समाजवाद नहीं, राष्ट्रवाद जरूरी
## श्याम कुमार
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में जो अपना ऐतिहासिक एवं सारगर्भित समापन-भाषण किया था, वह चिरस्मरणीय रहेगा। गत दिवस प्रदेश की विधान परिषद् में भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बिलकुल वैसा ही अविस्मरणीय समापन-भाषण किया। उन्होंने विपक्ष की आलोचनाओं का तो अकाट्य उत्तर दिया ही, ऐसे सारगर्भित विन्दु भी प्रस्तुत किए, जिन पर आज ध्यान दिए जाने की घोर आवश्यकता है। उन्होंने यह अत्यंत महत्वपूर्ण बात कही कि हमारे प्रदेश को समाजवाद की नहीं, राष्ट्रवाद की आवश्यकता है। वस्तुतः उनका यह कथन केवल उत्तर प्रदेश नहीं, पूरे देश के संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण है। जवाहरलाल नेहरू ने देश में फर्जी सेकुलरवाद एवं फर्जी समाजवाद की जो शुरुआत की थी, उसने देश का भीषण विनाश किया। स्वतंत्रता-आंदोलन के समय हमारे देष में राश्ट्रवाद की भावना चरम पर थी, जिसे फर्जी सेकुलरवाद ने नश्ट कर डाला। यही दुर्दषा फर्जी समाजवाद ने की। इस फर्जी समाजवाद ने हमारे देश में भ्रष्टाचारियों, घोटालेबाजों आदि की भरमार कर दी तथा वास्तव में गरीबों का जो भला होना चाहिए था, वह नहीं हुआ। अमीर और अधिक अमीर होते गए तथा गरीब और अधिक गरीब। बिलकुल उसी प्रकार, जिस प्रकार जातिगत आरक्षण का फायदा सम्पन्न दलितों को ही मिला तथा निर्धन दलित पहले की तरह पिछड़े रह गए। कई दशक पूर्व यह कहा गया था कि समाजवाद ऐसी टोपी है, जिसे हर व्यक्ति अपनी खोपड़ी के अनुसार फिट कर लेता है।
पूर्व-मुख्यमंत्री अखिलेश यादव दिनभर ‘समाजवाद’ का रट्टा लगाते थे। सारे दिन वह प्रायः हर वाक्य में ‘हम समाजवादियों’ शब्दों का इस्तेमाल किया करते थे। लेकिन हकीकत भिन्न थी। उनका शासन मायावती व मनमोहन/सोनिया के शासनकाल की तरह भ्रष्टाचार, घोटालों आदि का पर्याय हो गया था। योजनाएं यह देखकर बनाई जा रही थीं कि उनमें कितनी लूट की गुंजाइश होगी। ‘समाजवाद’ के नाम पर फायदा भ्रष्टों एवं अमीरों को खूब मिला तथा आम गरीब ठगा गया और पहले की तरह गरीबी में ही पड़ा रह गया। योगी ने ठीक कहा कि खोखले नारों से समाजवाद नहीं आ सकता है। खोखले नारों का फायदा सिर्फ अमीरों, ठगों, लुटेरों आदि को मिलता है। वास्तविक समाजवाद के केवल दो रास्ते हैं-महात्मा गाधी का ‘ग्राम स्वराज’ एवं दीनदयाल उपाध्याय का ‘अन्त्योदय’। डाॅ0 राम मनोहर लोहिया का समाजवाद इन्हीं सिद्धांतों से युक्त था।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समाजवाद से अधिक राष्ट्रवाद की आवश्यकता पर जो बल दिया है, वह बिल्कुल सही है। फर्जी सेकुलरवाद ने हमारे यहां राष्ट्रवाद को कुचल डाला है। राष्ट्रवाद की बात करना पिछड़ापन माना जाता है तथा देशहित के विरूद्ध बातें करना प्रगतिशीलता मानी जाती है। पूरे देश में देशद्रोह की फसल लहलहा रही है। देशद्रोह की सबसे बड़ी टकसाल दिल्ली-स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्व विद्यालय बना हुआ है। देशविरोधी तत्व निरंतर ताकतवर होते जा रहे थे, जिनपर मोदी एवं योगी सरकारों के आगमन से जब लगाम लगनी शुरू हुई तो वे फर्जी सेकुलरवादी तत्व तरह-तरह के मुखौटे लगाकर देश-विदेश में केन्द्र एवं प्रदेश सरकारों को बदनाम करने पर तुले हुए हैं। हमारी शिक्षा-प्रणाली भी ऐसी विकृत कर दी गई, जिसमें देश की वास्तविक महाविभूतियों को बदनाम करने का तथा देशद्रोही तत्वों को महत्व देने का प्रयास किया गया। ऐसे तत्वों के ताकतवर हो जाने का दुष्परिणाम यह हुआ है कि देश व प्रदेश में राष्ट्र विरोधी शक्तियों पर अंकुश लगाना बहुत कठिन हो गया है। जम्मू-कश्मीर तो अलगाववाद का सबसे बड़ा गढ़ बन गया है। कश्मीर घाटी से लाखों हिन्दुओं को मारकाटकर खदेड़ दिया गया, किन्तु किसी सेकुलवादी या मानवाधिकार आयोग ने आजतक उनके पक्ष में कोई भी आवाज नहीं उठाई। कश्मीर घाटी के नेता, चाहे वे पीडीपी के हों अथवा नेशनल कॅानफरेन्स के, सबमें भारत-विरोधी भावना को संरक्षण देने की होड़ लगी हुई है। भारत को जम्मू-कश्मीर से विलग रखने वाली जो धारा 370 है, वैसी ही एक धारा 35ए यह है कि यदि जम्मू-कश्मीर की कोई महिला भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उसका जम्मू-कश्मीर में अपने मायके की सम्पत्ति पर अधिकार समाप्त हो जाएगा। इस धारा को जनहित याचिका के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है, जिसपर न्यायालय की बड़ी पीठ सुनवाई करने वाली है। मुख्यमंत्री महबूबा मुफती इस जनहित याचिका से इतना अधिक नाराज हो गई हैं कि उन्होंने यह घोर आपत्तिजनक बात कह डाली कि यदि उपर्युक्त धाराओं से छेड़छाड़ की गई तो कश्मीर घाटी में भारत के राष्ट्र ध्वज को कोई कंधा देने वाला नहीं मिलेगा। उनका आशय है कि वहां तिरंगे की शव यात्रा निकल जाएगी।
उत्तर प्रदेश विधान परिषद् के अपने समापन-भाषण में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वास्तविक ‘सेकुलरवाद’ का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने ‘देवा शरीफ’ को बिजली दी तो ‘महादेवा’ को भी दी। सही सेकुलरवाद का सही आधार ‘तुष्टि करण किसी का नहीं, अन्याय किसी के साथ नहीं’ होना चाहिए। ‘सबका साथ, सबका विकास’ ही वास्तविक सेकुलरवाद है। किसी की जाति या मजहब देखकर निर्णय करना घोर अन्याय है। योगी ने ठीक कहा कि सपा के सेकुलरवाद में राम का नाम लेने में शर्म महसूस की जाती थी। सचमुच चारों ओर ऐसा वातावरण बना दिया गया था कि ‘हिन्दू’,‘राम’ आदि शब्दों का उच्चारण करते ही अथवा प्राचीन भारतीय संस्कृति का नाम लेते ही व्यक्ति को साम्प्रदायिक घोषित कर दिया जाता था। मुसलिम-तुष्टि करण को ही सेकुलरवाद माना जाने लगा था। शहाबुद्दीन, मौलाना बुखारी, जफरयाब जिलानी, उवैसी जैसे जहर उगलने वाले कट्टर लोग सेकुलरवादी माने जा रहे थे। नेहरू के फर्जी सेकुलरवाद ने विगत सत्तर वर्षों में देश की यह दुर्दशा कर डाली। इसका परिणाम यह हुआ कि हिन्दुओं व मुसलमानों के बीच सगे भाइयों वाला वातावरण बनाने के बजाय अधिक से अधिक खाई पैदा होती गई।
(श्याम कुमार)
सम्पादक, समाचारवार्ता
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