इस सीज़न में बच्चों की मौत के आंकड़े ऐसे ही रहते हैं
बीआरडी मेडिकल कॉलेज में मासूमों की लगातार मौतों पर प्रिंसिपल पीके सिंह का बयान
गोरखपुर: पिछले दिनों गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की सप्लाई से हुई मौतों के बाद से विपक्ष के साथ हाईकोर्ट ने भी प्रदेश सरकार को फटकार लगाई थी और मामले में कार्रवाई पर रिपोर्ट तलब की है.
इसके बावजूद बीआरडी कॉलेज में मासूमों की मौत का सिलसिला जारी है. शनिवार से लेकर मंगलवार सुबह तक कुल 46 बच्चे काल के गाल में समा गए. हालांकि कॉलेज प्रशासन का कहना है कि इनमें से 11 बच्चों की मौतें ही इन्सेफेलाइटिस से हुई है. अन्य मौतें सामान्य थीं.
हालांकि कॉलेज प्रशासन मौसम में बदलाव को इन मौतों की वजह बता रहा है. लेकिन लगातार हो रही मौतों से सवाल उठाना लाजमी भी है. आखिर 11 अगस्त को हुई इस घटना के बाद से कॉलेज और जिला प्रशासन ने क्या सबक सीखा है.
प्रिंसिपल पीके सिंह के मुताबिक इस समय मेडिकल कॉलेज मे भारी संख्या मे बच्चे भर्ती कराए जा रहै हैं. यहां तक कि मेडिकल कॉलेज के बाल विभाग के सभी बेड फुल हैं. बड़े तादाद में लगातार हो रही मौतों के सवाल पर प्रिंसिपल ने कहा कि जो बच्चे मेडिकल कॉलेज में आ रहे हैं उनकी स्थिति बहुत ही खराब है. जिसकी वजह से उन्हें बचा पाना मुश्किल हो गया है.
सिंह ने यह भी बताया कि इलाज की सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं. किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं है. इस बीमारी के सीजन में आंकड़े हमेशा ऐसे ही रहते हैं. पिछले वर्ष भी इसी तरह के आंकड़े थे. जुलाई से लेकर सितम्बर तक ऐसे ही मौतों के आंकड़े होते हैं.
प्रिंसिपल के मुताबिक शनिवार की रात 12 बजे से रविवार की रात 12 बजे तक एनआईसीयू में 6 और आईसीयू में 11 मौतें हुईं. जबकि रविवार रात इसी समय तक एनआईसीयू में 10 और आईसीयू में 15 यानी 48 घंटे में कुल 42 मौतें हुईं. इनमें से 7 की मौत इन्सेफेलाइटिस से हुई बाकी मरीजों की सामान्य मौत है. उन्होंने कहा कि इन तीन दिनों में मरीजों की मौत की संख्या बढ़ने के पीछे की एक वजह मौसम से फैला संक्रमण भी है.
उन्होंने बताया कि शनिवार सुबह नौ बजे से सोमवार सुबह नौ बजे तक के 48 घंटे में सात और सोमवार से मंगलवार सुबह तक के 24 घंटे में चार मौतें ही इन्सेफेलाइटिस से हुईं हैं. वहीं 19 नए मरीज भर्ती हुए हैं.
प्रिंसिपल साहब बीमारी की सीजन का हवाला देकर भले ही अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रहे हों, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की मौत होना कहीं न कहीं व्यवस्था पर भी सवालिया निशान खड़े कर रहे हैं.