लखनऊ: उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने आज रामपुर में रज़ा रामपुर लाईब्रेरी द्वारा विख्यात साहित्यकार मुंशी प्रेमचन्द की 137 जयंती पर आयोजित दो द्विवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘प्रेमचन्द: व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ का उद्घाटन किया। संगोष्ठी में अल्पसंख्यक कल्याण राज्यमंत्री एवं रामपुर से विधायक श्री बलदेव सिंह औलख, रामपुर रज़ा लाईब्रेरी के निदेशक डाॅ0 हसन अब्बास, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के प्रमुख प्रो0 ए0ए0 फातमी, प्रो0 शाहिद अंजुम, डाॅ0 प्रदीप जैन सहित अन्य वरिष्ठ साहित्यकार व साहित्यप्रेमी उपस्थित थे। राज्यमंत्री श्री बलदेव सिंह औलख ने राज्यपाल का सम्मान ‘सरोपा’ एवं ‘अंग वस्त्र व रामपुरी टोपी’ पहनाकर किया।

राज्यपाल ने मुंशी प्रेमचन्द के चित्र पर पुष्प अर्पित करके अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। राज्यपाल ने कहा कि मुंशी प्रेमचन्द ने हिन्दी और उर्दू में अलग-अलग प्रकार से विभिन्न विषयों पर लिखा। उनकी कलम कितनी ताकतवर थी यह उनकी लेखनी से पता चलता है। मुंशी प्रेमचन्द ने सामाजिक कुरीतियों को अपने साहित्य के माध्यम से समाज के सामने प्रस्तुत किया। उनकी किताबों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है। मुंशी प्रेमचन्द का लेखन आज भी समाज के लिए प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि पुस्तक खरीदकर पढ़ी जाती है तो उसका आनन्द पढ़ने वाले को मिलता है और लाभ लेखक को भी मिलता है।

श्री नाईक ने कहा कि प्रेमचन्द द्वारा अपने साहित्य को हिन्दी और उर्दू में प्रस्तुत करना इस बात का प्रमाण है कि भाषायें किसी वर्ग विशेष की नहीं होती। आज के कार्यक्रम से यह भ्रम भी दूर होगा कि सभी भारतीय भाषायें एक हैं। भारत बड़ा देश है जिसमें अनेकों भाषायें हैं। भारत में सबसे ज्यादा हिन्दी और उर्दू भाषायें बोली जाती हैं। उन्होंने कहा कि रामपुर रजा लाईब्रेरी द्वारा आयोजित कार्यक्रम हिन्दी और उर्दू के संगम का पूरे देश में बड़ा संदेश देगा। राज्यपाल ने कहा कि उर्दू उत्तर प्रदेश की दूसरी सरकारी भाषा है। इस दृष्टि से उन्होंने अपना वार्षिक कार्यवृत्त हिन्दी और उर्दू भाषा में प्रकाशित किया।

राज्यपाल ने कहा कि रामपुर रज़ा लाईब्रेरी देश की शान है। यह धरोहर रिजर्व बैंक जैसा महत्व रखती है। लाइब्रेरी में 17,000 दुर्लभ अरबी, फारसी, संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, तुर्की और पश्तो भाषा की अनमोल पाण्डुलिपियां संग्रहित हैं। यहाँ की पाण्डुलिपियाँ इतिहास, दर्शन शास्त्र, धर्म, विज्ञान, कला, साहित्य एवं स्थापत्य कला जैसे विषयों से संबंधित हैं। उन्होंने कहा कि लाइब्रेरी में उपलब्ध लघुचित्र टर्की, मंगोल, मुगल, राजपूत, पहाड़ी, अवधी तथा इण्डो-यूरोपियन कला को प्रदर्शित करते हैं, जो शोधकर्ताओं के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

राज्यपाल ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 23 मई 2016 को अपने ईरान दौरे पर ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामिनाई को रामपुर रज़ा लाईब्रेरी द्वारा फारसी भाषा में प्रकाशित कुल्लीयाते-गालिब व सुमेरचन्द की रामायण की प्रतियाँ भेंट की थी। उन्होंने यह भी बताया कि लाइब्रेरी के अध्यक्ष के नाते उन्होंने 19 दिसम्बर 2016 को राजभवन में आयोजित एक समारोह में प्रो0 मोहम्मद सलाहउद्दीन उमरी को नवाब फैजुल्लाह खाँ अवार्ड (अरबी भाषा और साहित्य की श्रेणी में) तथा इस्लामिक बुक फाउंडेशन नई दिल्ली के श्री फिरासत अली खाँ को उर्दू प्रकाशन के लिए मंशी नवल किशोर अवार्ड देकर सम्मानित किया था।

राज्यमंत्री बलदेव सिंह औलख ने प्रेमचंद की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मुंशी प्रेमचन्द एक संघर्षशील लेखक थे जिन्होंने अनेकों उपन्यास एवं लघु कथाएं लिखी। उन्होंने कहा कि साहित्यकारों से प्रेरणा प्राप्त करके समाज को दिशा देने में साहित्य का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
प्रो0 ए0ए0 फातिमी ने कहा कि मुंशी प्रेमचन्द ने जीवन के यथार्थ पर आधारित जिन्दा कहानियाँ लिखी। प्रेमचन्द ने समाज के निम्न एवं मध्यम वर्ग के लोगों को आधार बनाकर समाज को जगाने का काम किया।

डाॅ0 प्रदीप जैन ने कहा कि मुंशी प्रेमचन्द मिली जुली संस्कृति के ध्वजवाहक हैं। जिन्होंने आम आदमी को सामने रखकर अपने साहित्य का सृजन किया है। उन्होंने कहा कि रामपुर रज़ा लाईब्रेरी में सिर्फ उर्दू, अरबी और फारसी ही नहीं बल्कि हिन्दी व संस्कृत सहित अन्य भाषाओं का संग्रह है जिसका लाभ शोधार्थी एवं पाठक उठा सकते हैं। उन्होंने कहा कि लाइब्रेरी की पहचान आगे बढ़ाने के लिए उचित कदम उठाए जाने की जरूरत है।
राज्यपाल ने कार्यक्रम में राजभाषा पत्रिका का वर्ष 2016 का अंक, राजभाषा पत्रिका मुंशी प्रेमचन्द्र विशेषांक, पुस्तक मुंशी प्रेमचन्द के पत्र, पुस्तक कलाम-ए-जामिन एवं लाइब्रेरी के न्यूज लेटर का लोकार्पण किया। सुश्री आफरीन ने राज्यपाल को पक्षी के पंख पर उनका चित्र बनाकर भेंट किया। संगोष्ठी से पूर्व राज्यपाल ने रामपुर रज़ा लाईब्रेरी का भ्रमण भी किया।