योगी प्रशासनिक खौफ फिर पैदा करें
श्याम कुमार –
गोरखपुर में जो करुण घटना हुई, वह घटना स्पष्ट रूप से संकेत दे रही है कि प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि को धूमिल करने के लिए गहरा षड्यंत्र हो रहा है। ज्वलंत प्रश्न यह है कि दर्जनों बच्चों की दर्दनाक मौत वाली घटना के एक दिन पहले जब मुख्यमंत्री ने गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल काॅलेज का निरीक्षण किया था तो उन्हें यह बात बताई गई थी या नहीं कि अस्पताल को आॅक्सीजन की आपूर्ति करने वाली कम्पनी का 64 लाख रुपये बकाया है, इसलिए उसने आगे आॅक्सीजन देने से इनकार कर दिया है। यदि मुख्यमंत्री की जानकारी में यह बात नहीं लाई गई तो इसके लिए जो भी लोग जिम्मेदार हों, उनके विरुद्ध हत्या का मुकदमा दर्ज कर उन्हें अविलम्ब जेल भेज देना चाहिए। यह भी प्रश्न है कि स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन को इस तथ्य की जानकारी थी अथवा नहीं? यदि मंत्रियों को जानकारी नहीं दी गई थी तो यह बहुत बड़ा अपराध है तथा इसके लिए जिम्मेदार लोगों को कड़ा दण्ड देना चाहिए। यदि मंत्रियों को जानकारी थी और फिर भी उन्होंने कोई कदम नहीं उठाया तो उन मंत्रियों को बर्खास्त-कर उनके विरुद्ध भी हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए। यदि अखिलेश-सरकार के समय की भयावह स्थिति को छोड़ दिया जाय, तो भी पिछले तीन मास के समाचारपत्र प्रदेश भर में अस्पतालों एवं मरीजों की दुर्दशाओं के समाचारों से भरे पड़े हैं। क्या मंत्रियों को समाचारपत्रों में छपी उन दुर्दशाओं के समाचार नहीं दिखाई देते थे अथवा उन्हें चारों ओर ‘हरा ही हरा’ दिखाई दे रहा था?
योगी आदित्यनाथ जब मुख्यमंत्री बने थे और जनता को सचिवालय की बिजली रात दो-दो बजे तक जलती दिखाई देती थी, जिसके साथ मुख्यमंत्री के कड़क फैसले भी सामने आ रहे थे तो बसपा एवं सपा के दीर्घकालीन कुशासन से भंयकर रूप से त्रस्त जनता को योगी में आशा की किरण दिखाई दी थी। जनता को योगी आदित्यनाथ उद्धार करने वाले देवदूत की तरह महसूस हुए थे। योगी का डंका पूरे देश में बज उठा था तथा विदेशों में भी उनकी ख्याति पहुंच गई थी। लेकिन एक महीने बाद योगी का ग्राफ गिरना शुरू हुआ तो और उसकी पराकाष्ठा गोरखपुर की करुण घटना के रूप में हुई। ग्राफ का गिरना उस दिन शुरू हो गया था, जिस दिन पेट्ोल पम्प के लुटेरे मालिकों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई शिथिल कर दी गई थी। ऐसा क्यों किया गया था, यह अभी भी रहस्य के गर्भ में है। हालांकि बाद में उन लुटेरों के विरुद्ध कड़े कदम उठाए गए, किन्तु तबतक जनता में यह संदेश जा चुका था कि किसी दबाव में पेट्ोल पम्प के लुटेरों के विरुद्ध कार्रवाई में ढील दी गई है। योगी को उस समय पिछले एक महीने से चल रहे अपने कड़क प्रशासनिक स्वरूप को जारी रखना चाहिए था। उसमें ढील ही उनके लिए घातक सिद्ध हुई।
लोगों में इस बात का आष्चर्य है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अफसरों की सारी कलई जानकर भी भ्रष्टाचार के पर्याय बने बड़े-बड़े अफसरों को अपने कार्यकाल में महत्वपूर्ण पदों पर क्यों कायम रहने दिया? लखनऊ विकास प्राधिकरण एवं उत्तर प्रदेश आवास-विकास परिशद में अथाह करप्शन एवं असीमित घोटालों का जो नंगा नाच हुआ, वह सब प्रमुख सचिव सदाकांत की नाक के नीचे हुआ था। फिर भी सदाकांत को प्रमुख सचिव, आवास के पद से हटाकर प्रमुख सचिव, लोकनिर्माण विभाग का और भी महत्वपूर्ण पद सौंप दिया गया। अतिवरिष्ठ अधिकारियों से लेकर लिपिकों तक ने हजारों करोड़ के जो घोटाले किए, उन समाचारों से अखबार भरे पड़े थे, किन्तु किसी के विरुद्ध कार्रवाई नहीं हुई। जबकि जनता आशा कर रही थी कि योगी भ्रष्टाचार व घोटालों के उन समस्त ‘ऊंचे खिलाड़ियों’ को जेल की हवा खिलाएंगे। एक उच्चाधिकारी के बारे में तो यह खबर फैली कि वह चार करोड़ खर्च कर ऐसा पउवा लगवाने में सफल हुआ कि किनारे किए जाने से बच गया।
जनता में धीरे-धीरे यह धारणा बन गई है कि योगी आदित्यनाथ भ्रष्ट अफसरों एवं भ्रष्ट पत्रकारों से घिर गए हैं तथा सही लोगों का उनके पास पहुंच पाना बहुत कठिन हो गया है। मैं शुरू से अनेक बार अपने आलेखों में लिख चुका हूं कि योगी आदित्यनाथ को भ्रष्ट अफसरों को दंडित कर ऐसे योग्य एवं ईमानदार अफसरों को महत्वपूर्ण पदों पर बिठाना चाहिए, जो उनके शासन को अच्छी से अच्छी ख्याति दे सकें। कहा जाता है कि ईमानदार अफसर बेइमान अफसरों की तुलना में अच्छा परिणाम देने में विफल रहते हैं। यह घारणा गलत है। विगत बहुत लम्बे समय से प्रदेश में महाभ्रष्ट अफसरों का ही बोलबाला रहा है। चूंकि प्रदेश में बसपा एवं सपा का शासन सिर्फ लूटपाट का षासन था, इसलिए उन सरकारों के मुखियाओं को महाभ्रष्ट अफसर अपने लिए उपयुक्त लगते थे और इसी से वे उन मुखियाओं के लाडले बन गए थे। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि बहुत लम्बी अवधि तक उपेक्षित रहने के कारण ईमानदार एवं योग्य अफसरों का मनोबल बहुत क्षीण हो गया था। यदि योगी आदित्यनाथ उन अफसरों को आगे लाते और उनका मनोबल मजबूत करते तो निष्चय ही वे अफसर योगी के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होते। अभी जो थोड़े ईमानदार अफसर महत्वपूर्ण कुर्सियों पर हंै, उन्हें भी खिसकाने के षड्यंत्रों की चर्चाएं सुनी जा रही हैं। सुना तो यह भी जा रहा है कि मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव शशि प्रकाश गोयल को भी हटवाने में लोग लगे हैं।
बीच-बीच में यह चर्चा भी उठ जाती है कि योगी आदित्यनाथ को दिल्ली शिफ्ट किया जाएगा और यहां किसी अन्य को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। यह ध्रुवसत्य है कि जिस प्रकार पूरे देश की आशा नरेन्द्र मोदी पर केन्द्रित है, उसी प्रकार उत्तर प्रदेश की जनता भी यह मानती है कि उसका उद्धार सिर्फ योगी आदित्यनाथ ही कर सकते हंै। इसका कारण यह है कि जिस प्रकार नरेन्द्र मोदी का जीवन घोर ईमानदारी से युक्त एवं तपस्वी वाला है, बिलकुल वही छवि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की है। अपनी मजबूती के लिए योगी आदित्यनाथ को स्वयं पहल करनी होगी तथा कठोर कदम उठाने होंगे। उन्होंने ‘माला’ से बहुत काम ले लिया, अब ‘भाला’ का प्रयोग करना होगा। आम जनता भ्रष्टाचार से पूरी तरह त्रस्त है तथा उसकी कहीं कोई सुनवाई नहीं होती है। हर जगह उसे टालमटोल की स्थिति झेलनी पड़ती है। इसके लिए योगी को सम्पूर्ण प्रशासनिक तौर-तरीकों में आमूल परिवर्तन करना होगा। एक ओर भ्रष्टाचार पर कड़ाई से तलवार चलानी पड़ेगी तो दूसरी ओर आम जनता की समस्याओं का वास्तविक रूप में निराकरण किए जाने की व्यवस्था करनी होगी। भ्रष्ट अफसरों को जेल भेजा जाय तथा जनसमस्याओं के वास्तविक रूप में निराकरण में जो भी अफसर व कर्मचारी शिथिलता बरतें उन्हें तुरंत कड़े से कड़ा दण्ड दिया जाय। योगी को भगवान राम का कथन याद रखना होगा- ‘भय-बिनु होय न प्रीति’। जबतक योगी पहले महीने वाला अपना खौफ फिर नहीं पैदा करेंगे, उनके विरुद्ध षड्यंत्रकारी सक्रिय रहेेंगे।
(श्याम कुमार)
सम्पादक, समाचारवार्ता
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