यूपी में पुलिस मुठभेड़ पर उठते सवाल और संदेह की वजह
रविश अहमद
उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा बदमाशों से लगातार जारी मुठभेड़ को योगी आदित्यनाथ द्वारा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद के उस बयान से सीधा जोड़ने में कोई बुराई नही जिसमें उनके द्वारा बदमाशों को सीधे मंच से चेतावनी दी गयी थी कि गुंडा व अराजक तत्व प्रदेश छोड़कर चले जायें। इसके बाद कुछ समय तक क्राईम कन्ट्रोल नही हुआ तो प्रदेश पुलिस द्वारा मुठभेड़ों का अम्बार लगा दिया गया। ज़ाहिर है इसमें यह तथ्य जांचने की आवश्यकता ही नही है कि प्रदेश सरकार की इस सब में सहमति है या नही।
अब अगर बात क्राईम कन्ट्रोल की करें तो पुलिस के साथ धड़ाधड़ सीधे एन्काउन्टर होने के बाद नये पुराने बदमाश ज़ख़्मी होकर सलाखों के पीछे और परलोक सिधार रहे हैं लेकिन क्राईम कम होने का नाम नही ले रहा। गत एक माह में केवल सहारनपुर में घटित कुछ घटनाओं का ज़िक्र करें तो चोरी, लूट, डकैती और हत्या जैसे अपराध न केवल घटित हुए हैं बल्कि बेहट क्षेत्र में एक ही परिवार में दो बार डकैती व पूर्व केन्द्रीय मंत्री काज़ी रशीद मसूद के गंगोह स्थित निवास पर हुई चोरी की बड़ी वारदात का खुलासा उस समय शक़ के दायरे में आ गया जब खुलासे से अगले दिन ही एक अन्य चोरी की ऐसी ही मिलती जुलती बड़ी वारदात गंगोह ही में सामने आयी। बहरहाल क्राईम कन्ट्रोल काग़ज़ों में ख़ूब हो रहा है और मुठभेड़ के बाद प्रदेश के तमाम जनपदों की पुलिस खुद अपनी पीठ थपथपा रही है अब इनपर सवाल उठने शुरू हो गये हैं।
सहारनपुर के बेहट क्षेत्र के मन्सूर की मेरठ में हुई मुठभेड़ में मृत्यु को कांग्रेसी नेता इमरान मसूद ने फर्ज़ी मुठभेड़ बताया था तो सपा एमएलसी उमर अली खां ने भी सवाल व संदेह जताकर विरोध दर्ज कराया था। इसके बाद नोएडा में जिस सुमित गुर्जर को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया है उसका क्राईम रिकॉर्ड नही मिलने की चर्चाएं हैं तो दूसरी तरफ गुर्जर समाज आंदोलन की ओर बढ़ रहा है।
कुल मिलाकर जिस तर्ज पर मुठभेड़ दर्शायी जा रही हैं वह खुद अपने आप में सवाल खड़ा करने के लिये काफी हैं, जैसे पुलिसकर्मी के मुठभेड़ में घायल होने पर अधिकतर हाथ में गोली लगती है वहीं बदमाशों को पुलिस नियमावली के अनुसार आमने सामने की गोली चलने के बावजूद चेतावनी देकर टांग में गोली मारी जा रही है। यदि नियम कानून की बात करें तो मुठभेड़ बिल्कुल जायज़ दिखाई जायेगी और कानूनन उनमें कमी निकाली जाने की संभावना न के बराबर होगी लेकिन एक जैसी मुठभेड़ होना इसे संदेह के दायरे में ले लेता है।
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी पुलिस द्वारा की जा रही अनवरत मुठभेड़ों पर सवाल खड़ा किया है, अब चूंकि अखिलेश यादव खुद 5 वर्षों तक शासक रह चुके हैं इसलिए मुठभेड़ की वास्तविकता निःसंदेह अधिक समझते होंगे।
अब इसके बाद कि जब मुख्यमंत्री योगी स्वयं बदमाशों को चेतावनी दे चुके हों और उसके बाद जनप्रतिनिधियों यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री भी पुलिस मुठभेड़ पर सवाल उठा रहें हों तब ऐसे में सुमित गुर्जर की मुठभेड़ पर गुर्जर समाज का विरोध कानून के दायरे में भले ही नाजायज़ साबित हो लेकिन मुठभेड़ के फर्ज़ी होने की संभावना को नकारा नही जा सकता।