धरती को महाविनाश से बचाने के लिए धर्मगुरुओं ने की प्रार्थना
प्रज्ञा इंटरनेशनल ट्रस्ट अमेरिका और उत्तर कोरिया के राष्ट्राध्यक्षों को भेजेगा ज्ञापन
लखनऊ : अमेरिका और उत्तरी कोरिया के बीच तनाव चरम पर है इसके चलते दोनों देशों के बीच युद्ध की सम्भावना बढ़ती जा रही हैं| यदि ऐसा हुआ तो धरती पर मानव सभ्यता का अस्तित्व संकट मे पड़ जाएगा । इस महा विनाश को भाँपते हुए प्रज्ञा इंटरनेशनल ट्रस्ट द्वारा 1 अक्तूबर को इन्दिरा नगर लखनऊ मे समाज के शान्ति.प्रेमी प्रबुद्ध जनों और विभिन्न धर्मावलम्बियों के साथ एक प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया । प्रार्थना सभा का उद्देश्य दुनिया मे राष्ट्रों के बीच बढ़ते तनाव को कम करना खासकर अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच और वैश्विक शान्ति की कामना ।
विश्व शांति, आपसी भाईचारा व सद्भावना की कामना को लेकर आयोजित प्रार्थना सभा में आगत सभी धर्मावलंबियों का स्वागत डॉ भानु ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन और उपस्थित शांति प्रेमियों ने सर्वधर्म प्रार्थना से की। वहींए प्रज्ञा ट्रस्ट के संस्थापक निदेशक डा भानु ने प्रार्थना की अनिवार्यता और इसके प्रभाव पर प्रकाश डाला । उसके बाद बौद्ध, हिन्दू, मुस्लिम , सिख, इसाई, जैन धर्मावलंबियों ने बारी.बारी से प्रार्थनाएं की। कार्यक्रम में विभिन्न धर्मावलम्बियों के अलावा अन्य गणमान्य शामिल थे। कार्यक्रम का समापन प्रमिल द्विवेदी के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। कार्यक्रम का संचालन प्रफेसर कीर्ति नारायण जी ने किया ने किया।
प्रज्ञा इंटरनेशनल ट्रस्ट के संस्थापक व मैनिजिंग ट्रस्टी प्रमिल द्विवेदी ने कहा कि प्रार्थना में अपार चमत्कारिक दृशक्ति होती है। प्रार्थना कभी भी बेकार नहीं जाती । क्रिया और प्रतिक्रिया सृष्टि का नियम है। विचारों में भी कंपन पैदा होते हैं और उनका सार्वभौमिक असर होता है।
श्री प्रमिल द्विवेदी ने सभी धर्मों के धर्मगुरुओं से राष्ट्रों मे बढ़ते तनाव को कम करने के लिए आगे आने की अपील की हैं, उन्होंने कहा कि इसी बात के दृष्टिगत विश्व के सभी धर्मगुरूओं से मेरा अनुरोध है कि इस संकट के समाधान के लिए वे आगे आएं और अपनी प्रार्थना सभाओं मे इस ज्वलंत मुद्दे को भी शामिल करें उन्होंने कहा कि मानवता की सुरक्षा के लिए हमें आगे आना चाहिए क्योंकि यदि किसी भी प्रकार का युद्ध छिड़ता है तो फिर उससे व्यापक स्तर पर विनाश होगा|
प्रज्ञा इंटरनेशनल की संस्थापक सदस्या डॉ कीर्ति नारायण ने कहा कि मंत्र योग, जपयोग, लययोग इत्यादि की तरह ही प्रार्थना भी एक योग है जिसका उद्देश्य है अपने को ईश्वरीय शक्ति के साथ संयुक्त करना। प्रार्थना एक उच्च साधना की क्रिया तो है ही किंतु साथ.साथ प्रार्थना का सामाजिक . मनोवैज्ञानिक महत्व भी है।
उन्होने आगे कहा कि कोई मंगलवार को हनुमान के दर्शन को जाता है, कोई गुरुवार को दरगाहों में मत्था टेकता है, कोई रविवार को चर्च में प्रभु के आगे प्रेयर कर सुकून पाता है। बेशक प्रार्थना के तरीके हर धर्म.संप्रदाय में अलग.अलग हैंए मगर फलसफा बस एक ही है. दुनिया के भले की कामना।
सिख धर्म के प्रतिनिधि सरदार नरेंदर सिंह मोंगा ने कहा कि गांधीजी, ईसा मसीह, महात्मा बुद्ध आदि को ईश्वर पर अटूट आस्था थी। उनकी सच्ची प्रार्थना का ही कमाल था कि वे अपने मनोबल को काफी मजबूत कर पाए व अपने लक्ष्य से डिगे नहीं तथा उसकी प्राप्ति करके ही रहे।
श्रीराम प्रपत्ति पीठ ट्रस्ट के अध्यक्ष सौमित्राचार्य जी ने प्रार्थना के प्रभाव के महत्व को समझाते हुए बताया कि महाभारत कहता है कि कलियुग मे ईति ए व्याधि ए क्रोध आदि दोष ए मानसिक रोग तथा भूख प्यास का भय आदि ये सभी उपद्रव बढ़ जाते हैं , धर्म का ह्रास होने से ही यह उपद्रव उपस्थित होते हैं ।
भविष्य के कार्यक्रमों के अंतर्गत जगह जगह सामूहिक प्रार्थना सभाओं का आयोजन किया जाएगा और बढ़ते तनाव को कम करने की सामूहिक अपील का ज्ञापन अमेरिका और उत्तर कोरिया राष्ट्राध्यक्षों को भारत मे उनके दूतावासों के जरिये भेजा जाएगा ।