जन्म लेते हैं और मर जाते हे। हजारों कलियां खिलती हैं औद वादे समूम के थपेड़ों की तब न लाकर मुरझा जाता है। मगर वह मौत जो हक ओर रास्ती की राह में आये हयाते जावदां बनकर आती है जो मौत आये तो जिंदगी बन के आये।
10 नवंबर को हैदर अली के घराने दीवान हाली में अम्मा फातिमा बेगम की गोद में पैदा होने वाला जिहादी जज्बों से जबरेज इंसाफ पसंद हुक्मरान रोशन ख्याल तालीमयाफ्ता तहज्जुद गुजार शब जिंदादार नवाफिल गुजार कुरूने ऊला के मुसलमानों को नक्शे सानी और अजीम यादगार नज्रे उकाबी जिनसे गैरत व खुददारी और मोनिाना फिरासत की किरणें फूट रही होती थी बिजली की चमक शेर की गर्ज दोसतों के दोस्त दुश्मनों के दुश्मन…
ऐसी सिफत का हालि शख्स दुनिया जिसको टीपू सुल्तान हैदर के नामसे जानती है जो अपने वालिद के सबसे बड़े साहबजादे थे। जब आपकी उमर 15 साल की हुई तो आपने अपने वालद के साथ जंगी ममलात में दिचस्पी लेनी शुरू कर दी थी क्योंकि आपके वालिद हैदर अली रह. मैसूरीन आर्मी में मुाजिम थे लिहाजा आ गाहे गाहे जंगी मशकों में भी हिस्सा लिया करते थे। टीपू सुल्तान हैदर रह. बहुत सी जुबानों पर उबूर रखते थे हिसाब और साइंस का इल्म आपके पास वाफर मिकदार मं था आप रह. पढ़ाई लिखाई के दिलदादा थे और 2 हजार से ज्यादा किताबें मुख्तलिफ मौजूआत पर आपने अपनी जाती लायबे्ररी की जीनत बना रखी थी जिनमें ज्यादातर जंगी, इस्लामी, अख्लाकी साइंसी मौजूआत पर मुश्तमिल थी। टीपू सुल्तान रह. दूरअंदेश और साहिबे बसीरत शख्स और टाइगर आफ मैसूर के नाम से मशहूर थे।
जब गोरे अकेले थे जो टीपू सुल्तान रह. ने उनको हराया था। टीपू सुल्तान रह. शहीद का वह तारीखी और अनमिट नुकूश का हामिल जुमला आज भी वक्त के जाबिर और औबााश सुल्तानों और अमरीकी सामराज की गोद मं परवरिश पाने वाले अय्याश हुक्मरानों को झिंझोड़ रहा है कि शेर की एक दिन की जिंदगी गीदड़ की सौ साल की जिंदगी से बेहतर है।
अल्लाह ने टीपू सुल्तान को गैरमामूली सलाहियतों से मालामाल किया था। 1766 में बर्तानिया के खिलाफ पहली बार जंग में हिस्सा लेने से 1766 में अपनी शहादत शेर मैसूर टीपू सुल्तान शहीद रह. ने मैसूर की 4 बड़ी जंगंे लड़ी। मैसूर की पहली जंग ने एक कवर कयादत की और 1767 में कर्नाटक पर यूरिश के बाब में अपनी शुजाअत व जुर्रत की धाक बिठाकर दुश्मनों को पस्पा किया। टीपू सुल्तान की फौज तरबियत उनके वालिद के जेरे मुलाजिमत फ्रांसीसी फौजियों के जेरे निगरानी हुई। बर्तानवी फौज को मदारिस से निकालने की गर्ज से कर्नाटक पर चढ़ाई की गयी और 1780 मेें टीपू की जेरे कमान 10 हजार की फौज 18 बंदूकों के साथ कर्नल बेली की सरकूबी के लिए रवाना हुई। पोलीपुर के मकाम पर मार्क में टीपू ने कर्नल बेली को शिकस्त दी। 360 यूरोपी बाशिंदों में से 200 को अपने हिसार में लेकर टीपू ने उनके साथ इज्जत व एहतेराम का सुलूक किया। तकरीबन 3800 मुखालिफ फौजी गैरमामूली हादसात व मुश्किलात का शिकार हुए। बदतरीन दुश्मनों में से एक सरहेक्टर अलाहिदा फौज के साथ कर्नल बेली की मदद के लिए जुनूब रवां दवां था। उसे अपने मतलूब कर्नल बेली की शिकसत की खबर मिली तो वह कांचीपुरम के मकाम पर परनी के एक बड़े तालाब में अपना फौजी साज व सामान फेंकर वापस मदारिस की तरफ पलट गया। 1781 में टीपू ने बस्तानवी फौज से छित्तौर की बाजायाबी में भी कामयाबी हासिल की। मैसूर की दूसरी जंग 1784 में खत्म हुई और ये आखिरी मौका था कि जब एक मुसलमान हिंदुस्तानी बादशाह ने शरायत व जवाबित के तनाजुर में बस्तानिया पर सबकत हासिल की और इस मौके पर जो मुआहिदा हुआ वह हिंदुस्तान की तारीख में इंतेहाई बावकार दस्तावेज की अहमियत का हामिल है। इस दौर में हालैंउ की मिशनरी किश्चन फ्रेडरेक शवार्ज ने टीपू पर 12000 बच्चों के अगवा का इल्जाम लगाया जो दुरूस्त नहीं। दूसरी जंग मैसूर में रियासत की मजमुई कौमी आमदनी 90 फीसद के करीब मुतास्सिर हुई थी जिसे संभालने में 15 साल का अर्सा सर्फ हुआ।
तीसरी जंग मैसूर 28 दिसम्बर 1789 से 1792 से जारी रही जो बाज मजबूरियों और दुश्मन के बैनुल मजाहिब गठजोड़ के बाइस हौसला अफजा न रहीं आखिरकार दो हफ्ते मुहासिरे के बाद टीपू को मैसूर का निस्फ इलाके में दुश्मन के हवाले करने पर मजबूर होना पड़ा। साथ ही उनके दो बेटे जंगी यर्गमाल बनाये गये। इस असना में फ्रांस हुक्मरां नेपोलियन बोनापार्ट ने टीपू के साथ यकजहती का कस्द किया उनका इरादा था कि रवीजर से 15000 फौजी टीपू की मदद के लिए रवाना करेगा ताकि बर्तानिया के खिलाफ कामयाबी मुम्किन हो सके। ताहम ऐसा न हो सका। बाद में कई मारको के बाद नेपोलिन ने 1803 और 1807 में दो मर्तबा बर्तानिया और रूस के खिलाफ इत्तेहाद बनाया।
टीपू की शादी का वाकिया भी दिलचस्प है उनकी शादी एक ही वक्त में दो लड़कियों से हुई। एक मां की पसंद और दूसरी बाप की पसंद थी। सआदतमंद बेटे ने मां बाप दोनों के हुक्म की तामील की। उनकी जिंदगी का बहुत ज्यादा हिस्सा जंग व जदल में गुजरा। सनअत व तिजारत सड़कों की तामीर और इस्लाहात के नफाज के हवाले से भी उनकी गिरां कद्र खिदमात तारीख के लवाजमात में शामिल है। वह एक मुजाहिद दानिशवर आलिम और शायर भी थे। वह एक साहबे जमीर मुसलमान हुक्रान थे जिन्होने जंगी कैदियों समेत मामम माजहिब के लोगों से रवारदाी और अच्छो बर्ताव की रवायत कायम की। बाज मुतास्सिब गैर मजहब दानिशवरांे ने उनके बारे में मुआनदाना इजहार ख्याल किया है जबकि हककत ये है कि इंसानियत का एहतेराम करने के साथ जानवरों के साथ भी शफकत का मुजाहिरा किया करते थे।