नई दिल्ली: निजता के अधिकार पर अपने फैसले में 9 जजों की संविधान पीठ में शामिल जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने इमरजेंसी के दौरान सुप्रीम कोर्ट के एडीएम जबलपुर केस में फैसले पर कड़ा प्रहार किया है. पांच जजों की उस पीठ में जस्टिस चंद्रचूड के पिता जस्टिस वाई वी चंद्रचूड भी शामिल थे. अब जस्टिस चंद्रचूड ने उस फैसले को गंभीर त्रुटि करार दिया है और पलट दिया है. हालांकि इस जजमेंट को 44वें संविधान के संशोधन के जरिए खत्म कर दिया गया था. दरअसल 1975 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने देश में इमरजेंसी लागू की थी और उस वक्त ये याचिका आई थी कि क्या आपातकाल में कोई नागरिक अपने अधिकार को लेकर सरकार के खिलाफ कोर्ट जा सकता है. उस वक्त सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों जजों की बेंच में चार जजों ने बहुमत से ये फैसला सुनाया था कि ऐसे में सरकार किसी भी नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन कर सकती है.

इस चार जजों में जस्टिस वाईवी चंद्रचूड भी शामिल थे. अब इस फैसले में उनके बेटे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने लिखा है कि वो फैसला एक गंभीर त्रुटि था. जीने का अधिकार और निजी स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकार मानवाधिकारों से जुड़े हैं. कोई भी सभ्य सरकार इन अधिकारों पर अतिक्रमण करने की सोच भी नहीं सकती.

बता दें कि आज ही एक बेहद अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार, यानी राइट टू प्राइवेसी को मौलिक अधिकारों, यानी फन्डामेंटल राइट्स का हिस्सा करार दिया है. नौ जजों की संविधान पीठ ने 1954 और 1962 में दिए गए फैसलों को पलटते हुए कहा कि राइट टू प्राइवेसी मौलिक अधिकारों के अंतर्गत प्रदत्त जीवन के अधिकार का ही हिस्सा है. राइट टू प्राइवेसी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आता है. अब लोगों की निजी जानकारी सार्वजनिक नहीं होगी. हालांकि आधार को योजनाओं से जोड़ने पर सुनवाई आधार बेंच करेगी. इसमें 5 जज होंगे.