UP की RTI नियमावलियां एक्टिविस्ट्स का डेथ-वारंट
RTI एक्टिविस्टों नियमावलियों की कॉपियां को जलाकर जताया विरोध
लखनऊ: 2005 में लागू हुआ सूचना का अधिकार कानून यानि कि आरटीआई एक्ट देश के
सबसे क्रांतिकारी कानूनों में एक है। इस कानून ने सरकारी सूचनाओं तक आम
आदमी की पहुंच सुनिश्चित की है । कई घोटालों का खुलासा भी आरटीआई से मिली
जानकारियों से हुआ है । लखनऊ की समाजसेविका और सामाजिक संगठन
‘येश्वर्याज’ की सचिव उर्वशी शर्मा का मानना है कि केंद्र और राज्यों की
सरकारें जब देश भर के आरटीआई कार्यकर्ताओं के द्वारा बनाए गए जनदबाब के
चलते सीधे-सीधे आरटीआई एक्ट में बदलाव करके एक्ट को कमजोर करने के
मंसूबों में सफल नहीं हो पाई तो उन्होंने बैकडोर से आरटीआई नियमावलियों
की आड़ लेकर RTI एक्ट को कमजोर करने की साजिश रचना शुरू कर दिया है l यूपी
के आरटीआई कार्यकर्ता साल 2015 से ही लगातार इस साजिश के शिकार हो रहे
हैं और केंद्र की नई आरटीआई नियमावली लागू होने के बाद पूरा देश इस
प्रशासनिक साजिश का शिकार होगा l बकौल तनवीर अहमद सिद्दीकी , इसीलिये इन
नियमावलियों के अधिनियम विरोधी प्राविधानों पर विरोध प्रदर्शित करने के
लिए सामाजिक संगठन ‘येश्वर्याज’ ने आगे आकर लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान
स्थित धरना स्थल में नियमावलियों की प्रतियाँ जलाकर धरना प्रदर्शन का
कार्यक्रम आयोजित किया है और भारत के राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री, मुख्य
केन्द्रीय सूचना आयुक्त तथा यूपी के राज्यपाल,मुख्यमंत्री और मुख्य
सूचना आयुक्त को ज्ञापन भेजकर इन नियमावलियों के अधिनियम विरोधी
प्राविधानों को समाप्त करने की माग उठाई है l
धरने में शामिल राम स्वरुप यादव का मानना है कि इन नियमावलियों में
आरटीआई की अर्जी देने वाले की मौत की स्थिति में मामला बंद करने और
आरटीआई की प्रक्रिया खर्चीली करने जैसे प्रस्ताव हैं। हरपाल सिंह ने
सरकार की इस कोशिश को आरटीआई कानून को बैक डोर से कमजोर करने की साजिश
बताते हुए आशंका व्यक्त की है कि नए बदलावों से आरटीआई के तहत सूचना
पाना मुश्किल हो जाएगा।
आरटीआई एक्सपर्ट ज्ञानेश पाण्डेय कहते हैं कि देश की जनता को सूचना पाने
का अधिकार काफी जद्दोजहद के बाद हासिल हुआ, लेकिन अब आरटीआई नियमावलियों
के नाम पर आवेदक की मौत होने पर मामला बंद कर देने,आवेदन को अधिकतम 500
शब्दों में देने, आरटीआई की फीस बढाने, पोस्टल खर्च आबेदक पर डालने और
आरटीआई अर्जी देने वाले के खिलाफ काउंटर अपील देने का प्राविधान लागू
करने से इस एक्ट को लाने की मूल मंशा की ही हत्या हो जायेगी ।
आरटीआई नियमावली में व्हिसिलब्लोअर की सुरक्षा का कोई भी प्रावधान नहीं
किये जाने पर कड़ी आपत्ति जताते हुए अधिवक्ता रुवैद कमाल किदवई ने इन
नियमावलियों को आरटीआई की धार को कमजोर करने वाला, नागरिकों के मुकाबले
भ्रष्ट सरकारी अफसरों की ताकत को बढ़ावा देने वाला और आम लोगों के लिए
आरटीआई की प्रक्रिया को मंहंगा और जटिल बनाने वाला बताया है।
धरने में आये आरटीआई कार्यकर्ता पुरुषोत्तम शुक्ल, होमेंद्र कुमार,
अरविन्द शुक्ल और राजकिशोर यादव भी इस बदलाव से काफ़ी नाराज़ दिखाई दिए और
सभी ने सरकार पर आरटीआई क़ानून को कमज़ोर करने का भी आरोप लगाया l
कार्यकर्ताओं के अनुसार सरकार की नीयत साफ़ नहीं है और उसने आम जनता के
लिए सूचना का अधिकार पाना मुश्किल कर दिया है l
धरने में आरटीआई एक्टिविस्ट शमीम अहमद,अधिवक्ता मनीष,आनंद प्रसाद आदि ने
प्रतिभाग किया l कार्यक्रम की आयोजिका समाजसेविका उर्वशी शर्मा ने बताया
कि यदि 3 माह में उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो उनका संगठन इस मामले को
उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर विधिक उपचार लेकर भारत में आरटीआई
आन्दोलन को मजबूती देने के क्षेत्र में अपना योगदान देने का प्रयास करेगा