नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट द्वारा निजता के अधिकार (Right To Privacy) को मौलिक अधिकार घोषित करने के बाद अब आधार कार्ड को लेकर 5 जजों की बेंच फैसला करेगी. निजता के अधिकार को लेकर दिए गए इस फैसले को आधार मानते हुए अब सर्वोच्च अदालत अपने अगले कदम के तहत यह फैसला करेगी कि आधार कार्ड को विभिन्न योजनाओं से जोड़ा जाए या नहीं. क्योंकि आधार कार्ड के चलते ही ये सारा मामला प्रकाश में आया था. क्योंकि आधार नंबर हर जगह देना निजता का हनन माना जा रहा था. जिसके बाद पहले कोर्ट को यह तय करना पड़ा कि राइट टू प्राइवेसी मौलिक अधिकार है या नहीं. अब जब कोर्ट ने यह तय कर दिया है कि राइट टू प्राइवेसी मौलिक अधिकार है तो ऐसे में केवल आधार को लेकर ही कोर्ट फैसला कर सकेगी. इस सुनवाई में यह तय होगा कि आधार का क्षेत्र कितना हो, आधार की कहां जरूरत होनी चाहिए कहां नहीं?

पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा, हम जानते हैं कि सरकार कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार का डाटा जमा कर रही है, लेकिन यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कि डाटा सुरक्षित रहे. क्या कोर्ट प्राइवेसी की व्याख्या कर सकता है? आप यही कैटलॉग नहीं बना सकते कि किन तत्वों से मिलकर प्राइवेसी बनती है. प्राइवेसी का आकार इतना बड़ा है कि ये हर मुद्दे में शामिल हैं. अगर हम प्राइवेसी को सूचीबद्ध करने का प्रयास करेंगे तो इसके विनाशकारी परिणाम होंगे. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में कुल 21 याचिकाएं थीं. कोर्ट ने 7 दिनों की सुनवाई के बाद 2 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था.

आपको बता दें कि गुरुवार को निजता के अधिकार के फैसले पर नौ जजों की संविधान पीठ ने 1954 और 1962 में दिए गए फैसलों को पलटते हुए कहा कि राइट टू प्राइवेसी मौलिक अधिकारों के अंतर्गत प्रदत्त जीवन के अधिकार का ही हिस्सा है. वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी ने इस बाबत कहा कि देश किस दिशा में जाएगा अब इस फैसले से तय होगा.

राइट टू प्राइवेसी को लेकर याचिकाकर्ता और मशहूर वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट से बाहर आकर बताया कि कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है और कहा है कि ये अनुच्छेद 21 के तहत आता है. आधार कार्ड को लेकर कोर्ट ने कोई फैसला नहीं लिया है. पिछले महीने की आखिर में राइट टू प्राइवेसी के मामले में नौ जजों की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या आधार के डेटा को प्रोटेक्ट करने के लिए कोई मजबूत मैकेनिज्म है?

दरअसल 1950 में 8 जजों की बेंच और 1962 में 6 जजों की बेंच ने कहा था कि 'राइट टू प्राइवेसी' मौलिक अधिकार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट की पीठ में CJI जेएस खेहर, जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस AR बोबडे, जस्टिस आर के अग्रवाल, जस्टिस रोहिंग्टन नरीमन, जस्टिस अभय मनोगर स्प्रे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल हैं.