मुस्लिम धर्मगुरु भी थेआईएसआईएस के निशाने पर: एनआईए
नई दिल्ली: नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी (एनआईए) के अनुसार आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट के लखनऊ इकाई के निशाने पर मुस्लिम धर्मगुरु भी थे। एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के अनुसार सात मार्च को उज्जैन-भोपाल ट्रेन धमाका कराने के आरोपियों ने शिया, बरेलवी और देवबंदी फिरकों के मौलानाओं पर भी हमले की योजना बनाई थी। रिपोर्ट के अनुसार 31 अगस्त को लखनऊ की एक अदालत में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा दायर की गये आरोपपत्र में ये बातें कही गई हैं। अखबार ने अपने पास मौजूद आरोपपत्र की प्रति के हवाले से लिखा है कि आतंकवादियों की हिटलिस्ट में शामिल दो मौलानाओं के नाम को सुरक्षा कारणों से जाहिर नहीं किया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार इस्लामिक स्टेट के कथित लखनऊ मॉड्यूल के सात सदस्यं को धमाके के बाद गिरफ्तार किया गया था। वहीं सैफुल्लाह नामक एक संदिग्ध आठ मार्च को मुठभेड़ में मारा गया था। एनआईए ने अपने आरोपपत्र में हाथ से लिखा एक पर्चा पेश किया है जो कथित तौर पर सैफुल्लाह के मुठभेड़ की जगह से बरामद हुआ था। आरोपपत्र में कहा गया है, “जांच से स्थापित होता है कि आईएस के लोग भारत में आतंकवादी गतिविधियों के अलावा दूसरे समुदायों (शिया,बरेलवी और देवबंदी) के मौलानाओं को निशाना बनाने की भी योजना बना रहे थे।”
एनआईए ने दावा किया है कि उत्तर प्रदेश के बाराबंकी स्थित देवा शरीफ समेत कई अन्य मुस्लिम दरगाह आतंकवादियों के निशाने पर थे। एनआईए के अनुसार आईएस से जुड़े आतंकवादी सुन्नी इस्लाम के वहाबी तंजीम के कट्टर अनुयायी हैं। एनआईए के अनुसार पकड़े गये संदिग्धों के पास से केवल हथियार और विस्फोटक ही नहीं बल्कि वीडियो, फोटोग्राफ, आतंकी साहित्य और खुतबों के ऑडियो बरामद हुए हैं। एनआईए के अनुसार, “इन सामग्रियों से पता चलता है कि संदिग्ध आतंकी खलीफा (आईएस का सरगना खुद को मुसलमानों का खलीफा कहता है) का विरोध करने वालों के कितने कट्टर विरोधी थे।”
आरोपपत्र के अनुसार इस्लामिक स्टेट के लखनऊ मॉड्यूल का सरगना आतिफ मुजफ्फर है जो कानपुर में होने वाले कार्यक्रम में मुस्लिम मौलानाओं के साथ धार्मिक मसलों पर जिहर करता था। एनआईए ने कहा है, “जांच से ये पुष्ट हुआ है कि आरोपी आतिफ मुजफ्फर आईएस, जिहाद और हिजरत (अप्रवासन) पर वक्ताओं से तीखे सवाल पूछा करता था…उसकी इंतजार अली समेत दूसरे वक्ताओं से जिहाद, फिदायि हमले, शरिया और खिलाफत (खलीफा का राज) को लेकर तीखी बहस हो जाया करती थी. “