क़लम खतरे में है जहां भी हों बस डरते रहिए!!
यूनुस मोहानी
अफसोस सद अफसोस यहां मैं गुस्सा शब्द प्रयोग नहीं करूंगा मै डरा हुआ हूं आपको भी डरना चाहिए अगर आप सच के साथ हैं और सिर्फ साथ ही नहीं है सच को सार्वजनिक भी करते हैं तो आपको याद होगा गांधी डरा नहीं था और फिर उनके अंतिम शब्द थे हे राम!
गौरी लंकेश भी नहीं डरी और हार गया बेटी बचाव का नारा यहां एक बात आपको जरूर याद रखनी चाहिए कि गौरी के परिजनों ने बेटी पढ़ाई भी और बहुत दिनों तक बचाए भी रखा लेकिन सच को जीवित रहने का अधिकार नहीं है अगर जीवन प्यारा है तो आंखे खुली भी हो तो ज़ुबान पर ताला ज़रूरी है क़लम की भी अपनी हदें है उन्हें हद में रहना चाहिये ,आजादी का मतलब यह कब हो गया कि आप सच लिख देंगे ,आखिर किसने आपसे गलत व्याख्या कर दी कि आप बेकाबू हो गये आज मै देश की मीडिया से पूरी तरह संतुष्ट हूं और उनके काम की खुले मन से प्रशंसा करता हूं ।
आपने सही समझा जो नहीं समझे उन्हें जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं और वह ज़िंदा रहें भी क्यों जिनमें हालत भापने की समझ न हो वह क्यों जीवित रहेंगे ,खुद ही समझिए जब गांधी की प्रासंगिकता समाप्त हो गई तो उन्हें मार दिया गया अब मै इस बहस में नहीं पडूंगा कि गोडसे को नायक माना जाये या खलनायक यह आप तय कीजिये वैसे हम गांधी को राष्ट्रपिता मानते है यह मेरा निजी मानना है ,देखिये मै आपसे कुछ नहीं कह रहा कि आप क्या मानिये मुझे डर लगता है मैं ज़िंदा रहना चाहता हूं अगर आप कहें तो मै गोडसे की जय जयकार करूं मुझे कोई ऐतराज़ नहीं मै समय के साथ हूं।क्योंकि मुझे मालूम है हम न्यू इन्डिया की तरफ हैं ।
खैर अगर आप इजाजत दें तो मै गौरी लंकेश को श्रद्धांजलि अर्पित कर दूं वैसे अगर आपने मना किया तो मै नहीं करूंगा मै डरा हुआ हूं आपको भी डरना चाहिये अगर ज़िन्दगी से प्यार है क्योंकि जीवन ही नहीं बचेगा तो सच का क्या फायदा गौरी को कोई काश यह समझा देता तो वह आज हमारे बीच मुस्कुरा रही होती ।लेकिन क्या करें कुछ लोग होते ही ज़िद्दी है किसी का कहा कब मानते है उन्हें लगता है क़लम आज भी गोली से तकातवर है शायद कल्पना लोक में जीते है ।कहीं कभी पढ़ लिया था " जो हो तोप मुकाबिल तो अखबार निकालो"शायरी को सच मान बैठे सुनिये सच यह है गोली से आदमी मर जाता है।
अरे भाई गुस्सा मत हों आप ,यह मैंने वह वाला सच नहीं बोला है यह आप वाला सच है आपके हित वाला मै डरता हूं इसलिए सफाई देना जरूरी था । आज गौरी खामोश है काश वह सफाई दे पाती काश वह न्यू इन्डिया को समझ पाती कितनी नासमझ थी भारत में जी रही थी । उसे चाहिए था न्यू इन्डिया में डिजिटल इन्डिया में जीती लेकिन उसे इसके लिये क़लम को काबू में रखना था उसे सीखना चाहिये था किस तरह झूठा सच बोला लिखा और दिखाया जाता है ,उसे पता होना चाहीये था देश बदल रहा है,काश वह इस बदलाव को समझ पाती तो आज हमारे बीच मुस्कुराती ।
एक गौरी ही क्यों जो समय के साथ नहीं चला मार ही तो दिया गया क्या कर लिया आपने सच वालों ? देखिये एक दर्जन घटनाएं तो बड़ी चर्चित है आईये आपको क्रमानुसार याद दिला दूं ।
13 मई 2016 को बिहार के सीवान में ऑफिस से लौट रहे हिंदी दैनिक हिन्दुस्तान के पत्रकार राजदेव रंजन की गोली मारकर हत्या कर दी गई। जिसका आरोप राष्ट्रीय जनता दल के नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन पर है, इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है। यह तो याद होगी आइये मध्य प्रदेश चलें 2015 में मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाले की कवरेज करने गए आजतक के संवाददाता अक्षय सिंह की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। अक्षय सिंह की झाबुआ के पास मेघनगर में मौत हुई, मौत के कारणों का अभी तक पता नहीं चल पाया है।शायद कभी चलेगा भी नहीं।
उत्तम प्रदेश भी आईए साल 2015 में ही उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में पत्रकार जगेंद्र सिंह को जिंदा जला दिया गया। आरोप है कि जगेंद्र सिंह ने फेसबुक पर उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री राममूर्ति वर्मा के खिलाफ खबरें लिखी थीं।फिर भी सच बोलने की हिम्मत है तो आगे देखिए-
जून 2015 में मध्य प्रदेश में बालाघाट जिले में अपहृत पत्रकार संदीप कोठारी को जिंदा जला दिया गया था। वे खनन माफिया और चिटफंड घोटालों के खिलाफ लगातार खबरें दे रहे थे। आरोप है कि अवैध खनन में शामिल तीन लोगों ने 19 जून को संदीप कोठारी का बालाघाट के कटंगी से अपहरण कर लिया और उनको जिंदा जला दिया। देखा सच का परिणाम और देख लीजिए क्योंकि आपके जीवित रहने के लिए आपका डरना ज़रूरी है
26 नवंबर 2014 को आंध्रप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार एमवीएन शंकर की हत्या कर दी गई थी, एमवीएन आंध्र में तेल माफिया के खिलाफ लगातार खबरें लिख रहे थे। डर लगा कि नहीं अगर नहीं तो और जानिए 27 मई 2014 को ओडिसा के स्थानीय टीवी चैनल के लिए स्ट्रिंगर तरुण कुमार की बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। तरुण कुमार जब अपने घर जा रहे थे, तभी कुछ लोगों ने उनपर धारदार हथियार से हमला कर दिया था।
कुछ जानना चाहेंगे तो लीजिये इसे भी जान कर सहम जाइए, साल 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान नेटवर्क18 के पत्रकार राजेश वर्मा की गोली लगने से मौत हो गई थी।और 20 अगस्त 2013 को महाराष्ट्र के पत्रकार और लेखक नरेंद्र दाभोलकर की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। 1 मार्च 2012 को कुछ लोगों ने मध्यप्रदेश के रीवा में रिपोर्टर राजेश मिश्रा की हत्या कर दी थी। ख़बरों के मुताबिक, राजेश का कसूर सिर्फ इतना था कि वो लोकल स्कूल में हो रही धांधली की कवरेज कर रहे थे।समझे स्कूल कॉलेज सब धंधा है सच बोल कर मौत को गले मत लगाइये टीचर्स डे मनाते जाइये।
11 जून 2011 को मिड डे के मशहूर क्राइम रिपोर्टर ज्योतिर्मय डे की हत्या कर दी गई थी, वे अंडरवर्ल्ड से जुड़ी कई जानकारी जानते थे।अरे जानते थे तो अपने पास रखते सार्वजनिक करने का क्या मतलब बहुत लोगों के नाम खुल जाते हैं अरे इसमें कई उड़नखटोले वाले भी तो होते है।
21 नवंबर 2002 को डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की सिरसा में हत्या कर दी गई थी। उनके दफ्तर में घुसकर कुछ लोगों ने उनको गोलियों से भून डाला था।जी यह कलयुग में राम को जी रहे थे जबकि दौर सिर्फ राम नाम के व्यापार का है
देशबंधु के पत्रकार साई रेड्डी की छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में संदिग्ध हथियारबंद लोगों ने हत्या कर दी थी।यह भी कुछ जान चुके होंगे तो मरना तो पड़ेगा ही अब तो आप डर ही गये होंगे भगवान के लिये डर जाइये वरना कोई श्रद्धांजली भी नहीं देगा उल्टा कहा जाएगा कुत्ता या कुतिया मर गई अफसोस हम यहां आ गये ।
अब समझे यह मीडिया गुणगान क्यों करती है, यह हर वक़्त सच क्यों छुपाया जाता है,समझ जाइये गौरी लंकेश से सबक लीजिये अब किसी मीडिया कर्मी को बुरा मत कहिएगा ,क्योंकि सभी का परिवार है और सबको अपने जीवन से प्यार है।
लेकिन सुन लीजिये मै सच बोलुंगा क्योंकि मै डरा नहीं हूं और न ही आपको डरने की जरूरत क्योंकि न कोई गोडसे गांधी को मार पाया और न ही गौरी लंकेश को कोई झूठा मार पायेगा गौरी तुम्हे सलाम तुमने सच को जिया हमारी श्रद्धांजली तुमको।
अरे यह क्या मुझे क्या हो गया मै झूठ नहीं बोल पा रहा हूं मुझे माफ़ कीजिए।